मप्र में एक तरफ मुख्यमंत्री कमलनाथ अवैध खनन, अवैध निर्माण, अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चला रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ एक ऐसा मामला आया है जिसमें 30 वर्ष तक खनन कर लिया और अब वो नया माइनिंग प्लान लेकर पहुंच गए। क्योंकि पुरानी जमीन में कुछ माल बचा नहीं। इस कारण लीज नहीं देने के कारण दो अफसरों की बलि (तबादला) चढ़ गई। इस पूरी घटना के पीछे कांग्रेस के एक कद्दावर और पूर्व में बड़े ओहदेदार रहे नेता और जबलपुर जिले के उनके सखा का हाथ बताया जा रहा है।
दरअसल, मामला जबलपुर जिले के जोली गांव में मेसर्स शुभ ऑक्साइड मिनरल रेड ऑक्साइड के लिए उस भूमि पर उत्खनन की अनुमति मांग रहा था, जो सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इसके लिए कंपनी के एक रसूखदार ने राजनीतिक रसूख के सहारे उक्त भूमि पर खनन के लिए अनुमति मांगने के लिए सारे तिकड़म लगा दिए, लेकिन विभाग के तत्कालीन संचालक विनीत ऑस्टिन ने उसकी दाल नहीं गलने दी। इसके लिए कांग्रेस के कद्दावर नेता ने सरकार पर दबाव डाला, तो सरकार की भी कोशिश नाकाम रही। ऐसे में ऑस्टिन को विभाग से चलता कर उनकी जगह एडिशनल डायरेक्टर एनके हंस को वर्तमान दायित्व के साथ संचालक खनिज का प्रभार सौंपा गया है। सूत्र बताते हैं कि हंस को इसी शर्त पर लाया गया है कि वे नया माइनिंग प्लान स्वीकृत करने में उनकी मदद करेंगे।
दरअसल, इस फर्जीवाड़े की शुरुआत कुछ इस तरह हुई। 1982 में जबलपुर जिले के जोली गांव में गायत्री देवी बंसल को 11.10 हेक्टेयर क्षेत्र में मिनरल ऑक्साइड के खनन के लिए खदान लीज पर आवंटित की गई। गायत्रीदेवी के निधन के बाद उक्त लीज को उनके उत्तराधिकारी रामशरण बंसल को ट्रांसफर की गई। फिर रामशरण बंसल के निधन के बाद लीज उनके दो बेटियों और नाती को नियमानुसार दी गई। उत्तराधिकारियों ने मेसर्स शुभ ऑक्साइड नाम से एक कंपनी बनाई। कुछ वर्ष बाद शुभ ऑक्साइड में कुछ और पार्टनर बना लिए गए, लेकिन इसकी सूचना सरकार को नहीं दी गई।
यही नहीं मेसर्स शुभ ऑक्साइड के तथाकथित पार्टनर और रसूखदार ने षड्यंत्र पूर्वक खनिज अधिकारी और कलेक्टर जबलपुर पर दबाव डालकर जोली गांव में आवंटित खदान में कोई माल बचा नहीं तो उन्होंने बाजू के रकबे का नया माइनिंग प्लान प्रस्तुत किया, जिससे खनिज संचालक सहमत नहीं थे। कद्दावर नेता के दबाव में आकर भी उन्होंने इस नए माइनिंग प्लान को स्वीकृत नहीं किया। तत्पश्चात विभाग ने उक्त अनुमति की जांच के बाद खनिज अधिकारी जबलपुर से स्पष्टीकरण मांगा। खनिज विभाग के द्वारा स्पष्टीकरण मांगे जाने के बाद खनिज अधिकारी जबलपुर ने जांच पड़ताल के बाद सूचित किया कि जिस जमीन को आवंटित किया गया है वह सुप्रीम कोर्ट में विवादित है।
सूत्र बताते हैं कि तत्कालीन संचालक विनीत ऑस्टिन ने जब दोबारा उक्त जमीन का कलेक्टर सीमांकन कराया तो कलेक्टर की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि उक्त क्षेत्र की गलत तरीके से प्लॉटिंग की गई है और नए सिरे से माइनिंग प्लान बनाया गया है। नक्शे में गलत जमीन दिखाई गई है। यही नहीं इस मामले में मेसर्स अलफर्ट प्राइवेट लिमिटेड और अन्नू गोयंका ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है कि यह वन भूमि है। इस रिपोर्ट के बाद तत्कालीन संचालक विनीत ऑस्टिन ने माइनिंग प्लान को अस्वीकृत कर दिया।
विनीत ऑस्टिन द्वारा लीज नहीं दिए जाने को कांग्रेसी नेता और उनके सखा ने प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया। फिर क्या था, सरकार में दखल रखने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और जबलपुर जिले के एक दमदार मंत्री के कहने पर बंद कमरे में मुख्यमंत्री ने एक बैठक विभागीय अधिकारियों के साथ बुला ली। इन दोनों ने मिलकर मुख्यमंत्री कमलनाथ को मामले की जानकारी दी और अनुमति दिलाने के लिए कहा। उक्त बैठक में रसूखदार सखा जोर-जोर से चिल्लाने लगे। उस समय तो मुख्यमंत्री ने उनकी बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया। पर बाद में दमदार कांग्रेसी नेता और मंत्री के कहने पर संचालक को बदल दिया। ऑस्टिन ने मुख्यमंत्री को पूरी हकीकत बयां की। उन्होंने यह भी बताया कि मेसर्स शुभ ऑक्साइड अभी तक जो रकबा उसे 50 वर्ष के लिए लीज पर दिया है उस पर खुदाई कर रहा है। पर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाकर हंस को वर्तमान दायित्व के साथ संचालक खनिज का प्रभार सौंपा गया है। परंतु हंस को संचालक तो दस्तखत करने के लिए बनाया है, इसके पीछे काम करने वाले कोई और अधिकारी होंगे, जो भाजपा सरकार में खनिज मंत्री के खास रहे हैं। उनकी भी शिकायत मुख्यमंत्री को आरटीआई एक्टिविस्ट मिश्रा द्वारा की गई। उन्होंने मांग की है कि उन्हें छत्तीसगढ़ कैडर अलर्ट हुआ तो वे अभी तक यहां पर किसकी मेहरबानी से जमे हुए हैं। साथ ही उन्होंने हरदा जिले में करोड़ों की राजस्व हानि, भ्रष्टाचार करने की शिकायत की है। वहीं इस पूरे मामले से खनिज मंत्री प्रदीप जायसवाल भी नाखुश बताए जा रहे हैं। क्योंकि वित्तीय वर्ष समाप्ति की कगार पर है और इससे विभाग का टारगेट भी प्रभावित होगा।
विवादों में हंस की नियुक्ति
एडिशनल डायरेक्टर एनके हंस को वर्तमान दायित्व के साथ संचालक खनिज का प्रभार सौंपा गया है। लेकिन उनकी नियुक्ति भी विवादों में है। हंस की नियुक्ति 1983 में सहायक भौमिक विद के पद पर पर हुई। उस दौरान उनकी परिवीक्षा अवधि पूरी नहीं हुई और विभागीय परीक्षा भी पास नहीं की है। न्यूनतम आयु होने पर भी उन्हें पदोन्नति दी गई। सरकार ने 2017 में इन मामलों की जांच के लिए कमेटी भी गठित की है, जो ठंडे बस्ते में है। यही नहीं अगर नियमानुसार देखें तो संचालक को हटाए जाने के बाद वरीयता क्रम में शिवानी खननता संवर्ग में वरिष्ठतम अधिकारी हैं। इसलिए इन्हें संचालक की जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए थी। सवाल उठता है कि ऐसे विवादित अफसर को इतना महत्वपूर्ण दायित्व क्यों दिया गया। सूत्र बताते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम में विभाग के विवादास्पद अधिकारी शामिल हैं, जिसने पूरा ताना-बाना बुना है। अब देखना यह है कि विवादित हंस और उनके साथी क्या गुल खिलाते हैं।
- कुमार राजेन्द्र