01-May-2022 12:00 AM
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दलहन और तिलहन उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र में शुमार बुंदेलखंड के किसानों की मुसीबत बढ़ती जा रही है। लगातार सूखे और प्राकृतिक आपदाओं की मार सहते हुए बुंदेलखंड की कृषि योग्य जमीन बंजर होने की कगार में पहुंच गई है। पानी की कमी या बढ़ता प्राकृतिक असंतुलन कारण चाहे जो भी हो पर यहां की कृषि योग्य भूमि से अति आवश्यक पोषक तत्व कम होते जा रहे हैं। जिससे न केवल कृषि योग्य भूमि घट रही है बल्कि इससे उत्पादन भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। कई जगहों पर खेत बंजर हो रहे हैं। जमीन की उर्वरा शक्ति ऑर्गेनिक कार्बन पर निर्भर करती है और यही यहां पर लगातार कम हो रहा है। इसकी कमी जमीन को बंजर बना देती है।
कृषि मृदा शोध एवं सर्वेक्षण विभाग के वैज्ञानिक हबीब खान के मुताबिक बुंदेलखंड के कई क्षेत्रों में पैदावार बढ़ाने में सहायक खनिज तत्व अपने निम्न स्तर पर पहुंच चुके हैं। जिसके चलते यहां कई क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि बंजर होने लगी है। यह सब किसानों की लापरवाही का नतीजा है, जिन्होंने देसी खादों का प्रयोग पूरी तरह बंद कर सिर्फ रासायनिक खादों को खेती का सहारा मान लिया है। जिसके चलते कृषि योग्य भूमि से पोषक तत्व पूरी तरह नष्ट हो रहे हैं। खान ने बताया कि 2017-2018 में हुए सर्वे के अनुसार ऑर्गेनिक कार्बन 0.8 से घटकर 0.2 से 0.25 फीसदी तक पहुंच गया है। जबकि फास्फेट 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की जगह सिर्फ 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और पोटाश 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की जगह 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के स्तर तक पहुंच गया है। यह स्थिति खेती के लिए बड़े खतरे की ओर इशारा करती है। क्योंकि जिस बुंदेलखंड के किसान एक वक्त में दलहन और तिलहन की अच्छी पैदावार करते थे उसमें अब वे काफी पिछड़ चुके हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि बीज, खाद और पानी के रूप में किसानों का लगाया पैसा भी अब मुश्किल से निकल पा रहा है। हालत इस कदर नाजुक हो चुके हैं कि किसानों की इनकम बढ़ने की बात छोड़िए उनकी लागत निकाला मुश्किल है। यहां के एक बुजुर्ग किसान संतोष सिंह की मानें तो आज से 15 से 20 साल पहले वो एक बीघा खेत में लगभग 25 मन अनाज पैदा करते थे पर आज यह 10 मन रह गया है। बंजर होती जमीन की वजह से उत्पादन कम हो रहा है। पानी की कमी और रासायनिक उर्वरकों ने खेती की स्थिति खराब कर दी है।
कृषि वैज्ञानिक हबीब खान के मुताबकि फसलों की वृद्धि और अच्छी पैदावार के लिए ऑर्गेनिक कार्बन खेती का जरूरी तत्व है। जो पौधों को खड़ा रहने की ताकत देता है। फास्फेट तत्व पौधे की वृद्धि और उनके निर्माण के लिए आवश्यक है। वहीं पोटाश फसल और उसके बीज व फल में चमक पैदा करता है। मतलब उसकी गुणवत्ता बढ़ाता है। इन तत्वों का जमीन से कम होना परेशानी का सबब है। रासायनिक खाद की जगह धीरे-धीरे जैविक खाद का प्रयोग करें तो 3 से 5 साल में जमीन की स्थिति फिर से सामान्य हो सकती है। किसान ऑर्गेनिक कार्बन को पूरा करने के लिए खेत में हरी खाद का इस्तेमाल करें। इसके लिए वो ढैंचा और सनई बो सकते हैं। ढैंचा का बीज 45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डाला जाता है। करीब 35 से 40 दिन में खड़ी फसल को जोत कर खेत में पलटकर उसमें पानी भर दें। ऐसा करने से खेती बेहतर होगी। इसी तरह पोटाश की कमी को दूर करने के लिए 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर खाद को जुताई के दौरान शाम को खेतों में डालें या 33 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से वर्मी कंपोस्ट खाद का प्रयोग करें।
जमीन की घटती उत्पादन क्षमता भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (पूसा) के पूर्व सहायक महानिदेशक डॉ. टीपी त्रिपाठी इसे देश और किसानों दोनों के लिए चिंता का विषय बताते हैं। देश के कई हिस्सों में जमीन लैंड माइनिंग हो रही है, मतलब वो ऊपर से ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खादों को डालकर जमीन का दोहन कर रहे हैं, यही वजह है कि जमीन में कार्बन (जैविक तत्व) और नाइट्रोजन का जो अनुपात होता है वो बिगड़ गया है। विश्व मृदा दिवस के मौके पर केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने एक बयान जारी करके बताया, खेत की मिट्टी से उपज और किसान की आमदनी जुड़ी है, इसलिए उसके खेत की मिट्टी को स्वस्थ रखने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। उन्होंने आगे कहा कि खेत की मिट्टी, कृषि-खाद्य उत्पादन का आधार है। मिट्टी पौधों को पोषक तत्वों और जल की आपूर्ति करती है। दुनिया का 95 फीसदी खाद्य पदार्थ मिट्टी से प्राप्त होता है। स्वस्थ मिट्टी के बिना हम स्वस्थ खाद्य पदार्थ का उत्पादन नहीं कर सकते। मृदा केवल खाद्य वस्तुओं का उत्पादन नहीं करती, बल्कि ये बारिश के पानी को छानती है और कार्बन को स्टोर करती है।
उप्र में हालत और खराब
देश के सबसे बड़े राज्य उप्र में जमीन की हालत और भी खराब है। उप्र कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले डेढ़ दशक से चल रहे उर्वरता संबंधी अध्ययन के मुताबिक, सहारनपुर से लेकर बलिया तक इंडो गैंजेटिक बेल्ट में खेतों की मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा में भारी गिरावट आई है। यही नहीं पूर्वी और पश्चिमी उप्र के इलाकों में पिछले 5-6 सालों में फास्फेट जैसे पोषक तत्व में भी जबर्दस्त कमी देखने को मिली है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की बात करें तो जिंक, कॉपर, आयरन, मैंगनीज आदि भी खेतों से कम होते जा रहे हैं। तिलहनी फसलों की पट्टी के इटावा, मैनपुरी, एटा, कन्नौज, फरुखाबाद और कानपुर जिलों में गंधक तत्व में भी काफी कमी आई है। प्रदेश में खेतों की मिट्टी की उर्वरता परखने के लिए अपनी मिट्टी पहचानों अभियान भी चलाया गया था।
- सिद्धार्थ पांडे