मप्र सहित देशभर में इस समय कोयला संकट के कारण बिजली की समस्या परेशानी का सबब बनी हुई है। जहां अघोषित बिजली कटौती से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है, वहीं मप्र में निजी कंपनियां बिना बिजली दिए ही कमाई कर रही हैं। सरकार की गलत नीति के कारण जहां प्रदेश में बिजली संकट खड़ा हो गया है, वहीं निजी कंपनियों ने भी संकट के इस दौर में हाथ खड़े कर लिए हैं।
मप्र में सरकारी ताप बिजली घरों से पर्याप्त विद्युत उत्पादन होने के बाद भी प्रदेश सरकार ने देश के धन्नासेठों की कंपनियों से बिजली खरीदने का अनुबंध कर प्रदेश पर आर्थिक बोझ तो डाला ही है, अब जब बिजली की जरूरत है तो कंपनियों ने हाथ खड़े कर लिए हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि प्रदेश को अंधेरे में धकेलकर सरकार निजी बिजली कंपनियों को मालामाल कर रही है।
प्रदेश में पिछले एक महीने से कोयला संकट होने के कारण अघोषित बिजली कटौती की जा रही है। प्रदेश में 5 से 10 घंटे तक बिजली काटी जा रही है। वहीं ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर दावा कर रहे हैं कि प्रदेश में पर्याप्त बिजली है। फिर सवाल उठता है कि बिजली कटौती की वजह क्या है। निजी कंपनियों से घालमेल का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बिजली खरीदी के 25-25 साल के एमओयू (करार) होने के बावजूद पिछले साल जब कोयला संकट गहराया था, तब बिजली कंपनियों ने निजी सेक्टर से अतिरिक्त बिजली खरीदी थी। गत वर्ष 31 अगस्त और 1 सितंबर को 1,163 मेगावाट अतिरिक्त बिजली खरीदी गई थी। यह बिजली सामान्य से अधिक दर पर खरीदी थी।
बिजली विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकार ने अडानी, रिलायंस, टोरेंट पावर, बीएलए पावर, जेपी बीना पावर, एस्सार पावर और लिंको आदि कंपनियों से 2025 तक बिजली खरीदने का करार किया है। संकट में बिजली की गारंटी के लिए सरकार हर साल इन निजी कंपनियों को फिक्स चार्ज के रूप में औसतन 4,000 करोड़ रुपए देती है। यह भारी-भरकम रकम निजी कंपनियों को इसीलिए दी जाती है, ताकि संकट के समय जरूरत के अनुरूप प्रदेश को बिजली मिल सके, लेकिन इसके उलट अब कोयला संकट के बीच निजी सेक्टर की अनुबंध वाली कंपनियों ने भी पर्याप्त आपूर्ति में असमर्थता जता दी है। ऐसे में इनसे मिलने वाली बिजली में कमी आई है। जिसके कारण प्रदेश में अघोषित बिजली कटौती की जा रही है।
सरकार दावा कर रही है कि प्रदेश में 22,500 मेगावाट बिजली की उपलब्धता है। लेकिन आधी बिजली भी नहीं मिल पा रही है। यही नहीं संकट के समय अनुबंध वाली कंपनियों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। सूत्रों का कहना है कि अनुबंध के अनुसार बिजली पर्याप्त नहीं मिलने पर जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन सरकार निजी बिजली कंपनियों पर जुर्माना लगाने के बजाय उन पर मेहरबानी कर रही है। इससे पहले सितंबर 2021 में जब कोयला संकट छाया था, तब भी बिजली कंपनियों ने पूर्व के अनुबंधों के तहत आपूर्ति में असमर्थता जाहिर की थी। नतीजा यह रहा कि प्रदेश को खुले बाजार से बिजली लेनी पड़ी थी।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार निजी बिजली कंपनियों में टोरेंट पावर, बीएलए पावर, जेपी बीना पावर, एस्सार पावर, अडानी, रिलायंस और लिंको से विभिन्न प्रकार के अनुबंध किए गए हैं। इनमें विभिन्न श्रेणियों में 70 पैसे से 2.10 रुपए प्रति यूनिट तक औसतन फिक्स चार्ज है। प्रदेश सरकार को पावर ग्रिड कॉरपोरेशन और एनटीपीसी के पॉवर प्लांट्स को भी फिक्स चार्ज देना पड़ता है। इसमें प्रदेश को पावर ग्रिड कॉरपोरेशन को औसत 516 करोड़ रुपए चुकाने होते हैं। एनटीपीसी के पावर प्लांट्स का 300 से 400 करोड़ रुपए तक का चार्ज बनता है। वर्ष 2020 में इस फिक्स चार्ज को गलत बताकर इसके खिलाफ नियामक आयोग में याचिका भी लगाई गई थी।
वहीं विद्युत नियामक आयोग के टैरिफ डाटा 2019-20 के मुताबिक, मप्र ने निजी सेक्टर से 2,034 करोड़ रुपए सालाना फिक्स चार्ज देने के करार कर रखे हैं। जबकि हर साल औसत 4,000 करोड़ निजी सेक्टर को दिए जाते हैं। वित्तीय 2020-21 में 4,200 करोड़ रुपए का फिक्स चार्ज निजी सेक्टर को दिया गया है। आर्थिक गणित में फेल होने के कारण ही मप्र में बिजली की दर लगभग हर साल बढ़ जाती है। इसी का परिणाम है कि मप्र देश में सबसे महंगी बिजली देने वाले राज्यों में शुमार है। मप्र में सभी खर्च मिलाकर औसतन 7.10 रुपए प्रति यूनिट बिजली हो चुकी है। इस साल बिजली में 2.64 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। इससे सबसे ज्यादा भार घरेलू उपभोक्ताओं पर पड़ा है।
सरकारी की बजाय निजी पर भरोसा
प्रदेश में सरकारी प्लांट की बजाय निजी प्लांट पर भरोसा इस कदर है कि लॉकडाउन में भी निजी सेक्टर से बिजली खरीदी का एमओयू किया गया। 2020 में लॉकडाउन के दौरान अडानी समूह की कंपनी से थर्मल बिजली खरीदी का एमओयू किया गया, जिसमें 4 रुपए 79 पैसे प्रति यूनिट बिजली खरीदी का एमओयू हुआ है। हालांकि सरकार की सरकारी प्लांट की बिजली औसतन 2 रुपए प्रति यूनिट की पड़ती है। जहां फिक्स चार्ज में करोड़ों रुपए दिए जा रहे हैं, वहीं बिजली कंपनियों के घाटे में बढ़ोतरी हो रही है। बिजली कंपनियां 4,000 करोड़ का सालाना घाटा बताती हैं, जबकि कंपनियों का कर्ज ही 50 हजार करोड़ पार हो गया है।
- श्याम सिंह सिकरवार