21-Mar-2020 12:00 AM
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भारत में किसानों का दलहन उत्पादन के प्रति मोह जिस तरह कम हो रहा है, वह खतरे की घंटी है। इस खतरे को भांपते हुए बुंदेलखंड के कालिंजर किले में अरहर सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बुंदेलखंड को दाल का कटोरा बनाने के प्रयासों पर चर्चा की गई। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 नवंबर, 2015 को इटली में आधिकारिक रूप से वर्ष 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष के रूप में मनाने की घोषणा की थी। कालिंजर सम्मेलन में अतिथि कृषि वैज्ञानिकों का स्वागत परंपरागत फूलों की जगह चना, अरहर, सरसों और मटर आदि के फूल और पत्तियों से बने पुष्पगुच्छों से किया गया। सवाल उठता है कि दलहन उत्पादन को लेकर सम्मेलन एक ही जिले में क्यों, देशभर में क्यों नहीं होना चाहिए? देखा यह जाता है कि दिवस विशेष पर तो विशेष आयोजन होते हैं लेकिन बाद में सबकुछ भुला दिया जाता है। अगर किसानों के जीवन में बदलाव लाना है तो इस तरह के सम्मेलनों की निरंतरता बनाए रखनी चाहिए।
भारत में पिछले कुछ वर्षों में दलहनी फसलों के उत्पादन में जिस तरह कमी आई है और उनकी कीमतें आसमान छू रही हैं, उसे देखते हुए इस तरह के आयोजन विशेष अहमियत रखते हैं। इस सम्मेलन में न केवल बुंदेलखंड के किसानों की घटती आय पर चिंता व्यक्त की गई, बल्कि खेती-किसानी को व्यावसायिक स्वरूप देने पर भी मंथन हुआ। अरहर और अन्य दलहनी फसलों को ब्रांड बनाने पर जोर दिया गया। धान और देसी गेहूं की कई किस्मों के प्रोत्साहन और औषधीय पौधों के संरक्षण पर चर्चा हुई।
सम्मेलन इसलिए भी अहम है कि इसमें कृषि क्षेत्र के पांच पद्मश्री भी मौजूद रहे। सभी ने इस पर गहन विचार किया कि दलहनी फसलों के क्षेत्र में बुंदेलखंड अपना खोया गौरव कैसे वापस पा सकता है। पद्मश्री बाबूलाल दाहिया ने अरहर और चने की फसल के लिए बुंदेलखंड की माटी को बेहद मुफीद बताया। वह यह कहने से भी नहीं चूके कि इस क्षेत्र में खाद डालने की जरूरत नहीं है। मुजफ्फरपुर की किसान चाची पद्मश्री राजकुमारी देवी ने किसानों को दलहन उत्पाद प्रोडक्ट के रूप में बेचने की सलाह दी। उनकी इस बात में दम है कि दाल सेहत दुरुस्त रखती है। परहेज में डाक्टर तमाम चीजें खाने से रोकते हैं पर दाल को मना नहीं करते। उन्होंने महिला किसानों को स्वयं सहायता समूह बनाने, साइकिल पर भ्रमण करने और अरहर की फसल की ब्रांडिंग करने की सलाह दी।
बाराबंकी से कालिंजर पहुंचे पद्मश्री रामशरण वर्मा और कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के प्रो. मान सिंह भारती ने भी माना कि अगर व्यावसायिक ढंग से दलहन उगाई जाए तो किसाानों के दिन बहुरते देर नहीं लगेगी। बांदा के जिलाधिकारी हीरालाल मानते हैं कि जिले में 47 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इनकी खुराक में दाल बढ़ाकर सेहत सुधारी जा सकती है। अरहर सम्मेलन के साथ ही नरैनी में स्वयं सहायता समूह की ग्रामीण उद्यमिता परियोजना के तहत दाल प्रसंस्करण इकाई की शुरुआत भी हो गई है। बांदा जिले में 17,753 हेक्टेयर भूमि में अरहर, 91,110 हेक्टेयर में चना और 24,624 हेक्टेयर में मसूर की खेती की जाती है। जिले में सरसों की खेती भी 2706 हेक्टेयर भूमि में होती है। इस सम्मेलन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इसमें चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ, निदेशालय रेपसीड-मस्टर्ड रिसर्च, भरतपुर (राजस्थान), इंटरनेशनल क्राप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स, हैदराबाद और बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, बांदा की भी समान सहभागिता रही।
सम्मेलन में 40 खेती-किसानी बागवानी और बैंकों के स्टॉल लगाए गए। बुंदेलखंडी व्यंजन का स्टॉल भी लगा। लगभग 65 किसानों और कृषि वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया। एक समय कोदों, सांभा फसलें बुंदेलखंड क्षेत्र में बहुत होती थीं, इन फसलों का उत्पादन बढ़ाए जाने पर जोर दिया गया।
भारत की बड़ी जनसंख्या को देखते हुए हर साल उसे विदेशों से दाल आयात करनी पड़ती है। वित्त वर्ष 2017-18 में दलहनों के रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था फिर भी देश को 56.5 लाख टन दलहन का आयात करना पड़ा था। भारत में लगभग 220-230 लाख हेक्टयर क्षेत्रफल में दलहन की खेती होती है। इससे हर साल 130-145 लाख टन दलहन की पैदावार होती है। भारत में सर्वाधिक 77 प्रतिशत दाल पैदा होती है। इसमें मध्यप्रदेश का 24, उत्तरप्रदेश का 16, महाराष्ट्र का 14, राजस्थान का 6, आंध्र प्रदेश का 10 और कर्नाटक का 7 प्रतिशत योगदान होता है।
उपलब्धियों के एक्सप्रेस-वे
बदहाल बुंदेलखंड को खुशहाल बनाने के लिए मप्र और उप्र सरकार के साथ ही केंद्र सरकार भी कमर कस चुकी है। इस सूखे अंचल के 13 जिलों में विकास के लिए कई प्रोजेक्ट मंजूर हो चुके हैं, जिस पर अगले माह काम शुरू होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश में सरकार बनने के कुछ समय बाद ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे की घोषणा कर दी थी। चित्रकूट में गत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका शिलान्यास भी कर दिया। बुंदेलखंड के विकास को गति और यात्रा को सुगम बनाने के लिए इसकी आवश्यकता समझी गई। केवल यात्रा के समय को घटाने के लिए एक्सप्रेस-वे का निर्माण उचित नहीं कहा जा सकता, इसके साथ औद्योगिक बेल्ट का निर्माण होना चाहिए। सुरक्षा के समुचित तकनीकी प्रबंध भी अपरिहार्य होते हैं। बताया गया कि यह कार्ययोजना बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे निर्माण में भी जारी रहेगी। इसके निर्माण से इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन आएगा। यह अनुमान है कि बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे से यहां के किसानों की आय दोगुनी करने में सहायता मिलेगी। यहां की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय परिवर्तन आएगा। इसके निर्माण से डिफेंस कॉरिडोर को भी गति मिलेगी।
- सिद्धार्थ पांडे