बढ़ते शहर एवं उद्योगों की वजह से नदियां तेजी के साथ प्रदूषित हो रही हैं। इनके संरक्षण के लिए बनाई गई कार्ययोजनाएं कागजी साबित हो रही हैं। कुछ समय पहले ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मप्र की नदियों की रिपोर्ट तलब की थी, जिसमें 22 नदियों में व्यापक प्रदूषण पाया गया था। इसमें रीवा जिले की दो नदियां बिछिया और टमस शामिल थी। साथ ही सतना के चित्रकूट में मंदाकिनी के प्रदूषण पर भी चिंता जाहिर की गई थी। एनजीटी ने प्रदेश सरकार से इन सभी नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए व्यापक कार्ययोजना बनाने का निर्देश दिया था। जिस पर सरकार ने भी उस दौरान तत्परता दिखाते हुए चिन्हित की गई नदियों को निर्मल बनाने के लिए कार्ययोजना तैयार करने का निर्देश दिया था। रीवा में जलसंसाधन विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और नगर निगम को जिम्मेदारी मिली थी कि वह बिछिया नदी को निर्मल बनाने के लिए व्यापक कार्ययोजना बनाएं।
शुरुआती दौर में कुछ कार्य हुआ लेकिन अन्य सरकारी योजनाओं की तरह इस कार्य में भी हीलाहवाली शुरू हो गई और अब इसकी फाइल धूल फांक रही है। रीवा में बिछिया नदी को पुनर्जीवित करने के लिए कार्ययोजना तैयार की गई है, जिसके लिए सरकार को भी प्रस्ताव भेजा गया है। नदियों को प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए स्थानीय नगरीय निकायों को जिम्मेदारी दी गई है। रीवा में अमृत योजना के तहत सीवरेज प्रोजेक्ट का कार्य प्रारंभ किया गया है। नदी में शहर के गंदे नालों को मिलने से रोकने के लिए सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जा रहे हैं। केंद्र के जलशक्ति मंत्रालय ने भी इसकी रिपोर्ट मंगाई है और कहा गया है कि विशेष कार्ययोजना के तहत केंद्र सरकार भी मदद देगी।
नदियों को प्रदूषण होने से बचाने के लिए स्थानीय स्तर पर तैयार किया गया एक्शन प्लान सरकार को भेज दिया गया है। इस मामले में बीते कई महीने से एक्शन प्लान बनाकर सरकार को दिया गया है। जिसमें लंबे समय से सरकार ने भी कोई संज्ञान नहीं लिया है। रीवा सहित अन्य नगरीय निकायों को एक्शन प्लान के मुताबिक कार्य करना है। इस प्लान में नदियों में गंदे पानी वाले नालों को रोकने के साथ ही नदियों के किनारे ग्रीन बेल्ट में अतिक्रमण को हटाने, नदियों में जरूरत के हिसाब से घाट तैयार करने और पौधरोपण कर बैंक एरिया के कटाव को रोकने का कार्य करना है। पूर्व से चल रहे कार्य तो किए जा रहे हैं लेकिन नए प्लान का असर अब तक नहीं देखा जा रहा है। रीवा में बिछिया और चाकघाट में टमस नदी का प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है।
बिछिया नदी रीवा में ही किले के पास राजघाट में बीहर में मिलकर समाप्त हो जाती है। यह कई वर्षों से प्रदूषण और अतिक्रमण का दंश झेल रही है। इस नदी को निर्मल बनाने जन अभियान भी चलाया गया। लोगों ने स्वयं श्रमदान कर इसकी सफाई कराई, जिसके बाद प्रशासन भी आगे आया और नदी का गहरीकरण कराया गया था। बरसात के बाद इस नदी में पानी की आवक बंद हो जाती है लेकिन रीवा शहर में दर्जनों की संख्या में नाले मिलने की वजह से इसमें पानी हर मौसम में शहर वाले हिस्से में भरा रहता है। नदी के दोनों किनारों में तेजी के साथ अतिक्रमण फैल रहा है।
नदियों को प्रदूषणमुक्त बनाने केंद्र सरकार के सहयोग से नगरीय निकायों में अमृत योजना लागू की गई है। करीब 5 वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है लेकिन हर जगह यह प्रोजेक्ट लेटलतीफी और मनमानी का शिकार हो चुका है। जिसके चलते प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हाल ही में ही शर्तों के अनुसार समय पर काम नहीं कर पाने की दशा में जुर्माना भी लगाया है। जिसके तहत नगर निगम रीवा पर 214.10 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पर सही काम नहीं करने की वजह से करीब 5 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया है। नगर परिषद चाकघाट को टमस नदी में मिलने वाले नालों को रोकने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का निर्देश था, वहां पर भी कार्य नहीं हुआ तो जुर्माना लगाने की प्रक्रिया चल रही है। इसी तरह चित्रकूट की मंदाकिनी नदी में भी स्वच्छ पानी छोड़ने के लिए कार्ययोजना बनाई गई है। रीवा में नदी संरक्षण के नाम पर 28 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट 10 वर्ष पहले भी लागू हुआ था।
मप्र में नदियों को स्वच्छ और प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए सरकारी, धार्मिक, राजनीतिक और समाजिक स्तर पर रह-रहकर अभियान चलाया जाता है। लेकिन सारे अभियान असफल साबित हो रहे हैं, क्योंकि प्रदेश की लगभग सारी नदियां प्रदूषण की चपेट में हैं। कई नदियों का पानी तो जहरीला हो गया है। देश में मां के समान पूजित नदियां इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। इनमें से मप्र से उद्गम करने वाली कई नदियां भी शामिल हैं। दरअसल सभ्यता की जननी नदियां, उद्योगों की लापरवाही और राज्य व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनदेखी से मृतप्राय सी हो रही हैं। नर्मदा नदी तो डिंडोरी में बुरी हालत में है। उज्जैन के नागदा में केमिकल फैक्ट्री से निकलने वाला जहर चंबल में जा रहा है। सीहोर में सीवन नदी में बहता पानी नजर ही नहीं आ रहा। इस पर काई जमी है। औद्योगिक इकाइयां जहरीले पानी बिना ट्रीट किए नदियों में बहा रही हैं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्रवाई के बजाय फाइलें अलमारी में बंद कर रहा है।
प्रदेश की इन नदियों को माना गया है प्रदूषित
मप्र की 22 नदियों को सबसे अधिक प्रदूषित माना गया है। इन्हें अब प्रदूषणमुक्त करने के लिए केंद्र सरकार ने भी प्रयास शुरू किया है। इसमें प्रमुख रूप से रीवा की बिछिया, टोंस चाकघाट (रीवा), मंदाकिनी चित्रकूट सतना, खान नदी इंदौर, क्षिप्रा उज्जैन, चंबल नदी नागदा (उज्जैन), बेतवा मंडीदीप भोपाल एवं विदिशा, कलियासोत कोलार, ताप्ती बुरहानपुर, गोहद, कटनी नदी, कुंडा नदी खरगोन, मालेनी जौरा, नेवाज शाजापुर, सिमरार कटनी, वैन गंगा सिवनी, सोन नदी धनपुरी, चामला बड़नगर, पार्वती नदी पीलुखेड़ी, चोपन गुना, कन्हान छिंदवाड़ा आदि हैं।
- राकेश ग्रोवर