को रोना संकट के समय में मनरेगा में रोजगार देने के मामले में मप्र पांचवें स्थान पर है। प्रदेश में प्रवासी श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने मनरेगा के साथ ही अन्य योजनाओं का सहारा लिया है। लेकिन सबसे अधिक मनरेगा में रोजगार दिया गया है। वहीं उत्तर प्रदेश देश में सबसे आगे निकल गया है। देश में मनरेगा के तहत कुल रोजगार में उत्तर प्रदेश की भागीदारी 18 फीसदी रही जो कि किसी भी राज्य से ज्यादा है। वहीं राजस्थान दूसरे स्थान पर है।
एक तरफ मनरेगा जहां प्रवासी श्रमिकों का सहारा बनकर उनकी जीविकोपार्जन का साधन बनी है, वहीं स्थानीय स्तर पर रोजगार का सबसे बड़ा जरिया है। मनरेगा के तहत गांवों के दिहाड़ी मजूदरों को इस महीने जून में पिछले साल के मुकाबले 84 फीसदी ज्यादा काम मिला है। महामारी के मौजूदा संकटकाल में यह योजना न सिर्फ रोजगार देने वाली बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की संचालक भी बनने वाली है। मनरेगा के तहत पूरे देश में इस महीने औसतन 3.42 करोड़ लोगों को रोजाना काम करने की पेशकश की गई है जो कि पिछले साल के इसी महीने के मुकाबले 83.87 फीसदी अधिक है। मप्र में वर्तमान में 25 लाख से अधिक श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोजगार मिला हुआ है।
मप्र में मनरेगा के अंतर्गत लगभग दो लाख कार्यों में 25 लाख 16 हजार 24 श्रमिक रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। गत वर्ष से यह संख्या लगभग दोगुनी है। गत वर्ष 14 जून को 12 लाख 51 हजार 680 श्रमिक मनरेगा में कार्यरत थे। प्रदेश में श्रम सिद्धि अभियान में 8 लाख 38 हजार 243 श्रमिकों को नए जॉब कार्ड प्रदान किए जा चुके हैं। गत वर्ष इसी अवधि में बनाए गए नवीन जॉबकार्डों की संख्या मात्र 1 लाख 84 हजार थी। कोरोना संकट के समय में मनरेगा में रोजगार देने के मामले में उत्तर प्रदेश देश में सबसे आगे निकल गया है। राज्य में 15 जून तक 57 लाख 12 हजार मजदूर मनरेगा में काम कर रहे हैं जो किसी भी राज्य से सबसे ज्यादा है। देश में मनरेगा के तहत कुल रोजगार में उत्तर प्रदेश की भागीदारी 18 फीसदी रही जोकि किसी भी राज्य से ज्यादा है। उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर राजस्थान रहा जहां 53.45 लाख मजदूर मनरेगा में काम कर रहे हैं। राजस्थान ने मनरेगा रोजगार में कुल 17 फीसदी की भागीदारी अब तक दी है। इसके बाद तीसरे नंबर पर 12 फीसदी भागीदारी के साथ 36.58 लाख मजदूरों को रोजगार देने में आंध्रप्रदेश रहा। इसके बाद पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश चौथे और पांचवें स्थान में हैं, दोनों ही राज्यों ने क्रमश: 26.72 और 25.16 लाख मजदूरों को मनरेगा में रोजगार उपलब्ध कराया।
मौजूदा महामारी के दौर में जब मजदूरों और श्रमिकों के हालात समाज और सरकार के सामने जाहिर हैं, तब यह सवाल सहज ही हमारे सामने आता है कि आखिर किन परिस्थितियों ने उन्हें इन हालातों तक पहुंचाया है? गांवों से उखड़ते हुए ये लोग आखिर कौन हैं? क्यों तमाम अनिश्चितताओं के बीच भी कमाने-खाने के लिए ये सब हजारों मील दूर पलायन करते हैं? क्या इनके पास स्थानीय स्तर पर आजीविका के कोई अन्य संसाधन नहीं हैं? इन असहज सवालों का कोई सहज जवाब सरकार और समाज दोनों के पास नहीं है। एक बेहतर कल की तलाश में श्रमिकों को पलायन के लिए प्रेरित या मजबूर करती परिस्थितियां और उसके लगभग अप्रत्याशित परिणाम वास्तव में यह सिखाता और दिखाता है कि उन लाखों श्रमिकों के अधिकार, न्याय और सम्मान के लिए अभी भी बहुत कुछ बदला जाना शेष है। यह कानून और नीतियां मात्र नहीं, बल्कि उस पूरे दृष्टिकोण को बदलने से शुरू होना होगा जिसके पीछे समाज, सरकार और हम सब खड़े हैं।
बहरहाल, योजनाओं के मानसून में आज 'श्रमिक, ग्रामीण समाज और उनके विकास’ के सवालों का केंद्र में होना एक प्रासंगिक पहल तभी साबित होगा, जब इसे ग्रामीण समाज के अपने जल, जंगल और जमीन जैसे संसाधनों के अनियंत्रित दोहन के इतिहास, और पलायन के वर्तमान के वास्तविकताओं की समग्रता में देखा जाएगा। यदि ऐसा नहीं होता तो इसे एक बार फिर ग्रामीण भारत को विकास की प्रयोगशाला में बदलने का प्रयास मान लिया जाएगा। ग्रामीण भारत के विकास का आधा-अधूरा दृष्टिकोण अब तक सुलझे-उलझे आसान प्रयोगों की प्रयोगशाला ही साबित होती रही है। अन्यथा आजादी के सात दशकों में बेहिसाब योजनाओं, नीतियों और प्रयोगों के परिणाम आज इतने अनिश्चित, अप्रासंगिक और अर्थहीन नहीं होते। पलायन की अनिश्चित परिस्थितियां और निश्चित त्रासदी इन अपूर्ण प्रयोगों का ही लगभग पूर्ण उदाहरण है। नई नवेली 'गरीब कल्याण योजना’ के राजनैतिक दर्शन को व्यवहार में बदलने के लिए आखिर जिन रास्तों का प्रयोग किया जाएगा। वास्तव में, वही उसके प्रभाव अथवा अभाव का पैमाना बनेगा।
रोजगार सेतु का उपयोग
मनरेगा के अंतर्गत विभिन्न संरचनाओं का निर्माण ग्रामीण क्षेत्रों में हो रहा है। स्किल मेपिंग के लिए रोजगार सेतु का उपयोग किया जा रहा है। विभिन्न श्रेणियों में कार्य करने वाले श्रमिक सूचीबद्ध किए जा रहे हैं। अब तक 44 हजार 988 श्रमिक इससे जोड़े गए हैं। आत्मनिर्भर भारत में एक लाख 24 हजार 552 प्रवासी मजदूरों को खाद्यान दिया गया। विभिन्न बिल्डर्स, कॉन्ट्रेक्टर्स और कारखाना प्रबंधन से जानकारी एकत्र कर श्रमिकों के रोजगार के लिए श्रेणी वार संभावनाओं को देखा जा रहा है। संबल पोर्टल पर भी 3 लाख 24 हजार 715 लोग पंजीबद्ध हो गए हैं। कोरोना संक्रमण के दौर में श्रमिकों की आर्थिक समस्याओं को दूर करने में इन प्रयासों का विशेष महत्व है। विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा कार्यों से जोड़कर आर्थिक सहारा दिया गया है।
- श्याम सिंह सिकरवार