देश में कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण किए गए लॉकडाउन का सबसे अधिक असर ग्रामीणों की रोजी-रोटी पर पड़ा है। इसकी वजह यह है कि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंस का पालन कराने के फेर में मनरेगा योजना फंस गई है। ग्राम स्तर पर सामुदायिक कार्य कराने में दूरियां रखी जा रही हैं। इससे श्रमिकों के सामने रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया है। ऐसे में श्रमिक सरकारी मदद पर निर्भर होकर रह गए हैं। मप्र में लाखों लोग अब सरकार की राहत के भरोसे अपने घरों में कैद हैं। ये वे लोग हैं, जो मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों में मजदूरी कर अपना जीवन-बसर करते थे। इन लोगों पर दोहरी मार पड़ी है। एक तो इनको महीनों से मजदूरी नहीं मिली है और उस पर काम भी बंद हो गया है। इन लोगों को वर्तमान के साथ ही भविष्य की भी चिंता सता रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि भारत के लोगों को इस खतरनाक कोरोनावायरस से न सिर्फ अपनी जान बचाने की जरूरत है, बल्कि उन्हें अपनी जीविका भी बचानी है। कोई शक नहीं कि कोरोनावायरस बीमारी (कोविड-19) के फैलाव का सबसे अधिक असर गरीबों पर हुआ है, खासकर ग्रामीण भारत में रहने वाले गरीबों पर। एक तरफ, गरीबों के समक्ष जहां बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं के अभाव के कारण स्वास्थ्य संबंधी संकट है, वहीं दूसरी तरफ जीविका के अभाव में वे गरीबी का दंश झेलने के लिए भी मजबूर हैं। ऐसी परिस्थिति में हमें सोचना चाहिए कि क्या महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) से गांवों में रहने वाले ऐसे लोगों को राहत मिल सकती है या नहीं? यहां यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि क्या मनरेगा ऐसे समय जल संरक्षण के जरिए पानी संकट से देश को उबारने में भी मददगार साबित हो सकता है, जब कोविड-19 के कारण लोग बार-बार हाथ धो रहे हैं? इस क्रम में एक बार उन चीजों पर नजर दौड़ाते हैं, जिनकी घोषणा सरकार ने गरीब मजदूरों की मदद के लिए की है। भारत सरकार जल्द ही मनरेगा के तहत बकाया सभी मजदूरी या पैसे जारी करने जा रही है। ये पैसे सीधे लाभार्थियों के खाते में जाने हैं। एमआईएस के अनुसार, 10 करोड़ अकुशल श्रमिकों की मजदूरी बकाया है। जबकि अकुशल श्रमिकों की मजदूरी पर 694 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जा चुकी है। एमआईएस यह भी बताता है कि वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान जो रकम सीधे कुशल और अकुशल मजदूरों के खाते में डाली गई है, वह 627 करोड़ रुपए है। ग्रामीण रोजगार योजना के तहत कुशल, अर्धकुशल और अकुशल श्रमिक आते हैं। वित्त वर्ष 2020-2021 के दौरान मनरेगा के तहत मुख्य कार्य क्षेत्र क्या हैं?
मनरेगा के तहत मुख्य कार्य क्षेत्र ये तीन हैं, जिनसे मनरेगा के अधिकांश कार्य जुड़े हुए हैं- व्यक्ति विशेष की जमीन, जल संरक्षण और वर्षाजल संग्रह और सूखे की समस्या से निजात के उपाय। मार्च की 13 तारीख तक काम से जुड़ी जो मांगें हैं, वे वित्त वर्ष 2019-20 के अप्रैल महीने तक आने वाली मांगों की महज 15 फीसदी हैं। इससे साफ है कि ग्रुप लेबर वर्क (समूह में श्रम), जो इस ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम का मुख्य फोकस है, उसे कोरोनावायरस के फैलाव को रोकने के लिए हतोत्साहित किया गया है। इसलिए, इस वित्त वर्ष में व्यक्तिगत जमीन पर काम करने को पहली प्राथमिकता दी गई है।
नई जल शक्ति मंत्रालय के तहत जल संरक्षण अभियान का मुख्य काम भी मनरेगा के जरिए ही हो रहा है। लेकिन कोरोनावायरस के खौफ ने ऐसे काम को कम कर दिया है और इस वित्त वर्ष में जल से जुड़े हुए कार्यों पर खर्च किए गए पैसे सभी कार्यों का महज 21.6 फीसदी हैं।
वर्तमान हालात को देखते हुए भारत में काम की मांग (वर्क डिमांड) बढ़ाने के साथ ही जल से जुड़ी योजनाओं पर फोकस करने की भी जरूरत है, क्योंकि यही वक्त की मांग है। पिछले दिनों भारत उस समय चर्चा में आया, जब कोरोनावायरस के फैलाव को रोकने के लिए शहरों में लॉकडाउन किया गया और हजारों की संख्या में मजदूरों ने अपने गांवों की तरफ रुख किया। ऐसे में ग्रामीण रोजगार योजना के तहत इन श्रमिकों को काम का बड़ा अवसर मिल सकता है। सरकार को अब यह देखने की भी जरूरत है कि कैसे इस अवसर का उपयोग जल संरक्षण अभियान में तेजी लाने के लिए भी किया जा सकता है।
मनरेगा की मजदूरी में 20 रुपए की बढ़ोत्तरी
मनरेगा के मजदूरों के लिए राहत भरी खबर है। अब इन लोगों को मजदूरी के तौर पर 182 रुपए की जगह 202 रुपए का भुगतान होगा। केंद्र सरकार ने एडवाइजरी जारी कर दी है, लेकिन लॉकडाउन के चलते काम रुका हुआ है। प्रदेश सरकार से निर्देश नहीं मिल सका है। माना जा रहा है जल्द ही निर्देश जारी हो जाएगा। केंद्र सरकार ने मजदूरी में 20 रुपए की बढ़ोतरी की है। फिलहाल सरकार ने राशन कार्ड धारक मजदूरों को राहत दी है। इसके तहत इन लोगों को मुफ्त में गेहूं और चावल मिल रहा है। पंजीकृत मजदूरों को एक वर्ष में 100 दिन काम मांगने का अधिकार है। ग्राम पंचायतों को हर हाल में काम उपलब्ध कराने की बाध्यता है। इसके चलते मजदूरों का गांव से पलायन रुका है। यह लोग शहर या महानगरों में काम के लिए नहीं जाते हैं। इसके चलते आर्थिक बदलाव भी आया है। पंजीकृत मजदूरों से खेतों को समतल करना, गड्ढे भरना आदि काम कराए जाते हैं। इसके अलावा मनरेगा श्रमिक अपने व्यक्तिगत काम भी कर सकते हैं, इसके लिए उन्हें मनरेगा से मजदूरी का भुगतान होता है।
- श्यामसिंह सिकरवार