नए अभयारण्य
21-Mar-2020 12:00 AM 396

 

मध्य प्रदेश में पर्यटन और रोजगार को बढ़ावा देने के साथ टाइगर स्टेट की पहचान दुनियाभर में पहुंचाने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए सरकार मांडू सहित प्रदेश में 11 नए वन अभयारण्य बनाएगी। अभयारण्यों के लिए टाइगर कॉरिडोर को चिन्हित किया गया है। फिलहाल प्रदेश में 25 वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और 11 नेशनल पार्क हैं। इस योजना के बाद इनकी संख्या में खासी बढ़ोत्तरी होगी। अभयारण्य से एक भी गांव इसकी जद में ना आए और किसी का भी वनाधिकार प्रभावित ना हो इसे ध्यान में रखा गया है। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार वन अभयारण्य बनाने के लिए प्रदेश के जिन 11 स्थानों को चुना गया है उनमें मांडू (धार), श्योपुर, सागर, सीहोर, नरसिंहपुर, हरदा, इंदौर, बुरहानपुर, बड़वाह, ओंकारेश्वर और मंडला शामिल हैं। इन स्थानों में सीमावर्ती अभयारण्यों से प्रदेश के अभयारण्य को जोड़ा जाएगा। जैसे महाराष्ट्र के मेलघाट से बुरहानपुर और हरदा के अभयारण्य को जोड़ा जाएगा। राजस्थान के रणथंभौर से श्योपुर के अभयारण्य को जोड़ा जाएगा।

फिलहाल राज्य में 24 अभयारण्य और 11 राष्ट्रीय उद्यान हैं, जो प्रदेश के 11,393 वर्ग किमी वनक्षेत्र में हैं। करीब 2,143 वर्ग किमी के प्रस्तावित नए संरक्षित क्षेत्र पिछले तीन दशकों में किसी भी राज्य में संरक्षित क्षेत्रों में की गई शायद सबसे बड़ी वृद्धि होगी। 1970 और 80 के दशक में कुछ शुरुआती प्रयासों के बाद, नए संरक्षित क्षेत्रों के निर्माण की योजना सरकार की प्राथमिकताओं में पीछे चली गई। इसकी बड़ी वजह स्थानीय समुदायों का प्रतिरोध था, जिन्हें लगता था कि इससे उनके अधिकार सीमित हो जाएंगे। दूसरी वजह सरकारों की यह चिंता थी कि इससे विकास कार्य प्रभावित होते हैं क्योंकि संरक्षित क्षेत्रों में कई तरह की मंजूरियों की आवश्यकता पड़ती है।

हालांकि, अपने बाघ संरक्षण कार्यक्रम की सफलता से उत्साहित होकर राज्य सरकार ने नए संरक्षित क्षेत्रों के निर्माण का फैसला किया है। 2018 में बाघों की गिनती में मध्यप्रदेश में 526 बाघ पाए गए थे जो देश में सर्वाधिक रहा और राज्य को ‘बाघ प्रदेश’ का तमगा मिला था। इन नए क्षेत्रों को ‘डिजाइनर अभयारण्य’ कहा जा रहा है, क्योंकि इन अभ्यारण्यों की पहचान वन क्षेत्रों के बीच मानव आबादी और लघु वन उपज (एमएफपी) संग्रह अधिकारों जैसे संभावित विवादास्पद पहलुओं को ध्यान में रखकर की गई है। कैबिनेट में रखे जाने को तैयार राज्य के वन विभाग के प्रस्ताव में 10 नए अभयारण्यों और एक नए राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण शामिल है। रातापानी अभयारण्य को ‘टाइगर रिजर्व’ का दर्जा दिया जाना है, जबकि दो क्षेत्रों मंडला और सतना को भी अंतिम सूची में शामिल किया जा सकता है और ये दोनों सुरक्षित क्षेत्र खासतौर से रॉक पायथन के संरक्षण के लिए होंगे।

राज्य के मौजूदा 11,393 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के अलावा, छह बाघ अभयारण्यों के आसपास के तकरीबन 5,400 वर्ग किमी वनक्षेत्र को बफर जोन के रूप में अधिसूचित किया गया है और इससे राज्य के लगभग 94,000 वर्ग किमी वनक्षेत्र में से 16,800 वर्ग किमी संरक्षित क्षेत्र हो जाता हैं। राज्य के अधिकांश प्रसिद्ध बाघ अभयारण्यों (सतपुड़ा, पेंच, पन्ना और बांधवगढ़) को 1980 के दशक की शुरुआत में अधिसूचित किया गया था पर पिछले 30 वर्षों में कोई नया संरक्षित क्षेत्र नहीं घोषित हुआ था। धार जिले में एक पशु जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान के निर्माण के साथ 1990 के दशक के मध्य में दो अभयारण्यों (रानी दुर्गावती और ओरछा) का निर्माण और पालपुर-कूनो अभयारण्य को राष्ट्रीय उद्यान में बदलने जैसे फैसले कुछ अपवाद रहे। नए संरक्षित क्षेत्रों के निर्माण की राह में सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि संरक्षित क्षेत्र घोषित करने के साथ ही उस क्षेत्र की स्थानीय आबादी के बहुत से अधिकार समाप्त हो जाते हैं। मसलन, किसी क्षेत्र को अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान बनाया जाता है, तो उस क्षेत्र में भूमि को बेचने का अधिकार उसके भूस्वामियों के पास नहीं रह जाता। मवेशी चराई और जलावन की लकड़ी के साथ महुआ या तेंदुपत्तों वगैरह के संग्रह पर भी प्रतिबंध लग जाता है। इन वर्षों में ऐसे संरक्षित क्षेत्रों के आसपास रहने वालों के लिए नए नियम भी बनाए गए थे। इसका नतीजा यह हुआ कि शुरुआत में जो संरक्षित क्षेत्र घोषित हुए उनको लेकर स्थानीय समुदायों ने विरोध करना शुरू कर दिया था। सरकारें भी संरक्षित क्षेत्रों को विकास में बाधा के रूप में देखती हैं। इस बात को समझते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से ऐसे क्षेत्रों की पहचान की जिनमें कोई निजी भूमि न हो और न ही लोग निवास करते हों। इसके अलावा, राज्य सरकार को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अनिवार्य ‘अधिकारों के निपटान’ की प्रक्रिया को पूरा करने की आवश्यकता नहीं है। इससे सरकार को सार्वजनिक परामर्श की विवादास्पद प्रक्रिया से बचने का रास्ता मिल गया।

राज्य के वन अधिकारियों के अनुसार अभयारण्य का निर्माण, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 18 से 26 में सूचीबद्ध प्रक्रियाओं का पालन करते हुए ही हो सकता है। जिन क्षेत्रों को इन संरक्षित क्षेत्रों में शामिल करने के लिए चुना गया है उनमें से अधिकांश को, पहले से ही आरक्षित वन क्षेत्रों के रूप में नामित किया जा चुका है। इसलिए यहां जिला मजिस्ट्रेट धारा-19 के तहत सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया के तहत भू-अधिकारों के निपटान की प्रक्रिया में जाने की आवश्यकता ही नहीं हैं।

अवैध गतिविधियों पर लगेगा अंकुश

संयुक्त राष्ट्र के जैव विविधता सूचकांक और प्राकृतिक आवास गलियारों पर एक अध्ययन का उपयोग करते हुए, राज्य के वन विभाग मुख्यालय ने आरक्षित वन पथों की पहचान की है और संबंधित वन प्रभागों को आंकड़ों की पुष्टि करने के लिए कहा है। आम वन भूमि के संरक्षित क्षेत्रों में बदलने के साथ ही लकड़ी की कटाई, बांस की कटाई और इन क्षेत्रों में होने वाला खनन कार्य बंद हो जाएगा और राज्य सरकार इससे संभावित राजस्व क्षति का आंकलन करने के लिए भी एक अध्ययन कर रही है। राज्य के वन मंत्री उमंग सिंघार के मुताबिक, बस्तियों के आसपास के लगभग 5 वर्ग किलोमीटर के जंगलों को प्रस्तावित अभयारण्यों से बाहर रखा गया है ताकि लोग जलावन की लकड़ी और वनोपज संग्रह जैसी जरूरतों के लिए जंगलों का उपयोग जारी रख सकें।

- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया

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