मिलेट मिशन
21-Mar-2020 12:00 AM 421

 

मध्यप्रदेश में पोषण और स्वाद से भरपूर मोटे अनाज के दिन फिरने वाले हैं। किसान खराब बाजार, बीजों की अनुपलब्धता और जागरूकता के अभाव में मिलेट्स श्रेणी के अनाज से दूर होते जा रहे हैं। सरकार ने इस बात को ध्यान में रखकर इस वर्ष मिलेट अनाजों के लिए एक नीति बनाने की घोषणा की। इसके तहत छोटे दानों का खाद्यान्न उत्पादन और उपयोग बढ़ाने के लिए मिलेट मिशन कार्पोरेशन बनाया जाएगा। कमलनाथ ने अधिकारियों को मिलेट मिशन को गति देने के लिए निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री ने संबंधित विभागों के जिला अधिकारियों की बैठक में कहा कि प्रोजेक्ट में कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा, रागी, समा इत्यादि फसलों को शामिल किया जाए। प्रोजेक्ट में ऑर्गेनिक खेती की जैविक प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को शामिल करते हुए प्रोसेसिंग एवं मार्केटिंग की सुविधा भी उपलब्ध कराने की बात शामिल है।

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने फरवरी में हुई मिलेट मिशन की समीक्षा बैठक के दौरान कोदो-कुटकी के उत्पादन को दोगुना करने और इसके उपार्जन के साथ ही उत्पादों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग करने के निर्देश अधिकारियों को दिए। मुख्यमंत्री ने पर्यटन विभाग के होटलों में कोदो-कुटकी से बने व्यंजनों को मेन्यू में शामिल करने तथा उनके बिक्री केंद्र भी अनिवार्य रूप से स्थापित करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि कोदो-कुटकी, ज्वार-बाजरा एवं मक्का ऐसी फसलें हैं, जो ज्यादातर आदिवासी इलाकों में होती हैं और जिसका जरूरत के मुताबिक आदिवासी उत्पादन करते हैं। वह मानते हैं कि यह एक ऐसी प्रीमियम फसल है, जो स्वास्थ्यवर्धक है। इस कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी मांग है।

गौरतलब है कि गत वर्ष प्रदेश में 43 लाख 99 हजार हेक्टेयर में मोटे अनाज बोने का लक्ष्य रखा गया था। इन अनाजों में धान, ज्वार, मक्का, बाजरा, कोदो आदि शामिल था। इस आंकड़े में अकेले धान और मक्का का रकबा अधिक था। मोटे अनाज न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं बल्कि इन्हें उपजाने में पानी की कम मात्रा लगती है। कम-कम पानी और बंजर भूमि तथा विपरीत मौसम में भी ये अनाज उगाए जा सकते हैं। सल्हार, कांग, ज्वार, मक्का, मडिया, कुटकी, सांवा, कोदो आदि में अगर प्रोटीन, वसा, खनिज तत्व, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, ऊर्जा कैलोरी, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, फोलिक ऐसिड, जिंक तथा एमिनो एसिड की मात्रा गेंहू और चावल जैसे अनाज की तुलना में काफी अधिक होती है। बाजरा में विटामिन बी और आयरन, जिंक, पोटैशियम, फॉसफोरस, मैग्नीशियम, कॉपर और मैंगनीज जैसे आहारीय खनिजों की उच्च मात्रा होती है। इसी तरह ज्वार भी पौष्टिक गुणों से भरा होता है।

केंद्र सरकार ने वर्ष 2018-19 के लिए खरीफ फसलों में एमएसपी यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की है। हाईब्रिड ज्वार को 1700 से बढक़र 2430 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया है, वहीं मालदांडी ज्वार का समर्थन मूल्य 1725 से बढ़ाकर 2450 कर दिया गया है। बाजरा के मूल्य में भी 525 रुपए की बढ़ोतरी की गई है। यह अब 1950 रुपए प्रति क्विंटल बिकेगा। रागी का समर्थन मूल्य 1900 से बढक़र 2897 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया है। किसानों का मानना है कि इसका असर धीरे-धीरे दिखेगा। होशंगाबाद जिले के किसान प्रतीक शर्मा बताते हैं कि मक्का का समर्थन मूल्य बढऩे के बाद किसानों का रुझान उस तरफ बढ़ा है। हालांकि, किसान इस बात से भी सशंकित रहते हैं कि कहीं केंद्र सरकार ने मूंग की फसल की तरह ही खरीफ खरीदने में आनाकानी की तो बाजार में उस फसल की कीमत नहीं मिल पाएगी।

जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के एग्रेनॉमी के प्रोफेसर डॉ. एमएल केवट बताते हैं कि मोटे अनाज से दूरी की बड़ी वजह इसका बाजार खराब होना है। मक्का पशु के चारे के लिए बिक जाता है लेकिन बाजरा, ज्वार और कोदो को आसानी से बाजार नहीं मिल पाता। हालांकि, कोदो, बाजरा को जब आम आदमी बाजार में खरीदने जाता है तो उसे काफी अच्छी कीमत चुकानी होती है, लेकिन किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पाता। इसकी दूसरी वजह तिलहन फसल विशेषकर सोयाबीन का बढ़ता बाजार है। यहां सोयाबीन की मांग इतनी अधिक है कि ये काफी आसानी से बिक जाता है।

आदिवासी किसान के लिए 50 फीसदी फसल का लक्ष्य

मुख्यमंत्री ने कहा कि निजी क्षेत्र के सहयोग से कोदो-कुटकी के बुवाई क्षेत्र में डेढ़ गुना विस्तार करने के साथ ही आदिवासी किसान 50 प्रतिशत तक इन फसलों की बुवाई करें। इसके लिए कृषि और ग्रामीण विकास विभाग निजी क्षेत्रों के सहयोग से सुनियोजित रणनीति तैयार की जा रही है। सरकार का अनुमान है कि इस योजना से किसानों की आय में 20 से 25 प्रतिशत का इजाफा कर सकेंगे। इस मिशन में ग्रामीण विकास विभाग के आजीविका मिशन, निजी क्षेत्र के एनजीओ, समितियों और फार्मर प्रोड्यूस कंपनियों का सहयोग लिया जाएगा। मिलेट मिशन के अंतर्गत आने वाली फसलों के प्रमाणित बीजों के अनुसंधान पर भी काम किया जा रहा है।

- कुमार राजेन्द्र

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