कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था भी लॉक हो गई है। अधिकांश उद्योग-धंधे बंद हैं। शहरों से पलायन कर लोग गांव पहुंच गए हैं। इससे गांवों पर बोझ बढ़ गया है। ऐसी स्थिति में सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत कार्यों को शुरू कराकर तथा श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि कर बड़ी राहत दी है। इससे देशभर में करीब 5 करोड़ और मप्र में करीब 60 लाख लोगों को राहत मिलने की संभावना है। गौरतलब है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम और बचाव के लिए लागू लॉकडाउन में मप्र सहित देशभर में मनरेगा योजनान्तर्गत के तहत चल रहे ग्रामीण विकास के सारे काम ठप पड़ गए थे। इससे गांवों में आजीविका का संकट गहराने लगा था, क्योंकि लाखों संख्या में लोग शहरों से पलायन करके गांव पहुंच गए हैं। ऐसे में केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत लंबित भुगतानों की राशि तो जारी की है, साथ ही लॉकडाउन में ही मनरेगा के काम शुरू करने की अनुमति दे दी है। इससे गांवों में राहत महसूस की जा रही है। लेकिन क्या इससे प्रवासी मजदूरों को लाभ मिलेगा?
गौरतलब है कि प्रदेशभर में मनरेगा योजनान्तर्गत वर्ष 2020-21 के लिए 6 लाख 81 हजार ग्रामीण विकास के काम शुरू हुए हैं। इन सभी कार्यों की लागत 3000 करोड़ से ज्यादा है, लेकिन मध्यप्रदेश में लॉक डाउन होने से सारे विकास के काम ठप पड़े हुए थे। विकास कार्य ठप होने से आदिवासी बाहुल्य ग्रामीण-अंचलों में मनरेगा जॉब कार्डधारी गरीब-मजदूर परेशान होने लगे थे। लेकिन एक बार फिर से काम शुरू हो गए हैं। कोरोना वायरस ने देश के हर वर्ग को प्रभावित किया है। लेकिन पहले से बुरे दौर से गुजर रही ग्रामीण अर्थव्यवस्था इससे बुरी तरह चरमरा रही है। अगर मप्र की बात करें तो यहां 54,903 गांव हैं, लेकिन उनकी स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं है कि वे प्रवासी मजदूरों को रोजगार दे सकें। सरकारी सूत्रों के अनुसार, प्रदेश के इन गांवों में अचानक 10 लाख प्रवासी मजदूर पहुंच गए हैं। जानकारों का कहना है कि मप्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में फिलहाल मई के मध्य तक बेरोजगारी का कोई संकट नहीं है। क्योंकि हर साल ही इन दिनों बड़ी संख्या में बाहर काम कर रहे मजदूर फसल कटाई के लिए वापस अपने गांव आते हैं। लेकिन उसके बाद स्थिति गंभीर हो सकती है।
लॉकडाउन से जहां देश-दुनिया में बेरोजगारी का संकट है, वहीं सरकारी सूत्रों की मानें तो फिलहाल मप्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था इससे काफी हद तक अछूती है। यहां खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों में इतना ज्यादा काम है कि लोगों को बैठने की फुर्सत नहीं है। कृषि विभाग की मानें तो इन दिनों 60-70 फीसदी लोग खेती के कामों में व्यस्त हैं। इससे फिलहाल बेरोजगारी का कोई बड़ा असर नहीं दिखने वाला। लेकिन खेती का काम खत्म होने के बाद इन 10 लाख मजदूरों की रोजी-रोटी का जुगाड़ कैसे होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
मप्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था कितनी सुदृढ़ है इसका आंकलन इसी से किया जा सकता है कि केंद्र सरकार के पैमाने पर मप्र के 80 फीसदी गांव बदहाल साबित हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, आजादी के 70 साल बाद भी गांव पिछड़ेपन से जूझ रहे हैं। गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने ग्राम विकास का स्कोर कार्ड तैयार किया है। इस स्कोर कार्ड में गांवों के विकास के आधार पर 1 से 100 नंबर तक दस श्रेणियां बनाई गई हैं। गांवों को विकास के आधार पर अंक दिए हैं। इस स्कोर कार्ड में मप्र के कुल 54,903 गांवों में से 43,486 गांवों के नंबर 50 से कम हैं। यानी प्रदेश के 80 फीसदी गांव अभी भी पिछड़े हैं। जिन गांवों में विकास का पहिया तेजी से घूमा है उनकी संख्या 11,415 है। इन गांवों के अंक 50 से ज्यादा हैं। जिस आधार पर इन गांवों का सर्वे किया गया है उनमें सड़क, बिजली, पानी और शौचालय जैसी बुनियादी जरूरतों के अलावा जरूरतमंद तक योजनाओं की पहुंच, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, रोजगार और पलायन को भी शामिल किया गया है। ऐसे में यह संभव नहीं है कि इन गांवों में 10 लाख प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिल सके।
गांवों में मनरेगा से दूर की जा रही बेरोजगारी
मप्र सरकार के अधिकारियों का दावा है कि शहरों से पलायन कर गांव लौटे मजदूरों को गांव में रोजगार देने की कार्यवाही शुरू कर दी गई है। मनरेगा से काम लेने के लिए लोगों ने जॉब कार्ड बनवाने के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया है। वहीं गांवों में मनरेगा का काम भी शुरू हो गया है। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि शहर से आने वालों को गांव में रोजगार मुहैया कराया जाएगा। इसी क्रम में मनरेगा से लोगों को रोजगार देने के लिए कार्यवाही शुरू कर दी गई है। प्रदेश में इस साल पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत ग्रामीण विकास के 3 हजार करोड़ रुपए की लागत से 6 लाख काम शुरू हुए थे, लेकिन लॉकडाउन में सब बंद हो गए थे। हालात यह हो गए थे कि मनरेगा के तहत जिन डेढ़ करोड़ गरीब-मजदूरों ने काम के लिए पंजीयन कराया था, उनमें से सिर्फ 90 हजार लोगों को ही काम मिल सका। अब यह बेकाम मनरेगा जॉब कार्डधारी भी काम मांग रहे हैं। दरअसल, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत करीब डेढ़ करोड़ गरीब मजदूरों ने मनरेगा में काम करने अपना पंजीयन कराया है। केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार हर परिवार को 100 दिन का काम देना अनिवार्य है, लेकिन 1 अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 तक की अवधि तक सिर्फ 90 हजार लोगों को ही 100 दिन का काम मिल सका है।
- कुमार राजेन्द्र