कुपोषण मुक्त होने के लाख दावे-वादे और घोषणाएं की जाएं परंतु विभागीय आंकड़े सबकी पोल खोलकर रख रहे हैं। साल 2019 दिसंबर में पूरे प्रदेश में 10 लाख से ज्यादा बच्चे कम वजन और 1 लाख से ज्यादा अति कम वजन वाले सामने आए हैं। मतलब साफ है कि प्रदेश में कुपोषण थम नहीं रहा है। जनवरी 2020 में कम वजन वाले 12 हजार से ज्यादा तो 1573 बच्चे अति कम वजन वाले दर्ज किए गए हैं। मध्य प्रदेश में कुपोषण लगातार पैर पसार रहा है। साल 2017 से लेकर 2019 तक की बात करें तो 10 लाख से ज्यादा बच्चे कम और अति कम वजन वाले दर्ज किए गए हैं। 2020 में विभाग पोर्टल पर आंकड़ा दर्ज नहीं कर पा रहा है क्योंकि कोरोना संक्रमण के कारण महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने काम ही नहीं किया है।
मध्यप्रदेश कुपोषण और महिला अपराध में नंबर एक पर है फिर उसके हिस्से की राशि प्रदेश सरकार से खर्च नहीं हुई है। पिछले चार साल में करीब पौने तीन सौ करोड़ सरकार से खर्च ही नहीं हुए। पोषण अभियान के तहत साल 2017-18 से 2019-20 तक 378 करोड़ से ज्यादा का फंड प्रदेश को मिला लेकिन इस फंड का आधा हिस्सा भी बच्चों के पोषण के काम नहीं आया। इसके साथ ही महिला अपराध के तहत मिली राशि का एक चौथाई हिस्सा ही प्रदेश में खर्च हो पाया। निर्भया योजना के तहत आए फंड को खर्च करने में भी सरकार ने ज्यादा रूचि नहीं दिखाई है। इस स्थिति के चलते सरकार की गंभीरता पर सवाल उठने लगे हैं। प्रदेश सालों से महिला अपराध और कुपोषण के मामले में देशभर में कुख्यात रहा है।
कुपोषित बच्चों को पोषण देने के लिए केंद्र सरकार ने पिछले तीन साल में 378 करोड़ 44 लाख रुपए का फंड भेजा। साल 2017-18 में 40.67 करोड़ रुपए, साल 2018-19 में 158.94 करोड़ रुपए और इस साल यानी साल 2019-20 में 178.83 करोड़ रुपए केंद्र सरकार ने मध्यप्रदेश को भेजे। इन तीन सालों में प्रदेश में सिर्फ 124.04 करोड़ रुपए ही खर्च हुए। इन सालों में 254 करोड़ रुपए का कोई उपयोग ही नहीं हुआ। महिला सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार निर्भया फंड के तहत वन स्टॉप सेंटर बनाने के लिए फंड मुहैया कराती है। इन सेंटर्स में पीड़ित महिलाओं को मदद दी जाती है ताकि उनका बेहतर पुनर्वास हो सके और वे समाज की मुख्यधारा में फिर से शामिल हो सकें। प्रदेश में इस काम में भी कोई विशेष रूचि नहीं ली गई। केंद्र सरकार ने प्रदेश को वन स्टॉप सेंटर्स के लिए साल 2016-17 में 7.33 करोड़ रुपए दिए जिसमें से 6.45 करोड़ रुपए ही खर्च हुए। साल 2017-18 में 1.31 करोड़ रुपए दिए गए लेकिन खर्च महज 51 लाख रुपए का हो सका। साल 2018-19 में 11 करोड़ रुपए मुहैया कराए जिसमें से 1.17 करोड़ का खर्च दिखाया गया। साल 2019-20 में 12 करोड़ रुपए का फंड मुहैया कराया गया। इस तरह कुल 31 करोड़ रुपए में से सिर्फ 8 करोड़ रुपए ही इसमें खर्च किए गए।
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत मध्यप्रदेश का प्रदर्शन अच्छा रहा है। इसके लिए प्रदेश सरकार को केंद्र ने पुरस्कृत भी किया है। साल 2017-18 में इस योजना का प्रदर्शन कमजोर था इस साल 123 करोड़ रुपए में से सिर्फ 57 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए। लेकिन इसके बाद नई सरकार ने इस योजना पर भरपूर पैसा खर्च किया। साल 2018-19 में 185 करोड़ केंद्र से मिले जबकि प्रदेश सरकार ने 337 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च किए। इसी तरह साल 2019-20 में 237 करोड़ रुपए केंद्र ने दिए जबकि प्रदेश सरकार ने अपना हिस्सा मिलाकर इस योजना पर 557 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च की।
मप्र में कुपोषण किसी आपदा से कम नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यहां हर दिन करीब 92 बच्चे कुपोषण के कारण काल के गाल में समा रहे हैं। लेकिन हैरानी इस बात की है कि कुपोषण कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया है। अभी तक चुनावी सभाओं में किसी भी पार्टी के प्रत्याशी ने कुपोषण का नाम तक नहीं लिया है। जबकि यथार्त तो यह है कि देशभर में सर्वाधिक शिशु मृत्यु दर मध्यप्रदेश में ही है। वर्षों से प्रदेश इस मामले में अव्वल बना हुआ है। वहीं, मातृ मृत्यु दर के मामले में भी इसका देश में पांचवां स्थान है। यह दुर्भाग्य है कि प्रदेश में कुपोषण का इतना भयावह स्तर होने के बाद भी यह मुद्दा चुनावों में गायब है।
सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे धार जिले में
केंद्र और प्रदेश सरकार कुपोषण को खत्म करने के लिए तमाम कोशिशें कर रही हैं। इसके लिए बड़े-बड़े फंड मुहैया कराए जा रहे हैं। उसके बावजूद मप्र में कुपोषण के मामले कम नहीं हो रहे हैं। प्रदेश में 5 साल से छोटी उम्र के 42 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं। प्रदेश में सबसे अधिक कुपोषण धार जिले में बढ़ा है। यहां 58 हजार 649 कुपोषित बच्चे मिले हैं। वहीं बड़वानी में 50 हजार 714, खरगोन-41 हजार 774, अलीराजपुर 32 हजार 641, मुरैना में 38 हजार 421 और गुना-26 हजार 229 बच्चे कम और अति कम वजन वाले पाए गए हैं। वहीं रीवा-सतना-सीधी, दमोह-सागर, रतलाम और उज्जैन जिले में भी 20 हजार से ज्यादा बच्चे कम और अति कम वजन वाले दर्ज किए गए हैं। प्रदेश में 92 हजार 343 आंगनवाड़ी संचालित हो रही हैं। 95 हजार 350 गर्भवती महिलाओं का पंजीयन आंगनवाड़ी केंद्रों में किया गया है।
- नवीन रघुवंशी