चुनौतियों भरा ताज
03-Mar-2020 12:00 AM 427

2018 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा लगातार लडख़ड़ा रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में एकता नजर नहीं आ रही है। ऐसे में मप्र भाजपा की कमान संघनिष्ठ वीडी शर्मा को सौंपी गई है। शर्मा के सामने भाजपा को संगठित करने के साथ ही चुनौतियों का पहाड़ है। अब देखना यह है कि दिग्गज नेताओं से भरी भाजपा को वीडी शर्मा चुनौतियों से निकालकर किस तरह कांग्रेस के मुकाबिल खड़ा करते हैं।

मप्र भाजपा में अब 4जी (फोर्थ जनरेशन) यानी चौथी पीढ़ी के नताओं का महत्व बढ़ेगा। प्रदेश भाजपा में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद  और भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुडऩे वाले नेताओं की अब लॉटरी खुलने वाली है। वीडी शर्मा के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद तय हो गया है कि भाजपा में उन्हें अहम पद मिलेंगे। नया नेतृत्व खड़ा करने के लिए उन्हें तैयार किया जाएगा। ऐसा करके शर्मा अपनी व्यक्तिगत टीम को भी मजबूत करने का प्रयास करेंगे। गौरतलब है कि 2018 में विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने पार्टी में चौथी पीढ़ी के नेताओं को आगे लाने का सुझाव दिया था। सूत्र बताते हैं कि संघ के सुझाव पर ही वीडी शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है।

गौरतलब है कि शर्मा की सीधी नियुक्ति संघ और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की विशेष रूचि के चलते हुई है। साथ में उन्हें फ्री हैंड भी दिया गया है ताकि वे प्रदेश में संगठन के काम को एक बार फिर मजबूत करें। योजना के हिसाब से शर्मा का सारा फोकस संगठन से युवाओं को जोडऩे और नया नेतृत्व खड़ा करने पर होगा। इसके चलते विद्यार्थी परिषद की टीम को मजबूत किया जाएगा। उस हिसाब से परिषद से जुड़े नेता जो भाजपा में अब तक लूप लाइन झेल रहे थे, उनकी लॉटरी खुल सकती है। बची हुई जिलास्तर की इकाई में उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका दी जा सकती है। शर्मा लंबा चलने के लिए संघ को भी नजरअंदाज नहीं करेंगे। उसकी पसंद को भी गंभीरता से लेंगे।

प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए विष्णुदत्त शर्मा की राह आसान नहीं है। प्रदेशाध्यक्ष का ताज तो शर्मा ने पहन लिया पर अब संगठन के सामने मुंह बाए खड़ी चुनौतियों से निपटने में उन्हें एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। सबसे बड़ी दिक्तत बड़े नेताओं के साथ समन्वय की होगी। मप्र से चार बड़े नेता केंद्र सरकार में मंत्री हैं। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती हैं, दोनों ही संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। आधा दर्जन के करीब पूर्व प्रदेशाध्यक्ष हैं। वीडी शर्मा को इन सभी के साथ तालमेल बैठाकर चलना है। संगठन चुनाव में जिन मंडल और जिलों में चुनाव नहीं हो पाए हैं। वहां आम सहमति बनाकर मनोनयन करना है। इन सब चुनौतियों से वे निपट पाए तो ही संगठन को पटरी पर ला पाएंगे।

प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के सामने सबसे बड़ी चुनौती भाजपा के प्रदेश संगठन को पटरी पर लाना है। 15 साल की सत्ता से हाथ धोने के बाद से भाजपा का कार्यकर्ता मायूस है। उसे मानसिक रूप से तैयार कर कैसे घर से निकालेंगे, इसकी रणनीति शर्मा को बनानी होगी। भौगोलिक संतुलन के साथ जातिगत समीकरण भी साधना होगा। भाजपा ने मंडल और जिला स्तर के चुनाव में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए उम्र सीमा तय कर दी थी। अब शर्मा के सामने बड़ी चुनौती है कि युवाओं की भागीदारी को संगठन में कैसे बढ़ाएं।

शर्मा के सामने संगठन के साथ ही पार्टी के सांसदों और विधायकों को भी सक्रिय करने की जिम्मेदारी है। सांसदों और विधायकों की निष्क्रियता के कारण पार्टी की साख लगातार गिर रही है। गौरतलब है कि मप्र में 2018 के विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा ने 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 29 सीटों में से 28 सीटें जीतकर अपनी साख वापस पा ली थी। लेकिन चुनाव जीतने के 7 माह के दौरान प्रदेश के भाजपा सांसदों की निष्क्रियता से प्रदेश में भाजपा का जनाधार लगातार गिर रहा है। इसका खुलासा संघ के 34 आनुषांगिक संगठनों की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट मिलने के बाद संघ ने डैमेज कंट्रोल के लिए सक्रियता बढ़ा दी है।

जानकारी के अनुसार, संघ ने दिसंबर 2019 में अपने आनुषांगिक संगठनों से भाजपा के सभी 303 सांसदों की परफॉर्मेंस का आंकलन करवाया। आनुषांगिक संगठनों ने संसदीय क्षेत्र में सांसदों की सक्रियता, उनके द्वारा अनुमोदित विकास कार्यों, सांसद निधि के उपयोग, सांसद आदर्श ग्राम की स्थिति, केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रचार-प्रसार और सांगठनिक गतिविधियों में भागिदारी के आधार पर परफॉर्मेंस रिपोर्ट तैयार की है। इसमें सबसे खराब परफॉर्मेंस मप्र के सांसदों की रही है।

संघ के आनुषांगिक संगठनों ने अपनी जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें कहा गया है कि इंदौर सांसद शंकर लालवानी के अलावा मप्र भाजपा के बाकी 27 सांसद अपने संसदीय क्षेत्र से पूरी तरह गायब रहे हैं। यानी संसदीय क्षेत्र में वे न तो पार्टी और न ही सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहे हैं। इसका असर यह हुआ है कि न तो केंद्र सरकार की योजनाओं का प्रचार-प्रसार हो सका और न ही प्रदेश सरकार के खिलाफ माहौल बनाया गया। गौरतलब है कि 28 भाजपा सांसदों में से 3 यानी नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते केंद्र सरकार में मंत्री हैं। मंत्री होने के कारण ये केंद्र में ही अधिक सक्रिय रहते हैं। इस कारण इनका अपने क्षेत्र में कम आना होता है। लेकिन बाकी 23 सांसद पूरी तरह निष्क्रिय रहे हैं।

लोकसभा चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंचे मप्र के सांसदों का प्रदर्शन हर क्षेत्र में काफी निराशाजनक रहा। संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं कि लोकसभा सत्र में कुछ सांसदों ने न ही प्रश्नकाल में कोई सवाल किया न ही शून्यकाल के दौरान पूछा। उन्होंने अपने क्षेत्र से संबंधित कोई भी समस्या नहीं उठाई। ऐसा क्यों हुआ इसको लेकर संघ पड़ताल करवा रहा है। संघ भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के खराब प्रदर्शन से काफी चिंतित है। मध्यप्रदेश के अन्य सभी नए सांसदों के मुकाबले साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर कमजोर प्रदर्शन करने वाली सांसद बनकर उभरी हैं। सही मौके पर साध्वी की चुप्पी तुड़वाने के लिए अब संघ रणनीति तैयार कर रहा है। यह तय किया गया है कि प्रज्ञा के आसपास मौजूद लोगों से उन्हें मुक्ति दिलाकर नए सलाहकार और सहयोगी नियुक्त किए जाएंगे। साध्वी के आसपास का यह घेरा संघ तैयार करेगा। संघ के लोग ही आसपास नजर आएंगे। वही लोग प्रज्ञा को सलाह देंगे, ताकि सही मौके पर और लोकसभा में साध्वी की चुप्पी टूटे और बेवक्त आने वाले बयानों का सिलसिला थम सके।

सूत्र बताते हैं कि भोपाल में हुई संघ की बैठक में आनुषांगिक संगठनों ने संघ प्रमुख मोहन भागवत को रिपोर्ट दी है कि ज्वलंत मुद्दों जैसे अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर से हटाने, तीन तलाक और सीएए के समर्थन में भाजपा द्वारा जितने भी कार्यक्रम आयोजित किए वे प्रभावहीन रहे। इसकी वजह यह बताई गई कि सांसद और विधायक निष्क्रिय रहे। बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भाजपा और अन्य संगठनों से जुड़े लोगों के बीच चाल, चरित्र और चेहरे पर उठ रहे सवालों पर चिंता जताई है। साथ ही हिदायत दी है कि वे अपने आचरण पर भी गौर करें। सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों हनीट्रैप मामले के सामने आने और कई अन्य मामलों में भाजपा नेताओं और प्रचारकों के जुड़े होने की तरफ इशारों-इशारों में उन्होंने यह बात कही। सूत्रों के अनुसार, भागवत ने संगठनों से जुड़े प्रतिनिधियों को संघ की साख याद दिलाई। साथ ही कहा, समाज उनकी तरफ देखता है, अगर उनके आचरण में गिरावट आएगी, तो यह स्वीकार्य नहीं होगा। लिहाजा, सभी को अपने आचरण में बदलाव लाना होगा, अनुशासित रहना होगा।

संघ प्रमुख ने भाजपा नेताओं और अन्य संगठनों से जुड़े लोगों को संघ की सामाजिक प्रतिष्ठा याद दिलाई। साथ ही उन्हें अपने अतीत से सीख लेने पर जोर दिया। इतना ही नहीं, नेताओं की कार्यशैली और उन पर उठे सवालों पर सीधे तौर पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि संघ समाज के बीच जाकर समस्याओं और राष्ट्र की चुनौतियों के लिए लोगों को तैयार करता है, मगर राज्य के कई नेताओं के सवालों में घेरने से पूरे संगठन की छवि पर असर पड़ता है, इसे रोकने के प्रयास होने चाहिए।

सामंजस्य की जरूरत

दिग्गज नेताओं से सियासी समन्वय बनाकर प्रदेश भाजपा की नई टीम बनाना वीडी शर्मा के लिए बेहद कठिन काम है। प्रदेशाध्यक्ष को लक्ष्य केंद्रित भविष्य को ध्यान रखकर अपनी मर्जी से बेदाग लोगों की टीम बनाना होगी, तभी पीढ़ी परिवर्तन का संदेश सफल होगा। संगठन चुनाव के दौरान भाजपा के मात्र 33 जिलों के अध्यक्षों का चुनाव आम सहमति से हो पाया है। अब 23 संगठनात्मक जिलों में अध्यक्षों का मनोनयन होना है। इंदौर-भोपाल और ग्वालियर जैसे ये सारे जिले कद्दावर नेताओं के प्रभाव वाले जिले हैं। दबाव से वे कैसे निपटते हैं, इससे शर्मा की संगठनात्मक क्षमता का लोहा माना जाएगा। मप्र दिग्गज नेताओं से भरा पड़ा है, ऐसे में सभी नेताओं के साथ ऐसा उचित समन्वय, जो जनता के अनुकूल और संगठन के मुताबिक हो, बनाना होगा। अनाप-शनाप बयानबाजी, मनमर्जी से फैसले लेने और संगठन की लाइन के खिलाफ जाकर काम करने वालों पर शर्मा कैसे लगाम लगाते हैं, ये कठिन दायित्व है।

नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में संघ संभालेगा मोर्चा

अपने गढ़ में भाजपा की कमजोर होती ताकत को मजबूत करने के लिए संघ ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। सूत्रों के अनुसार आगामी नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में पार्टी का जनाधार मजबूत करने के लिए संघ मोर्चा संभालेगा। प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ ही अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भी मैदान में उतरेंगे। इस दौरान गोष्ठी के साथ ही स्वयंसेवक घर-घर जाकर राष्ट्रवाद का अलख जगाएंगे। इस काम में किसी तरह की कोताही न हो, इसके लिए समन्वयकों की भी तैनाती की जा रही है। संघ के सूत्रों के अनुसार लोकसभा चुनाव में स्वयंसेवकों ने जनता के बीच हजारों बैठकें की थीं। इस बार बैठकों की संख्या और अधिक करने का लक्ष्य रखा गया है ताकि समाज के सभी वर्गों तक अपनी बात पहुंचाई जा सके। दरअसल, इन दिनों सीएए को लेकर फैलाए जा रहे दुष्प्रचार से संघ भी चिंतित है। संघ का मानना है कि वोट बैंक की राजनीति में भाजपा विरोधी पार्टियां सीएए को लेकर लोगों को गुमराह कर रही हैं। इसे ध्यान में रखकर लोकसभा की तुलना में ज्यादा बैठक करने के साथ ही जनसंपर्क अभियान चलाने का फैसला किया गया है। स्वयंसेवक लोगों से मिलकर उन्हें सीएए की सच्चाई बताएंगे। इसके साथ ही देश को कमजोर करने की चल रही साजिश के बारे में बताएंगे।

-  अरूण दीक्षित

 

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