स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत किए हुए लगभग 8 साल हो गए हैं, लेकिन विडंबना यह है कि देश पूरी तरह खुले में शौच मुक्त नहीं हो पाया है। हैरानी की बात यह है कि शौचालय होने के बाद भी मप्र में 33.3 प्रतिशत ग्रामीण आबादी खुले में शौच कर रही है। इसकी वजह है कागजों पर शौचालय, पानी की कमी, घटिया क्वालिटी के शौचालय या आदत में बदलाव नहीं होना आदि। इसका खुलासा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-5) की 2019-21 की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार देश के ग्रामीण इलाकों में आज भी 25.6 फीसदी आबादी खुले में शौच करती है। शहरी क्षेत्र की बात करें तो 6.1 फीसदी आबादी खुले में शौच कर रही है। मप्र में 33.3 प्रतिशत ग्रामीण आबादी शौचालय का उपयोग नहीं कर रही। शहरी क्षेत्रों में 7.1 फीसदी लोग खुले में शौच कर रहे हैं। हालांकि राहत की बात ये है कि 2015-16 के मुकाबले खुले में शौच करने वालों के आंकड़ों में 2019-21 में सुधार हुआ है। देश में 2015-16 में जहां ग्रामीण क्षेत्रों में 54 प्रतिशत से ज्यादा लोग खुले में शौच करते थे तो वहीं शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा 10.5 प्रतिशत था। शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा गांवों में खुले में शौच करने वाले लोगों में 25 प्रतिशत की कमी आई है।
एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार खुले में शौच करने वाले राज्यों में मप्र पांचवें स्थान पर है। बिहार 43.9 प्रतिशत के साथ पहले, झारखंड 41 प्रतिशत के साथ दूसरे, ओडिशा 37 प्रतिशत के साथ तीसरे, तमिलनाडु 33.9 प्रतिशत के साथ चौथे, मप्र 33.3 प्रतिशत के साथ पांचवें और गुजरात 31.4 प्रतिशत के साथ छठे स्थान पर है। मप्र की 33 फीसदी से ज्यादा ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती है। चिंता की बात ये है कि मप्र अभी भी उन शीर्ष राज्यों में शुमार है, जहां ज्यादा लोग शौचालय का प्रयोग नहीं करते। ग्रामीण क्षेत्र में सबसे ज्यादा खुले में शौच करने वाले राज्यों की सूची में मप्र 5वें नंबर पर है। रिपोर्ट के अनुसार खुले में शौच को लेकर ग्रामीण आबादी की सोच में बदलाव हुआ है। 2015-16 में जहां पूरे ग्रामीण भारत की 54 प्रतिशत आबादी खुले में शौच करती थी, तो वहीं साल 2019-21 में 25 प्रतिशत की गिरावट के साथ ये आंकड़ा 25.9 प्रतिशत पर आ गया। यानी भारत की अभी भी 25.9 प्रतिशत ग्रामीण आबादी खुले में शौच कर रही है।
दरअसल, प्रदेश सरकार ने स्वच्छता अभियान के तहत प्रत्येक पंचायत को गांव में शौचालय निर्माण कराने की जिम्मेदारी दी। प्रत्येक शौचालय के लिए 3.50 लाख रुपए दिए गए। पंचायतों ने शौचालयों का निर्माण भी करा लिए, लेकिन अधिकांश पर ताले लगे हैं। बाहर से आने-जाने वाले व ग्रामीण इनका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। ताले लगने का प्रमुख कारण पानी तथा सफाई व्यवस्था का अभाव बताया जा रहा है। सरकार ने जनपद के माध्यम से पंचायतों को शौचालय निर्माण कराने की जिम्मेदारी सौंपी थी। शौचालय के लिए ऐसे स्थान का चयन करना था जहां गांव से निकले वाले बाहरी लोगों के साथ जरूरत पड़ने पर स्थानीय लोग भी इसका उपयोग कर सकें। अधिकांश पंचायतों में बस स्टैंड के पास शौचालय बनवाए गए। 3.50 लाख रुपए में पुरुष व महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय के साथ छत पर पानी की टंकी रखना भी शामिल था। 24 घंटे पानी उपलब्ध कराने के साथ सफाई की जिम्मेदारी भी पंचायत की ही है। सरपंच-सचिवों ने राशि मिलते ही तुरत-फुरत निर्माण कराकर अपना कमीशन तो ले लिया, लेकिन इनके संचालन के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई। शौचालयों पर रखी टंकियों में पंचायत पानी नहीं भर पा रही है। सफाई की व्यवस्था भी नहीं होने से इन पर ताले जड़ दिए गए हैं।
स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत 2 अक्टूबर 2014 को की गई थी जिसका उद्देश्य 2019 तक ग्रामीण क्षेत्र को खुले में शौच मुक्त करना था। जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्र में ग्रामीणों को शौचालय निर्माण के लिए 12 हजार रुपए की राशि दी गई ताकि वह अपने घरों में शौचालय निर्माण करवा सकें लेकिन लापरवाह कार्यप्रणाली के चलते सरकार का यह सपना सिर्फ सपना बनकर रह गया। जिसका उदाहरण ग्रामीण क्षेत्रों में खंडहर हो रहे शौचालय जिनका ठेकेदारी प्रथा के आधार पर निर्माण होने की वजह से गुणवत्ताहीन निर्माण किया गया। यही कारण है कि गांवों में स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने शौचालय उपयोग के लायक ही नहीं है। दरअसल इसके घटिया निर्माण की वजह से यह मजबूती प्रदान नहीं कर पाए कहीं बिना गड्ढ़े के सीट लगाकर उसकी फोटो खींचकर पूरा करा दिया। अधिकारियों के निरीक्षण न करने के कारण ग्राम पंचायत मिलीभगत से यह निर्माण किए गए।
प्रदेश में लाखों शौचालय उपयोग लायक नहीं
प्रदेश खुले में शौच मुक्त राज्य है। यानी 100 फीसदी ओडीएफ। मप्र को ओडीएफ बनाने के लिए सरकार ने 97,60,574 घरों में शौचालय बनवाए हैं। लेकिन भ्रष्टाचार के कारण ये शौचालय कागजों में ही रह गए। प्रदेशभर में लाखों लोग आज भी खुले में शौच करने को मजबूर हैं। दरअसल, प्रदेशभर में जो शौचालय बनाए गए हैं या तो वे कागजों पर बने हैं या फिर गुणवत्ताहीन हैं। सरकार ने कई स्तरों पर इसकी जांच-पड़ताल भी की, लेकिन भ्रष्टाचारियों तक आंच नहीं पहुंची। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी। इसके लिए घर-घर शौचालय के जरिए स्वच्छता की योजना परवान चढ़नी थी, मगर भ्रष्टाचार की गंदगी ने इसे भी गंदा कर डाला। भ्रष्टाचारियों ने गांव में शौचालय निर्माण की योजना को चूना लगा दिया। अब खुले में शौच मुक्त अभियान की सच्चाई खुलकर सामने आने लगी है। सरपंचों और ग्राम सचिवों ने शौचालय निर्माण में जमकर खेला किया। प्रदेशभर में शौचालय निर्माण में जमकर घोटाले हुए हैं। न गड्ढ़ा बनाया, न ही सीट लगाई, केवल दीवार खड़ी कर राशि आहरित कर ली गई है। राजधानी भोपाल, सीहोर, रायसेन, सतना, सीधी, बैतूल, सिंगरौली, खंडवा, बुरहानपुर सहित डेढ़ दर्जन जिलों की स्थिति का आंकलन करने के बाद यह पाया गया कि शौचालय निर्माण में जमकर भ्रष्टाचार किया गया है, जिसके कारण लोग खुले में शौच करने को मजबूर हो रहे हैं।
- अरविंद नारद