प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट स्वच्छ भारत मिशन पर पूरी दुनिया की निगाहें रही हैं। स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत अक्टूबर 2014 में हुई थी। इस मिशन पर सरकार ने कितना धन खर्च किया और लोगों तक उसका फायदा कितना पहुंचा, इसे लेकर एक अंतर्राष्ट्रीय शोध सामने आया है। इस शोध के तहत स्वच्छ भारत मिशन में आई लागत, स्वच्छता मानक में बदलाव और मिशन के तीन सालों में आए आर्थिक और सामाजिक बदलाव पर प्रकाश डाला गया है। इस शोध पत्र को गॉय हटन, निकोलस ऑस्बर्ट, सुमीत पाटिल और अवनी कुमार ने तैयार किया है। जिसका शीर्षक है- स्वच्छ भारत मिशन की लागत और इसके फायदे में परस्पर तुलना। जिसमें पाया गया है कि हर परिवार को इससे करीब 727 डॉलर की मदद पहुंची और डायरिया जैसे मामलों में 55 फीसदी, स्वच्छता में 45 प्रतिशत का सुधार हुआ।
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन से ग्रामीण भारत में प्रत्येक परिवार को 53,000 रुपए का फायदा पहुंचा है। अध्ययन के मुताबिक स्वच्छता मिशन के कारण दस्त की बीमारी में कमी और साफ-सफाई में लगने वाले समय की बचत हुई है। इस अध्ययन में यह भी पता चला है कि 10 सालों में घरेलू खर्च पर जो रिटर्न है वह लागत का 1.7 गुना है, जबकि समाज को 10 साल में कुल रिटर्न लागत का 4.3 गुना है। इस योजना का यह पहला विश्लेषण है। ग्लोबल इंफॉर्मेशन एनालिटिक्स मेजर एल्सेवियर के साइंस डायरेक्ट जर्नल के ताजा अंक में इस अध्ययन को प्रकाशित किया गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि सबसे गरीबों को 2.6 गुना वित्तीय रिटर्न मिला है, जबकि समाज को लागत का 5.7 गुना रिटर्न मिला है।
यह सर्वे 20 जुलाई से 11 अगस्त 2017 के बीच 12 राज्यों के 10,051 परिवारों के बीच किया गया। इसमें बिहार, उप्र, झारखंड, आंध्रप्रदेश और असम आदि शामिल हैं, जहां पूरे देश का खुले में शौच का 90 फीसदी मामला है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त करने के लिए 2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन योजना की शुरुआत की थी और 2 अक्टूबर 2019 तक का लक्ष्य रखा था।
शोध के अनुसार जहां इस मिशन के चलते गरीब तबके को इसकी लागत का करीब 2.6 गुना फायदा हुआ है, वहीं समाज को 5.7 गुना फायदा पहुंचा है। यदि इसकी लागत और लाभ के अनुपात को देखें तो 10 सालों में घरेलू खर्च पर जो रिटर्न है वह लागत का 1.7 गुना है। जबकि समाज को इसकी लागत की तुलना में करीब 4.3 गुना ज्यादा फायदा पहुंचा है। अध्ययन के अनुसार सालभर में हर घर को जो करीब 53,536 रुपए का लाभ पहुंचा है, उसका 55 फीसदी दस्त की घटनाओं में कमी के कारण स्वास्थ्य को हुए लाभ के रूप में है। जबकि इससे समय की जो बचत हुई है वो इसके लाभ के 45 फीसदी के बराबर है।
गौरतलब है कि स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत अक्टूबर 2014 में की गई थी। यह मिशन दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान है। जिसका उद्देश्य खुले में शौच की प्रथा को खत्म करना और बीमारियों से मुक्त करना था। जहां एक दशक से टोटल सैनिटेशन मिशन और निर्मल भारत अभियान के बावजूद 2015 में देश के 59 फीसदी ग्रामीण और 12 फीसदी शहरी घरों में शौचालय नहीं थे। साथ ही 52.2 करोड़ लोग खुले में शौच कर रहे थे। वहीं इस मिशन के अंतर्गत करीब 10,69,67,234 शौचालय बनाए गए थे। आज 6 लाख से ज्यादा गांव खुले में शौच जैसी कुरीति से मुक्त हो चुके हैं। इस मिशन में हर शौचालय के लिए औसतन 29,162 रुपए (396 डॉलर) का भुगतान किया गया था, जो कि प्राप्त सब्सिडी से दोगुना है। जिसमें सरकार की हिस्सेदारी 9,352.4 रुपए (127 डॉलर) और परिवार की हिस्सेदारी 19,736 रुपए (268 डॉलर) की थी। इस 19,736 रुपए में से 18,926 रुपए (257 डॉलर) नकद और 810 रुपए (11 डॉलर) समय के रूप में खर्च किए गए थे।
अध्ययन के अनुसार दो-तिहाई (69.5 फीसदी) से अधिक परिवारों को औसतन 13,476 रुपए (183 डॉलर) की सरकारी सब्सिडी मिली थी। जबकि इन परिवारों में से 63.8 फीसदी ने सरकारी सब्सिडी के ऊपर हर टॉयलेट पर औसतन 11,341 रुपए (154 डॉलर) का खर्च अपनी जेब से किया था। इस शोध के लिए किए गए सर्वे में 12 राज्यों के 10,051 ग्रामीण परिवारों को शामिल किया गया था। इसमें बिहार, उप्र, मप्र, आंध्रप्रदेश, झारखंड और असम शामिल हैं। आंकड़ों के अनुसार देश में खुले में शौच करने वालों में से 90 फीसदी लोग इन्हीं राज्यों से थे।
नई सोच से महिलाओं के सम्मान में भी वृद्धि
स्पष्ट है कि मोदी सरकार की स्वच्छता को लेकर शुरू की गई महत्वाकांक्षी योजना, स्वच्छ भारत मिशन अपनी लागत की तुलना में बहुत ज्यादा फायदेमंद रही। इससे न केवल लोगों को व्यक्तिगत लाभ पहुंचा, साथ ही समाज में एक कुरीति का रूप ले चुकी खुले में शौच की प्रथा का भी अंत हुआ है। यह न केवल स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभदायक है, साथ ही स्वच्छता की इस नई सोच से महिलाओं के सम्मान में भी वृद्धि हुई है। ऐसे में इस लाभ को बनाए रखने के लिए शौचालयों का प्रयोग आगे भी इसी तरह जारी रहना चाहिए। साथ ही इन शौचालयों का प्रबंधन भी ठीक तरह से होता रहे यह सुनिश्चित करने की जरूरत है, जिससे भविष्य में भी लोगों और समाज को इस मिशन का पूरा लाभ मिलता रहे।
- विकास दुबे