मप्र कृषि प्रधान प्रदेश है। पिछले 6 सालों से प्रदेश को लगातार कृषि कर्मण अवार्ड मिल रहा है। जो इस बात का संकेत है कि प्रदेश में खेती सबसे बड़ा व्यवसाय है। लेकिन इस व्यवसाय में कई कठिनाईयां भी हैं। इन कठिनाईयों को देखते हुए कंपनियां इनके समाधान के लिए नए-नए तरीके बाजार में ला रही है, जिससे उनकी जमकर चांदी कट रही है। इनमें से एक है कीटनाशक। फसलों को कीटों और प्राकृतिक कोप से बचाने के लिए प्रदेश में बड़ी मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग होता है। जिसके कारण मप्र कीटनाशक बनाने और बेचने वाली कंपनियों के लिए स्वर्ग बना हुआ है।
वैसे मप्र ही नहीं, बल्कि देश-विदेश में कीटनाशक की मांग लगातार बढ़ रही है। इस कारण दुनिया की पांच सबसे बड़ी कीटनाशक बनने वाली कंपनियां अपनी आय का करीब एक तिहाई हिस्सा हानिकारक कीटनाशकों को बेचकर कमाती हैं। यह केमिकल पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं। चौंका देने वाला सच दो प्रमुख गैर लाभकारी संस्था ‘अनअर्थड’ एंड ‘पब्लिक आई’ द्वारा की गई संयुक्त जांच में सामने आया है। अध्ययन के अनुसार यह कंपनियां अपने अत्यधिक हानिकारक कीटनाशकों (एचएचपी) को अधिकतर विकासशील देशों में बेच रही हैं। विश्लेषण के अनुसार जहां भारत में इन कंपनियों द्वारा बेचे गए कुल कीटनाशकों में एचएचपी का हिस्सा करीब 59 फीसदी था जबकि उन्होंने ब्रिटेन में सिर्फ 11 फीसदी एचएचपी की बिक्री की थी।
यह शोध 2018 के टॉप-सेलिंग क्रॉप प्रोटेक्शन प्रोडक्ट्स के विशाल डेटाबेस के विश्लेषण पर आधारित है। जिसमें उन्होने इन कंपनियों द्वारा 43 प्रमुख देशों में बेचे जाने वाले कीटनाशकों का विश्लेषण किया है। जिससे पता चला है कि दुनिया की प्रमुख एग्रोकेमिकल कंपनियों ने अपनी बिक्री का 36 फीसदी हिस्सा अत्याधिक हानिकारक कीटनाशकों को बेचकर कमाया है। इनके अनुसार इन कंपनियों ने वर्ष 2018 में करीब 34,000 करोड़ रुपए के हानिकारक कीटनाशकों की बिक्री की है। यह हानिकारक कीटनाशक इंसानों के लिए तो नुकसानदेह हैं ही, साथ ही यह जानवरों और इकोसिस्टम पर भी बुरा असर डालते हैं। यह केमिकल इंसानों में कैंसर और उनकी प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इन एग्रोकेमिकल दिग्गजों में बीएएसएफ, बेयर, कोर्टेवा, एफएमसी और सिन्जेंटा शामिल हैं। यह सभी केमिकल इंडस्ट्री के प्रभावशाली समूह क्रॉपलाइफ इंटरनेशनल का हिस्सा हैं।
अध्ययन के अनुसार इनके द्वारा बेचे जाने वाले कुछ कीटनाशक यूरोपीय बाजारों में प्रतिबंधित हैं क्योंकि वो इंसानों और मधुमक्खियों पर बुरा असर डालते हैं, लेकिन विकासशील देशों में लचर कानूनों के चलते यह कंपनियां आराम से अपने केमिकल्स को बेच रही हैं। यही वजह है कि भारत और ब्राजील जैसे देशों में इनको भारी मात्रा में बेच दिया जाता है। अनुमान है कि भारत में इनके द्वारा बेचे जाने वाले कुल कीटनाशकों में 59 फीसदी कीटनाशक अत्यधिक हानिकारक की श्रेणी में आते है जबकि ब्राजील में 49 फीसदी, चीन में 31 फीसदी, थाईलैंड में 49, अर्जेंटीना में 47 और वियतनाम में 44 फीसदी अत्यधिक हानिकारक श्रेणी के कीटनाशक बेचे जाते हैं। जबकि विकसित और विकासशील देशों के बीच तुलनात्मक रूप से देखें तो इन कंपनियों द्वारा विकासशील देशों में करीब 45 फीसदी अत्यधिक हानिकारक कीटनाशकों की बिक्री की गई थी। जबकि विकसित देशों में करीब 27 फीसदी एचएचपी की बिक्री की गई थी।
इस विश्लेषण के अनुसार इन पांच कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले करीब 25 फीसदी कीटनाशक मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। 10 फीसदी मधुमक्खियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं जबकि इनमें से 4 फीसदी इंसानों के लिए अत्यंत जहरीले होते हैं। गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और एफएओ द्वारा एचएचपी को अत्यधिक हानिकारक कीटनाशकों के रूप में परिभाषित किया गया है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं। जिसमें पर्यावरणीय खतरों में जल स्त्रोतों के प्रदूषण, परागण में आने वाली दिक्कतों और पारिस्थितिकी तंत्र पर पडऩे वाले असर जैसी समस्याओं को शामिल किया है। इस खतरे से निपटने के लिए डब्ल्यूएचओ और एफएओ ने न केवल कठोर नियमों की आवश्यकता पर बल दिया है बल्कि उसके क्रियान्वयन पर भी जोर दिया है।
भारत का कीटनाशक बाजार 20 हजार करोड़ रुपए का
भारत में भी हानिकारक कीटनाशक एक बड़ी समस्या हैं। 2018 में भारत का कीटनाशक बाजार 19,700 करोड़ रुपए आंका गया है जिसके 2024 तक बढक़र 31,600 करोड़ रुपए का हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। ऐसे में इन हानिकारक कीटनाशकों की बिक्री एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। जिससे जल्द निपटने की जरूरत है। इसलिए आगामी कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2020 अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में कृषि काफी हद तक इन कीटनाशकों पर ही निर्भर है, जिसमें बड़ी मात्रा में ऐसे कीटनाशक शामिल हैं जिनका अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग मनुष्यों, जानवरों, जैव-विविधता और पर्यावरण के स्वास्थ्य पर भारी असर डाल रहा है। ऐसे में इन हानिकारक कीटनाशकों के उपयोग पर लगाम कसना जरूरी है। इसके साथ ही जैविक खेती को बढ़ावा देना एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
- श्याम सिंह सिकरवार