नाथ का विकल्प कौन?
26-Dec-2020 12:00 AM 517

 

कांग्रेस के सबसे विश्वसनीय नेता और गांधी परिवार के करीबी कमलनाथ मप्र की सियासत का वो चेहरा हैं, जिन्होंने मप्र में सत्ता का वनवास काट रही कांग्रेस को वापसी कराने में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन अपने कुछ नेताओं और विधायकों की गद्दारी के कारण उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा। अभी भी पार्टी में भगदड़ मची हुई है। इसलिए कमलनाथ परेशानी के दौर से गुजर रहे हैं।

मप्र में पहले सरकार गंवाने और अब हाल ही में उपचुनावों में करारी हार झेलने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बड़ा बयान दिया है। गत दिनों छिंदवाड़ा में समर्थकों को संबोधित करते हुए कमलनाथ ने राजनीति छोड़ने के संकेत दिए। उन्होंने कहा कि अब मैं आराम करना चाहता हूं, मैंने काफी कुछ हासिल किया है। कांग्रेस में लगातार कमलनाथ के खिलाफ उठ रही आवाजों के बीच उनके इस बयान के कई तरह के मायने निकाले जा रहे हैं। कमलनाथ सिर्फ कोई पद छोड़ने की बात कर रहे हैं या फिर राजनीति से विदाई लेने की बात कर रहे हैं, इस पर कयास लग रहे हैं। कमलनाथ इन दिनों अपने बेटे के साथ छिंदवाड़ा के दौरे पर हैं, जो उनका गढ़ माना जाता है।

बता दें कि अभी कमलनाथ मप्र विधानसभा में विपक्ष के नेता होने के साथ-साथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। ऐसे में हाल ही में जब उपचुनावों में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी तो लगातार कई नेताओं, विधायकों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू कर दिया। राज्य में नेता लगातार कह रहे हैं कि अब किसी युवा नेतृत्व की जरूरत है और हार का ठीकरा कमलनाथ पर फोड़ रहे हैं। राज्य में कमलनाथ पर गलत टिकट बंटवारे, कमजोर उम्मीदवारों और गलत रणनीति का आरोप लगा।

आपको बता दें कि इससे पहले जब राज्य में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब भी मुख्यमंत्री पद के लिए कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में भिड़ंत हुई थी। तब कमलनाथ तो मुख्यमंत्री बन गए थे, लेकिन कुछ वक्त बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था। इसी का खामियाजा कांग्रेस अब तक उठा रही है, पहले सिंधिया समर्थक विधायकों के इस्तीफे से कमलनाथ की सरकार गिर गई और उसके बाद अब उपचुनावों में अधिकतर विधायकों ने भाजपा के टिकट से जीत हासिल कर ली।  केंद्रीय राजनीति में अपना दबदबा बनाने के बाद चुनाव से ठीक पहले कमलनाथ राज्य की राजनीति में एक्टिव हुए थे, उन्हें मुख्यमंत्री पद भी मिल गया था। लेकिन लगातार हार, सिंधिया के पार्टी छोड़ने और उससे पैदा हुए असर से कमलनाथ लगातार बैकफुट पर आते गए हैं।

भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर ने कमलनाथ के बयान पर चुटकी ली। उन्होंने कहा, पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने राजनीतिक संन्यास की घोषणा कर दी है। अब उन्हें भोपाल में अपना सरकारी मकान वापस कर देना चाहिए। वह अपना कारोबार बंद करें और अपने घर में आराम करें। हालांकि भाजपा नेता के बयान पर टिप्पणी करते हुए कमलनाथ ने कहा कि मेरे कहने का मतलब यह था कि जिस दिन छिंदवाड़ा की जनता चाहेगी उस दिन मैं संन्यास लूंगा।

कमलनाथ यदि राजनीति से संन्यास लेते हैं तो क्या मप्र में कांग्रेस नेतृत्व विहीन हो जाएगी? पंद्रह साल बाद राज्य की सत्ता में कांग्रेस की वापसी कमलनाथ के नेतृत्व में ही हुई थी, लेकिन कमलनाथ सरकार पंद्रह माह भी ठीक से नहीं चल सकी। ज्योतिरादित्य सिंधिया का अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो जाने के कारण विधानसभा में कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई। सरकार गिर जाने के बाद कमलनाथ पर संतुलन बनाकर सरकार न चला पाने के आरोप दबी जुबान से कांग्रेसी लगा रहे हैं। अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में भी उनका समर्थन करने वाला नेता नहीं है।

कमलनाथ ने अपने निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा में राजनीति छोड़ने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने गत दिनों छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा में आयोजित कांग्रेस के एक कार्यक्रम में कहा कि जिले की जनता और कार्यकर्ताओं से उनके सदैव पारिवारिक संबंध रहे हैं। इस आधार पर यदि सब चाहते हैं कि अब मैं आराम करूं तो मैं रिटायर्ड होने के लिए तैयार हूं। इस पर प्रतिक्रिया में सब लोगों ने खड़े होकर कहा कि आपको आराम नहीं काम करना है और फिर से सरकार बनाना है। अपने रिटायरमेंट के सवाल पर कमलनाथ कहते हैं- जिले की जनता ने मुझे सब कुछ दिया है, जिसकी वजह से ही आज मैं इस मुकाम पर हूं, जिस दिन जनता कहेगी उस दिन मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा। उल्लेखनीय है कि 28 सीटों के विधानसभा उपचुनाव के नतीजों के बाद से मप्र में कांग्रेस के भीतर ही भीतर असंतोष पनप रहा है। नेतृत्व परिवर्तन की मांग भी इक्का-दुक्का नेता उठा रहे हैं। कमलनाथ वर्तमान में मप्र कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के साथ-साथ कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रतिपक्ष हैं।

कमलनाथ के नेतृत्व पर सबसे ज्यादा सवाल दिग्विजय सिंह समर्थकों की ओर से ही खड़े किए जा रहे हैं। श्योपुर जिले के विधायक बाबूलाल जंडेल ने कहा कि यदि उपचुनाव में दिग्विजय सिंह को आगे रखा जाता तो कांग्रेस की पराजय न होती। राज्य में जिन 28 सीटों पर उपचुनाव के नतीजे पिछले माह आए हैं, उनमें कांग्रेस को सिर्फ 9 सीटें ही मिल पाई हैं। जबकि जिन सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें 27 सीटें आम चुनाव में कांग्रेस ने जीती थीं। इन सीटों से जीते विधायकों ने ही मार्च में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देने वाले विधायकों का आरोप था कि कमलनाथ की आड में सरकार दिग्विजय सिंह चला रहे हैं। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ रणनीति के तहत ज्योतिरादित्य सिंधिया को नुकसान पहुंचाने में लगे हैं।

2018 में हुए विधानसभा के आम चुनाव में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाए जाने के साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रचार अभियान का प्रमुख बनाया था। दिग्विजय सिंह के चेहरे को पर्दे के पीछे रखा गया था। राज्य में सरकार बनने के बाद सिंधिया को हाशिए पर डाल दिया गया। उन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष भी नहीं बनने दिया गया। नतीजा वे अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा में चले गए।

मार्च में सत्ता हाथ से निकल जाने के बाद भी कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के साथ-साथ विधायक दल के नेता भी बने रहे। जबकि दिग्विजय सिंह समर्थक डॉ. गोविंद सिंह को प्रतिपक्ष का नेता बनाए जाने का दबाव भी उन पर था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी कमलनाथ के मामले में दखल नहीं दिया। मप्र भाजपा के प्रवक्ता हितेष वाजपेयी कहते हैं कि कमलनाथ पद से चिपके रहना चाहते हैं। जबकि उनकी स्वीकार्यता ही नेताओं के बीच नहीं है। कमलनाथ ने 1980 में पहली बार छिंदवाड़ा से लोकसभा का चुनाव लड़ा था। अपवाद स्वरूप एक बार को छोड़कर वे लगातार यहां से चुनाव भी जीतते रहे, लेकिन वे मप्र की राजनीति में मैदानी स्तर पर सक्रिय नहीं रहे। दिल्ली में अपने प्रभाव का उपयोग कर समर्थकों को टिकट अथवा महत्वपूर्ण पद दिलाते रहे। कमलनाथ की पूरी राजनीति अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह का समर्थन कर चलती रही। माधवराव सिंधिया और उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया से उनका विरोध रहा है। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के कारण राज्य में नया नेतृत्व भी उभरकर सामने नहीं आ पाया है।

कमलनाथ के विकल्प के तौर पर एक ही नाम हमेशा सामने आता है। यह नाम पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का है, लेकिन उनकी बहुसंख्यक विरोधी छवि के कारण पार्टी नेतृत्व सौंपने से झिझकती है। दूसरा नाम अजय सिंह का है और वे पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पुत्र हैं। परंपरागत निर्वाचन क्षेत्र चुरहट से चुनाव हारने के बाद हाशिए पर हैं। कमलनाथ से भी इनकी दूरी दिखाई देती है। पूर्व उपमुख्यमंत्री स्वर्गीय सुभाष यादव के पुत्र अरुण यादव को पार्टी एक बार पांच साल अध्यक्ष बनाकर देख चुकी है, लेकिन वे अपने आपको स्थापित नहीं कर पाए। नई पीढ़ी में दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह को नेतृत्व दिए जाने की मांग यदाकदा उठती रहती है। कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ की संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं। नकुलनाथ छिंदवाड़ा से सांसद हैं। कमलनाथ की तरह उनका चेहरा भी कोई खास लोकप्रिय नहीं है। राहुल गांधी के टीम मेंबर के तौर पर जीतू पटवारी का नाम भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चर्चा में रहता है। पटवारी युवक कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं। इस कारण उनका नेटवर्क भी है और वे पंद्रह महीने की सरकार में मंत्री भी रहे हैं।

संन्यास वाले बयान पर पॉलिटिकल बवाल?

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा है यदि छिंदवाड़ा की जनता कहेगी तो संन्यास ले लूंगा। उनके इस बयान के बाद मप्र में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। पार्टी नेता इस बयान के अपनी तरह से मायने निकाल रहे हैं। कमलनाथ समर्थक कह रहे हैं कि क्षेत्र की जनता के बीच ऐसे बयान देना आम बात है, लेकिन अन्य गुटों के नेता कह रहे हैं कि सत्ता जाने के बाद कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष हैं। कमलनाथ ने सौंसर में संन्यास लेने के संकेत क्यों दिए? इसके पीछे वजह चौरे परिवार को बताया जा रहा है, जिसे कमलनाथ राजनीति में लाए थे। कमलनाथ ने रेवानाथ चौरे (अब दिवंगत) को विधायक का टिकट देकर राजनीति में उतारा था। वे अर्जुन सिंह की सरकार में दो बार मंत्री बने। इसके बाद सौंसर से उनकी पत्नी कमला चौरे विधायक बनीं। उनके बेटे अजय चौरे विधायक रह चुके हैं। वर्तमान में विजय चौरे विधायक हैं। सूत्रों का कहना है कि अजय चौरे के भाजपा में जाने से कमलनाथ नाराज हैं, इसलिए उन्होंने संन्यास लेने वाला बयान सौंसर जाकर दिया।

अनुसूचित जाति और आदिवासी चेहरे का भी विकल्प है

कमलनाथ की चिंता अपने पुत्र नकुलनाथ की राजनीति की है। उपचुनाव के प्रचार में नकुलनाथ ही कमलनाथ के साथ हर महत्वपूर्ण जगह मौजूद थे। दिल्ली की राजनीतिक स्थितियां भी कमलनाथ के अनुकूल दिखाई नहीं दे रही हैं। राहुल गांधी से उनकी दूरी अभी भी बनी हुई है। कमलनाथ खुद आगे आकर पार्टी अध्यक्ष अथवा विधायक दल की जिम्मेदारी नहीं छोड़ना चाह रहे हैं। नकुलनाथ के स्थापित होने से पहले कमलनाथ राजनीति छोड़ेंगे, यह संभव दिखाई नहीं देता है। कांग्रेस के मीडिया प्रभारी नरेंद्र सलूजा कहते हैं कि कमलनाथ कुर्सी की राजनीति नहीं करते वे सेवा करने मप्र में आए हैं। वर्तमान राजनीतिक हालतों को देखा जाए तो यह तय है कि दो में से कोई एक पद कमलनाथ को छोड़ना होगा। कमलनाथ विधायक दल के नेता का पद छोड़ सकते हैं। इस पद के लिए उनकी ओर से विजयलक्ष्मी साधौ का नाम आगे बढ़ाया गया है। साधौ अनुसूचित जाति वर्ग से हैं। आदिवासी वर्ग से बाला बच्चन का नाम भी विकल्प के तौर पर दिया गया है।

- लोकेन्द्र शर्मा

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^