35 साल पहले शुरू की गई 400 मेगावॉट क्षमता की महेश्वर बिजली परियोजना को अचानक बंद कर दिया गया है, लेकिन सवाल उठता है कि इस परियोजना पर 4500 करोड़ रुपए स्वाहा करने का जिम्मेदार कौन है? क्योंकि शुरू से इस परियोजना को कागजी करार देकर इसका विरोध होता रहा है। आलम यह है कि 465 करोड़ की प्रस्तावित लागत वाली महेश्वर जल विद्युत परियोजना आज भी अधूरी है और 4500 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। दरउसल, मप्र में उजाले के नाम पर निजी कंपनियों को उपकृत करने का ऐसा खेल चल रहा है कि प्रदेश को हर साल हजारों करोड़ रुपए की चपत लग रही है। देर से ही सही प्रदेश सरकार ने महेश्वर परियोजना को सार्वजनिक हित के खिलाफ मानते हुए परियोजना का विद्युत क्रय समझौता रद्द कर दिया है। इस आदेश के साथ ही परियोजना के लिए दी गई एस्क्रो गारंटी और पुनर्वास समझौते को भी रद्द कर दिया है।
महेश्वर जल विद्युत परियोजना में नर्मदा नदी पर जिले में एक बड़ा बांध बनाया जा रहा है। 400 मेगावॉट क्षमता की परियोजना के निजीकरण के तहत 1994 में एस कुमार समूह की कंपनी श्री महेश्वर हायडल पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड को दिया गया था। राज्य सरकार ने कंपनी के साथ 1994 में विद्युत क्रय समझौता और 1996 में संशोधित विद्युत क्रय समझौता किया था। जिसके अनुसार बिजली बने या न बने और बिके या न बिके फिर भी 35 साल तक निजी परियोजनाकर्ता को समझौते के मुताबिक राशि का भुगतान होता रहेगा। परियोजना की डूब में 61 गांव प्रभावित आ रहे थे। 85 प्रतिशत से अधिक पुनर्वास बाकी है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार महेश्वर परियोजना से 80 करोड़ यूनिट बिजली बनना प्रस्तावित है। परियोजना में निर्मित होने वाली बिजली 18 रुपए प्रति यूनिट पड़ती। जबकि फिलहाल प्रदेश में मांग पूरी करने के बाद 3000 करोड़ यूनिट अतिरिक्त बिजली 2.5 रुपए यूनिट की दर पर उपलब्ध है। ऐसे में मध्य प्रदेश पावर मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड ने परियोजनाकर्ता श्री महेश्वर हायडल पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर को भेजे आदेश में कहा है कि परियोजनाकर्ता ने विद्युत क्रय समझौते के तमाम प्रावधानों का उल्लंघन किया है। परियोजना में वित्तीय धोखाधड़ी हुई है। परियोजना की बिजली की कीमत 18 रुपए यूनिट से अधिक होगी। इस परियोजना में वित्तीय अनियमितताओं के चलते बार-बार परियोजना का काम बंद हुआ। परियोजना स्थल की कुर्की हुई और पिछले 10 सालों से काम ठप है। सरकारों ने परियोजनाकर्ता को लाभ पहुंचाने के प्रयास किए। भारत की सर्वोच्च संस्था नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने 1998, 2000, 2003, 2005 व 2014 की रिपोर्टों में महेश्वर परियोजना के संबंध में गंभीर भ्रष्टाचार का खुलासा किया है। कैग की 2014 की रिपोर्ट में लिखा है कि सरकार क्यों नहीं महेश्वर परियोजना का समझौता रद्द करती है।
परियोजना से 80 करोड़ यूनिट बिजली बनना प्रस्तावित है। फिलहाल प्रदेश में मांग पूरी करने के बाद 3000 करोड़ यूनिट अतिरिक्त बिजली 2.5 रुपए यूनिट की दर पर उपलब्ध है। अब यह परियोजना सार्वजनिक हित में नहीं है इसलिए इसके विद्युत क्रय समझौते 1994 एवं संशोधित समझौते 1996 को रद्द किया जाता है। 20 अप्रैल को आदेश जारी हुए। इसके अलावा पुनर्वास समझौते व 21 अप्रैल के आदेश में परियोजना के संबंध में दी गई एस्क्रो गारंटी को भी रद्द कर दिया है। मामले में नर्मदा बचाओ आंदोलन संयोजक आलोक अग्रवाल का कहना है महेश्वर परियोजना के खिलाफ पिछले 23 साल से विरोध चल रहा है। आंदोलन के मुताबिक महेश्वर बांध से बिजली बनती भी तो खरीदी नहीं जा सकती थी। विद्युत क्रय समझौते के अनुसार बिजली न खरीदने पर भी सरकार को निजी परियोजनाकर्ता को 35 साल तक हर साल लगभग 1200 करोड़ रुपए देना पड़ते। यह राशि 42 हजार करोड़ रुपए होती है। जनता के रुपए लुटने से बच गए। आंदोलन की मांग है ऐसे निजीकरण के फैसलों में जनता के साथ लूट बंद होनी चाहिए। परियोजनाकर्ता ने सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं से आम जनता का करोड़ों रुपए परियोजना के नाम पर लेकर अन्यत्र लगा दिए गए। परियोजनाकर्ता के डिफॉल्ट के कारण 102 करोड़ रुपए एस्क्रो गारंटी भी सरकार को चुकानी पड़ी। यह राशि भी परियोजनाकर्ता से वसूलनी चाहिए।
आंदोलन ने परियोजना के निजीकरण, बांध से प्रभावित होने वाले 60 हजार किसान, मजदूर, केवट, कहार आदि प्रभावितों के लिए पुनर्वास नीति के अनुसार कोई व्यवस्था न करने का विरोध किया था। परियोजना के रद्द होने से प्रदेश की जनता का 42 हजार करोड़ लुटने से बच जाएंगे। आर्थिक हालातों से जूझ रही फिलहाल परियोजना बंद है। कर्मचारियों को सालभर से वेतन नहीं मिला। सालभर पहले नर्मदा में गिरे गेट को भी ठीक नहीं किया गया।
हर साल सरकार पर 2 हजार करोड़ का अतिरिक्त भार
प्रदेश में बिजली का जरूरत से ज्यादा सौदा अब जनता पर बोझ बन चुका है। सालाना करीब 2 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त बिजली के लिए निजी पॉवर प्लांट को भुगतान करना पड़ रहा है। जबकि पूरी बिजली भी इन प्लांट से नहीं ली जा रही है। लॉकडाउन के कारण आधी हो चुकी बिजली की डिमांड में भी सरकार को निजी पॉवर प्लांट को औसत तिमाही में करीब 500 करोड़ रुपए देना पड़ रहे हैं। देशभर में बिजली की मांग कमजोर होने से खरीदार नहीं मिल रहे हैं। मजबूरी में पॉवर प्लांट को बंद रखना पड़ रहा है। बिजली मामलों के जानकार एडवोकेट राजेंद्र अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश में बिजली की उपलब्धता करीब 22 हजार मेगावॉट का दावा किया जा रहा है। जबकि उच्च मांग 1,45,00 से अधिक नहीं पहुंची है। इस समय लॉकडाउन में 6500 से 7 हजार के बीच डिमांड बनी हुई है। पॉवर प्लांट को बंद रखना पड़ रहा है। इसके बावजूद निजी पॉवर प्लांट से फिजूल के करार होने से उन्हें बिना बिजली लिए भी फिक्स चार्ज के नाम पर भारी भरकम रकम देनी पड़ रही है। ये राशि सालाना करीब 2 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है।
- विकास दुबे