कहते हैं कि डूबते को तिनके का सहारा बहुत। इन दिनों मनरेगा को हम तिनके का सहारा कह सकते हैं। सरकार के लिए भी और कोरोना वायरस के कारण किए गए लॉकडाउन में बेरोजगार होकर शहरों से अपने-अपने गांव लौट चुके मजदूरों के लिए भी। मप्र सरकार ने तो मनरेगा को ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का सबसे बड़ा माध्यम बना लिया है। लेकिन मप्र में अभी हाल ही में जो आंकड़े सामने आए हैं वे चौंकाने वाले हैं। इन आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 15,088 लोग ऐसे हैं जो 90 साल की उम्र में भी मनरेगा में काम कर रहे हैं। यह इस बात का संकेत है कि अधिकारी-कर्मचारी मिलकर किस तरह इस योजना में घालमेल कर रहे हैं।
मप्र सहित देशभर में 14 साल पुरानी मनरेगा योजना एक बार फिर चर्चा में है। लगभग हर राज्य में मनरेगा के प्रति ग्रामीणों के साथ-साथ सरकारों का रूझान बढ़ा है। मनरेगा के तहत काम की मांग पिछले दो माह से लगातार तेजी से बढ़ रही है, जो यह साबित करता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मनरेगा कितना महत्व रखती है। लेकिन यह बात भी सत्य है कि मनरेगा में भ्रष्टाचार भी खूब होता है। इस योजना का भूतकाल भ्रष्टाचार की कालिख से पुता हुआ है। मप्र में तो मनरेगा में हर स्तर पर भ्रष्टाचार का अपना रिकॉर्ड है। लॉकडाउन के बाद दूसरे प्रदेशों और शहरों से बेरोजगार होकर गांव पहुंचे श्रमिकों के मनरेगा बड़ा संबल बना है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मप्र में मनरेगा के अंतर्गत लगभग 47,03,069 मजदूर कार्यरत हैं। इनमें 3,48,659 मजदूर 61 वर्ष से ऊपर के हैं। हैरानी की बात यह है कि इनमें 15,088 मजदूर 90 वर्ष के ऊपर के हैं। ये आंकड़े मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार को दर्शाते हैं। सवाल उठता है कि जिस उम्र में लोग अपने दैनिक कार्य करने में असमर्थ रहते हैं उस उम्र में 15,088 वयोवृद्ध मनरेगा में मजदूरी कैसे कर पाते होंगे। गौरतलब है कि प्रदेश में पूर्व में स्वर्गवासी हो चुके लोगों को भी मनरेगा में काम करते दर्शाया जा चुका है।
लहार विधायक एवं पूर्व मंत्री गोविंद सिंह का कहना है कि केंद्र सरकार ने मनरेगा में भ्रष्टाचार की खुली छूट दे रखी है। वह कहते हैं कि ग्वालियर-चंबल संभाग में मनरेगा के तहत कोई मजदूर नहीं है फिर भी करोड़ों रुपए का बंदरबांट किया जा रहा है। जहां उपचुनाव होने है, उन क्षेत्रों में करोड़ों रुपए के काम दिए गए हैं। पूर्व मंत्री कहते हैं कि मनरेगा योजना में कोरोना महामारी की आड़ में अप्रैल से जून तक 41 करोड़ 18 लाख 91 हजार फर्जी आईडी से बोगस संस्थाओं को भुगतान किया गया। वर्ष 2019-20 में 75 करोड़ 55 लाख 17 हजार का भुगतान हुआ। जबकि अधिकांश स्थानों पर काम हुए ही नहीं। गोहद के ऐनों पंचायत सरपंच ने तो 2017 में जिपं सीईओ को शिकायत की थी कि जानकारी के बगैर मशीनों से मनरेगा के तहत दो रोड व तालाब का बोगस कार्य कराकर 6 लाख 65 हजार 200 रुपए का भुगतान कराया गया है। सुहास ग्राम पंचायत में सरपंच व प्रभारी सचिव ने मनरेगा में करोड़ों रुपए बिना काम कराए भुगतान कराया है। यहीं अनुसूचित जाति सघन बस्ती विकास योजना के तहत सीसी रोड व नाली निर्माण का दोबारा वर्तमान सरपंच व प्रभारी द्वारा फर्जी भुगतान कराया गया। इसके अलावा स्व कराधान योजना व महात्मा गांधी ग्राम स्वराज एवं विकास योजना में गड़बड़ी की गई। इसी प्रकार रायपुरा, इमलाहा, तैतपुरा गुढ़ा में मशीनों से कार्य कराए गए। वह कहते हैं कि इसी तरह पूरे प्रदेश में मनरेगा में मनमानी और भ्रष्टाचार हो रहा है।
एक तरफ सरकार प्रदेश लौटे हर मजदूर को रोजगार दिलाने का प्रयास कर रही है, दूसरी तरफ पंचायतों में कागजी मजदूर काम कर रहे हैं। वहीं मनरेगा मस्टर्स ने इस आपदा को भी भ्रष्टाचार का अवसर बना लिया है। आलम यह है कि स्पॉट पर काम कर रहे हैं 40-50 मजदूर और मस्टर में दिखाया जा रहा है 70-90 का नाम। काम पर न आने वालों को गैरहाजिर दर्शाए बगैर मस्टर जारी कर बड़े-बड़े बयान दिए जा रहे हैं। काम कराने वालों की चांदी अलग से। इस तरह से मनरेगा के नाम पर भ्रष्टाचार के खेल को इस आपदा में भी अवसर के रूप में तब्दील कर लिया गया है। बता दें कि सरकार ने प्रदेश में मनरेगा का काम शुरू कराया है ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिल सके। लेकिन सरकार की मंशा के विपरीत पंचायतों में अलग ही गोरखधंधा चल रहा है।
अधिकतम उम्र की सीमा नहीं
दरअसल, मनरेगा में अधिकतम उम्र की सीमा का जिक्र नहीं है। इसका फायदा उठाकर अधिकारी-कर्मचारी और सरपंच भ्रष्टाचार को अंजाम देते हैं। प्रदेश सरकार अपने अधिकारियों-कर्मचारियों को 62 वर्ष की उम्र में वृद्ध मानकर सेवानिवृत्त कर देती है, लेकिन मनरेगा में मजदूरों की सेवानिवृत्ति की कोई उम्र नहीं है। श्रमिक का कम से कम 18 वर्ष की आयु का होना अनिवार्य है, लेकिन ज्यादा से ज्यादा आयु के बारे में कुछ भी निर्धारित नहीं है। इसी का फायदा उठाकर उम्रदराज लोगों को भी मनरेगा का मजदूर दिखाया जा रहा है। ऐसे ही 15,088 मजदूर 90 साल की आयु में काम कर रहे हैं जबकि तीन लाख से ज्यादा मजदूर 61 से 80 साल के हैं। ये आंकड़े गले नहीं उतर रहे हैं परंतु मनरेगा की वेबसाइट और अधिकारियों का दावा है कि योजना में इतने उम्रदराज मजदूर भी कार्यरत हैं। जीवन के आखिरी पड़ाव में पहुंचने वाले इन मजदूरों को सिर्फ पानी पिलाने और कार्यों की देखरेख करने की मजदूरी दी जाती है। विभागीय जानकारी के अनुसार, सरकार ने मनरेगा में काम करने वाले और काम मांगने वालों की उम्र के आधार पर अलग-अलग श्रेणियां बना रखी हैं। इसकी शुरुआत 18 से लेकर 80 वर्ष व उससे अधिक तक मानी गई है। पहली श्रेणी 18 से 30 वर्ष तक, दूसरी श्रेणी 31 से 40 वर्ष तक, तीसरी श्रेणी 41 से 50 वर्ष तक, चौथी श्रेणी 51 से 60 वर्ष तक, पांचवीं श्रेणी 61 से 80 वर्ष तक और अंतिम श्रेणी 80 वर्ष से अधिक आयु वाले श्रमिकों की है। प्रदेश में 80 से 90 साल के बीच के करीब 3 हजार मजदूर फिलहाल कार्य कर रहे हैं, जिन्हें 190 प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी मिल रही है।
- विकास दुबे