मध्यप्रदेश सरकार प्रदेश की आवाम के लिए राइट-टू-वाटर एक्ट लाने जा रही है। हर कंठ को साफ पानी मुहैया कराने की दिशा में बड़े स्तर पर मंथन चल रहा है। इस मंथन में जल संसाधन मंत्री और ग्रामीण विकास मंत्री, अपनी-अपनी टीम को लेकर एक साथ हैं। वहीं, पानी का कानून लाने के लिए कई कार्यशालाएं आयोजित की जा चुकी हैं। पिछले दिनों हुए एक सम्मेलन में तो देशभर के जलविद् और विषय विशेषज्ञों ने सरकार को सुझाव दिए। सरकार ने इनके अनुभवों और विचारों को एकत्रित कर पानीदार कानून लाने की ओर तेजी से कदम बढ़ाए हैं। मुख्यमंत्री कमलनाथ खुद इसकी मॉनीटरिंग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री प्रदेश के जलसंकट से स्थायी तौर पर निपटना चाहते हैं। वहीं, समाज को पानी पर अधिकार देना चाहते हैं। मध्यप्रदेश सरकार का लक्ष्य अपने नागरिकों को उनके घर पर ही प्रतिदिन 55 लीटर पानी उपलब्ध कराना है।
दरअसल, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रत्येक नागरिक को प्रदूषणमुक्त पानी उपलब्ध कराने का प्रावधान है। राष्ट्रीय जल नीति 2012 के पेरा 2.2 के अनुसार राज्यों द्वारा पानी के प्रबंध को सार्वजनिक धरोहर के सिद्धांत के आधार पर करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। संयुक्त राष्ट्रसंघ और मानवाधिकार काउंसिल ने भी पेयजल को मानवाधिकार के रूप में मान्यता देने पैरवी की है। इन सारे प्रावधानों का मकसद बिना भेदभाव के हर नागरिक को उसकी दैनिक जरूरत का शुद्ध पानी, उपलब्ध कराना है।
प्रदेश के जलसंकट का जायजा लेने से पता चलता है कि गर्मी आते-आते अनेक इलाकों में पेयजल संकट गहरा जाता है। वह आपाधापी का दौर होता है। उस दौर में सरकार और समाज पानी की कमी से जूझते हैं। सभी जगह पानी की कमी का अहसास होता है। बुंदेलखंड, मालवा, ग्वालियर-चंबल और दक्षिण मध्यप्रदेश के अनेक स्थानों में पानी की कमी सबसे अधिक होती है। यह तकलीफ गहरी खदानों वाले इलाकों में भी देखी जाती है। सरकार को एहसास हो गया है कि जलसंकट का संबंध सूखे दिनों से है। सूखे दिनों की जलसंकट की यह हकीकत, राज्य सरकार के मौजूदा चिंतन में नजर आती है। उसे अच्छी तरह समझ में आ रहा है कि प्रदेश का जलसंकट, पूरी तरह से बरसात की कमी के कारण नहीं है। हकीकत में जलसंकट की शुुरुआत बरसात के बाद होती है। अगली बरसात तक चलती है। यानी जलसंकट का समय दो बरसात के बीच के सूखे 8 महीनों में होता है। इन्हीं 8 महीनों में नदियों, जलाशयों, कुओं, हैंडपंप से पानी खींचा जाता है। अर्थात् भूजल दोहन प्रारंभ होता है, भूजल स्तर नीचे गिरने लगता है। भूजल स्तर के नीचे गिरने के कारण नदी-नाले, कुएं, तालाब और नलकूप सूखने लगते हैं। जाहिर है, सूखे दिनों के लिए अपनाई मौजूदा रणनीति कारगर नहीं है। उस पर संकट के बादल गहराने लगे हैं। उससे भी बड़ा संदेश है, उस स्थिति को हासिल किया जाए जिसको हासिल करने के बाद जलसंकट को पनपने का अवसर ही न मिले। यही कारण है, प्रदेश के दो बड़े विभाग एक मंच पर आकर उस रोडमैप को क्रियान्वित करना चाहते हैं जिस पर चलकर जलस्त्रोतों के संकट का स्थायी समाधान मिल सकता है। इसके लिए पीएचई के संकल्प और ग्रामीण विकास विभाग की मौजूदा योजनाओं को देखना और समझना होगा।
40 नदियों को 12 महीने जिंदा रखेंगे
ग्रामीण विकास विभाग प्रदेश की लगभग 100 किलोमीटर बहने वाली 40 नदियों पर काम कर रहा है। इस काम का लक्ष्य है सूखे महीनों में इन 40 नदियों के प्रवाह को बढ़ाना। उनके पुराने बारह मासी चरित्र को बहाल करना। इसे हासिल करने के लिए जिस गाइडलाइन पर काम किया जा रहा है, उसके तहत नदी कछार की सीमा से लेकर मुख्य नदी के पास तक, परम्परागत तालाबों की तर्ज पर गहरे और बड़े आकार के तालाबों का निर्माण किया जाना है। इसका उद्देश्य अधिक से अधिक वर्षाजल का संचय और गहराई के कारण भूजल रीचार्ज करना है। भूजल दोहन के कारण नीचे उतरने वाली वाटर टेबिल की गिरावट को यथासंभव कम करना भी मकसद है। जाहिर है, वाटर टेबिल की गिरावट की रोकथाम का लाभ जलस्त्रोतों को मिलेगा। प्रदूषण अपने आप कम होगा। पानी के साफ होने का रास्ता साफ होगा।
ग्राम सरोवर विकास प्राधिकरण बनेगा
ग्रामीण विकास विभाग की दूसरी पहल तालाब निर्माण को लेकर है। पिछले माह ग्रामीण विकास मंत्री ने जल का अधिकार तथा नदी पुनर्जीवन के लिए आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में इसकी जानकारी दी थी। इसके अनुसार ग्रामीण विकास विभाग ग्राम सरोवर विकास प्राधिकरण का गठन करेगा। यह स्वतंत्र निकाय होगा। इसका अपना बजट होगा। इस प्राधिकरण के गठन का उद्देश्य प्रदेशभर में तालाबों और जल स्त्रोतों को संरक्षित करना है। इस प्राधिकरण के गठन के बाद अगले पांच साल में हर गांव के पास अपना तालाब होगा। इसके साथ-साथ गांव के प्राचीन तालाबों का भी गहरीकरण किया जाएगा। जिन गांवों में तालाब नहीं हैं, उन गांवों में नए तालाब खोदे जाएंगे। धन की व्यवस्था सरकार करेगी। प्रदेश में प्राचीन तालाबों की ही संख्या लाखों में है। इन कामों की बदौलत लाखों हेक्टेयर मीटर पानी धरती के पेट में और तालाबों में जमा होगा। यह काम जल स्वराज की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। इस पर पर्यावरण और जलविद् अनुपम मिश्र ने अपनी किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’ में विस्तार से बात की है। यह किताब गहन पड़ताल के साथ लिखी गई है।
- नवीन रघुवंशी