कोरोना संक्रमणकाल में बिजली कंपनियों की आर्थिक सेहत भी बहुत अच्छी नहीं है। कंपनियों के पास राजस्व नहीं आ रहा है। यही स्थिति रही तो बिजली सप्लाई निरंतर देना आने वाले दिनों में मुश्किल हो सकता है। कंपनियां बिजली के दाम भी बढ़ाना चाह रही है।
मप्र में जल्द ही उपभोक्ताओं को बिजली का झटका लग सकता है। मप्र में उपचुनाव खत्म होने के बाद अब बिजली कंपनियों ने उपभोक्ताओं को महंगी बिजली का झटका देने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। बता दें कि बिजली कंपनियां पहले ही बिजली की दरों में बढ़ोत्तरी करना चाहती थीं लेकिन पहले कोरोना वायरस और फिर प्रदेश में होने वाले उपचुनाव के चलते उनका प्रस्ताव मंजूर नहीं हो पाया। खबर है कि विद्युत कंपनियां बिजली की दरों में 7 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव तैयार करने में जुट गई हैं।
मप्र सरकार बदलने के बाद से अटका हुआ बिजली का नया टैरिफ लागू करने की तैयारी तेज हो गई है। 7 प्रतिशत तक दरें बढ़ाई जा सकती हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है उपचुनाव हो जाना। दरअसल, कोरोनाकाल के अलावा उपचुनाव होने के कारण सरकार भी नया टैरिफ लागू करने के पक्ष में नहीं बताई जा रही थी। 7 महीने तक मामला टलता रहा, सुनवाई भी नहीं हुई। अब उपचुनाव के बाद जल्द फैसला हो सकता है जो बिजली उपभोक्ताओं के लिए भार बढ़ाने वाला होगा। वजह यह है कि सरकार आर्थिक संकट से गुजर रही है और इस साल 8 महीने में मप्र की तीनों बिजली कंपनियों को दो हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है।
जानकार बताते हैं कि पॉवर मैनेजमेंट कंपनी की ओर से तैयार कराई जा रही टैरिफ याचिका में इस बार औसतन 7 प्रतिशत तक बिजली की दरें बढ़ाने की तैयारी है। इसके लिए प्रदेश की तीनों वितरण कंपनियों से लेखा-जोखा मांगा गया है। उन्हें 30 नवंबर तक विद्युत नियामक आयोग के समक्ष याचिका दायर करना है। मौजूदा वित्तीय वर्ष 2020-21 में बिजली कंपनियों ने औसत 5.25 प्रतिशत बिजली के दाम बढ़ाने की अनुमति मांगी थी, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते इस पर निर्णय नहीं हो पाया। लगभग तीन हजार करोड़ रुपए के घाटे की भरपाई के लिए इस बार बिजली बिलों के दामों में बढ़ोत्तरी होना तय माना जा रहा है। पॉवर मैनेजमेंट कंपनी की ओर से अगले वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए टैरिफ बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसमें बीते सालों में हुए नुकसान को जोड़कर बिजली की कीमत तय करने की तैयारी है। तीन हजार रुपए से अधिक घाटे की भरपाई के लिए अलग-अलग श्रेणी में 4 से 12 प्रतिशत तक कीमत बढ़ाने की तैयारी है। औसतन ये 7 प्रतिशत के आसपास रहेगी।
मप्र विद्युत नियामक आयोग में 30 नवंबर तक याचिका पेश करने के लिए मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने तीनों वितरण कंपनियों से आय-व्यय का लेखा-जोखा मांगा है। बिजली कंपनियों ने वर्ष 2019-20 में 5575 करोड़ यूनिट बिजली बेची थी। वहीं 2020-21 में 6 हजार करोड़ यूनिट बिजली बेचने का लक्ष्य रखा है। चालू वित्तीय वर्ष में अगस्त तक कंपनी 2050 करोड़ यूनिट बिजली बेच पाई है। उसे उम्मीद है कि रबी सीजन में डिमांड बढ़ने पर 6 हजार करोड़ यूनिट का लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा।
विद्युत कंपनियां घाटे का हवाला देते हुए बिजली की दरों में इजाफा करने की तैयारी में हैं और वो अपना प्रस्ताव विद्युत नियामक आयोग को जल्द भेज सकती हैं। अगर प्रस्ताव मंजूर होता है तो फिर उपभोक्ताओं को बिजली का करंट लग सकता है। विद्युत कंपनियों का कहना है कि कोरोनाकाल में विद्युत कंपनियों को भी काफी घाटा लगा है और उनके पास राजस्व नहीं आ पा रहा है। अगर दाम नहीं बढ़ाए गए तो संकट बढ़ सकता है और निरंतर बिजली सप्लाई देना भी मुश्किल हो सकता है। बता दें कि साल 2020-21 में बिजली कंपनियों ने औसत 5.25 फीसदी दाम बढ़ाने की अनुमति विद्युत नियामक आयोग से मांगी थी लेकिन पहले कोरोना और फिर उपचुनाव के चलते इस पर कोई फैसला नहीं हो सका। अब जब उपचुनाव हो चुके हैं तो कंपनियां फिर से प्रस्ताव तैयार करने में जुट गई हैं जिन्हें विद्युत नियामक आयोग को भेजा जाएगा।
अभी ये है मौजूदा बिजली के दाम
यूनिट वर्तमान में बढ़ने के बाद अंतर
- 0-50 4.05 4.35 30 पैसे
- 51-100 4.95 5.25 30 पैसे
- 101-300 6.30 6.60 30 पैसे
- 300 से ऊपर 6.50 6.80 30 पैसे
आय-व्यय के आंकलन पर तय होगी दर
मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी के राजस्व महाप्रबंधक फिरोज मेश्राम ने बताया कि बिजली की कीमत तय करने का निर्णय मप्र विद्युत नियामक आयोग करती है। कंपनी अपनी वार्षिक जरूरत के अनुसार आय-व्यय का आंकलन कर दर बढ़ाने की अनुमति मांगती है। नया टैरिफ याचिका बनाने में पिछले साल के गैप को कम करने के लिए दाम बढ़ाने का प्रस्ताव दिया जाएगा। अगले वित्तीय वर्ष में 6500 करोड़ यूनिट के लगभग डिमांड बढ़ने की उम्मीद की जा रही है। ऐसे में बिजली की उपलब्धता और जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए बिजली की कीमतों में बढ़ोत्तरी करना होगा। चालू वित्तीय वर्ष में बिजली कंपनियों ने 39,332 करोड़ रुपए के आय और 41,332 करोड़ रुपए व्यय का आंकलन किया था। इसी दो हजार करोड़ रुपए की भरपाई के लिए कीमतों में 5.25 प्रतिशत की वृद्धि की अनुमति मांगी थी, जो नहीं मिल पाई।
- प्रवीण कुमार