नदी-नहरें सूखीं
21-Aug-2020 12:00 AM 453

 

देश और दुनिया में बुंदेलखंड की पहचान सूखा, गरीबी, पलायन और बेरोजगारी के रूप में है, लेकिन अब यहां के लोग हालात बदलना चाहते हैं। लेकिन सरकार की उदासीनता के कारण लोग कुछ नहीं कर पा रहे हैं।

बुंदेलखंड में सूखे के डर के बीच 6 से 22 जुलाई तक दो सप्ताह बारिश थमी रहने के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। पर्याप्त पानी न मिलने से कई इलाकों में फसल का जमाव नहीं हो पाया है। जहां कुछ हद तक पानी गिरा है, वहां जमाव तो हो गया लेकिन फसल की बढ़त पर असर दिखाई दिया है। अब सारी निगाहें अगस्त के बचे हुए दिनों पर टिकी हुई हैं। आगे भी अच्छी वर्षा नहीं हुई तो फसल खराब हो सकती है।

जून और जुलाई के महीने में बुंदेलखंड में औसत से पचास फीसदी कम वर्षा हुई है। सामान्य बारिश नहीं होने से झांसी की पहूज व बेतवा, महोबा की धसान और बांदा की केन नदी का जलस्तर गर्मियों जैसा ही है। सावन निकलने के बाद भादौ शुरू हो चुुका है। जबकि, इस समय तक तो पिछले वर्षों तक नदियां लबालब हो जाती थीं। नदियों से नहरों में पानी जाता है। फिर इनके जरिए खेतों में सिंचाई होती है। नहरें सूखी होने से फसलों की सिंचाई पर भी असर पड़ा है।

इन दिनों उड़द, मूंग, तिल, मूंगफली, धान की बुवाई हो चुकी है। इनमें से सबसे ज्यादा पानी धान को चाहिए होता है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक एक किलो धान के लिए तीन हजार लीटर से ज्यादा पानी की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में कम बारिश से इस फसल पर सीधा असर पड़ा है। वहीं, उड़द, मूंग, मूंगफली को हर सप्ताह एक बार तो पानी की आवश्यकता पड़ती ही है। ऐसे में बुंदेलखंड में कहीं पानी न गिरने से फसलों का जमाव नहीं हो पाया, तो कहीं कुछ हद तक पानी गिरा भी तो फसल की बढ़त नहीं हो पाई। चूंकि, बुंदेलखंड में 15 सितंबर तक बारिश का सीजन रहता है। ऐसे में आगे के दिनों में भी अच्छी बारिश नहीं हुई तो फसलों को काफी नुकसान पहुंच सकता है।

झांसी समेत बुंदेलखंड में ज्यादातर लाल मिट्टी है। विशेषज्ञों के मुताबिक लाल मिट्टी में जल धारण की क्षमता कम होती है। ऐसे में रुकने के बजाय पानी निकल जाता है। कृषि वैज्ञानिक  डॉ. मुकेश चंद्र कहते हैं कि 6 जुलाई से 22 जुलाई तक बुंदेलखंड के कई जगहों पर पानी नहीं गिरने से फसलों का जमाव नहीं हो पाया है। जहां कुछ पानी गिरा भी तो वहां फसल की वृद्धि पूरी तरह नहीं हो पाई। अब सितंबर के प्रथम सप्ताह तक फसलों को अच्छी बरसात की जरूरत है। पिछले कुछ दिनों से हो रही बारिश के चलते उम्मीद भी है कि फसलों को जरूरत के अनुसार पानी मिल जाएगा।

केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के कुलपति डॉ. अरविंद कुमार कहते हैं कि जितनी बरसात हुई है, उससे तिल को तो कोई समस्या नहीं हुई है। वहीं, जिन इलाकों में मूंगफली की बुवाई हुए 40 से 45 दिन हो गए हैं, वहां पानी की कमी होगी तो दाने छोटे रह जाएंगे। बुंदेलखंड में बारिश को लेकर अनिश्चितता रहती है। ऐसे में किसानों को मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा आदि की तरफ भी ध्यान देना होगा। यह कम पानी में हो जाती हैं। क्षेत्र के लिए उपयुक्त भी हैं।

बुंदेलखंड में औसत वर्षा 800 से 900 मिलीमीटर है। जबकि, जून में 70 से 75 और जुलाई में 295 से 300 मिलीमीटर बारिश होती है। मौसम विभाग के अनुसार इस साल झांसी में पिछले दो माह में 201 मिलीमीटर बरसात हो चुकी है। इसमें जून में 76 तो जुलाई में 125.5 मिलीमीटर वर्षा हुई, जो कि सिर्फ 54 प्रतिशत है। सिर्फ बांदा में 300 मिलीमीटर के आसपास बरसात हुई है। बाकी हर जगह हालात झांसी जैसे ही हैं। बुंदेलखंड के किसी भी जिले में औसत बारिश नहीं हुई है। ऐसे में अगस्त में अच्छी बरसात नहीं हुई तो फसलों के लिहाज से हालात बिगड़ जाएंगे। हालांकि, मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि बाकी बचे मानसूनी सीजन में अच्छी बारिश हो सकती है।

बुंदेलखंड प्राकृतिक आपदाओं का शिकार रहता है। कभी यहां सूखा पड़ जाता है तो कभी ओलावृष्टि से फसलों को नुकसान होता है। इस बार समय से प्री-मानसूनी बारिश की शुरुआत हो जाने के बावजूद सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। जुलाई और अगस्त में 50 फीसदी बारिश ही हो पाई है। वहीं, जिलों की बात करें तो कुछ जगहों पर तीस फीसदी तक ही वर्षा हुई है। इस समय उड़द, मूंग, तिल, मूंगफली और धान की बुवाई की जा चुकी है। इनमें से तिल की फसल तो ठीक है लेकिन बाकी पर पानी न गिरने से असर पड़ा है। सबसे खराब हालत तो धान की है। बुंदेलखंड में मानसूनी सीजन 15 सितंबर तक होता है। ऐसे में अब निगाहें अगस्त और सितंबर पर टिकी हुई हैं। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक धान को छोड़कर बाकी फसलों की लागत काफी कम होती है मगर इनसे किसानों का भविष्य तय होता है। फसल से आमदनी होने पर किसान अक्टूबर में बोई जाने वाली अलसी, चना, मटर, मसूर, राई के लिए बीज, डीजल आदि का बंदोबस्त कर लेता है। इन फसलों से मुनाफा नहीं होने पर किसानों को उधार लेना पड़ता है।

धान को चाहिए होता है दोगुना पानी

बुंदेलखंड में अभी उड़द, मूंग, तिल और मूंगफली की फसलें लगाई गई हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी सिर्फ इतना पानी इन फसलों को मिल रहा है कि यह जिंदा रह सकें। अगर आगे पानी नहीं गिरता है तो दिक्कत होगी। उन्होंने बताया कि धान को तो दोगुना पानी चाहिए होता है। झांसी के चिरगांव, मोंठ, बड़ागांव में किसानों ने धान की रोपाई की है। वहीं, नहरों में भी कम पानी होने से किसानों की समस्या बढ़ गई है। धान को सप्ताह में एक दिन पानी मिल जाना चाहिए। उड़द, मूंग, तिल और मूंगफली को सप्ताह में पानी मिलते रहना चाहिए। वरना फसल हो नुकसान पहुंच सकता है। बुंदेलखंड के किसी भी जिले में अब तक औसत वर्षा नहीं हुई है। सिर्फ बांदा में 300 मिलीमीटर बारिश हुई है। हफ्ते भर तक अभी हल्की बारिश होने का पूर्वानुमान है।

- सिद्धार्थ पांडे

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