पहले कर्जमाफी, यूरिया और उद्यानिकी घोटालों का शिकार हो चुका मप्र का किसान एक बार फिर छला गया है। इस बार उसके साथ यह छल प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में फर्जीवाड़े की शक्ल में हुआ है। आपको जानकर हैरत होगी कि राज्य में 70 हजार से ज्यादा ऐसे लोगों के नाम सम्मान पाने वालों की सूची में जोड़ दिए, जो इस दुनिया में हैं ही नहीं। हजारों ऐसे भूमिहीन, टैक्स भरने वाले, नौकरी पेशा, धनाड्य लोग किसान बनकर सम्मान निधि की रकम पा रहे हैं, जिनके लिए यह योजना बनी ही नहीं है। यह सब हुआ कृषि विभाग, राजस्व विभाग, पटवारियों और दलालों की मिलीभगत से, जिन्होंने हजारों अपात्रों के नाम सूची में जुड़वाकर सरकार को लाखों की चपत दे दी। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में फर्जीवाड़ा उजागर होने से प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मच गया है।
तमिलनाडु, असम, उप्र और महाराष्ट्र की तरह मप्र में भी फर्जी किसान बनकर सम्मान निधि में करोड़ों की धांधली सामने आने पर केंद्र सरकार के कान खड़े हुए। सरकार ने योजना का लाभ लेने वाले सभी राज्यों को निर्देश दिए हैं कि 5 फीसदी लाभार्थियों का रैंडम फिजीकल वेरीफिकेशन कर अपात्रों की पहचान की जाए। साथ ही धोखेबाजों पर नकेल कसकर उनसे रकम वापस ली जाए। मप्र के अलावा यह तस्वीर तो उन चंद राज्यों की है, जहां लाखों फर्जी खाताधारकों और करोड़ों के घोटाले का पता चला है। प. बंगाल को छोड़कर योजना का लाभ लेने वाले सभी राज्यों की जांच जब सामने आएगी, तो यह घोटाला अरबों का आंकड़ा पार कर जाएगा। मप्र में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में फर्जीवाड़ा सामने आया है। फर्जी दस्तावेज से पंजीयन कराकर योजना का लाभ ले लिया गया। खंडवा तहसील में ही करीब 2300 ऐसे पंजीयन सामने आए हैं, जो अपात्र पाए गए हैं। इनसे अब तक 25 लाख रुपए वसूले जा चुके हैं।
खंडवा में अपात्रों ने कृषि भूमि नहीं होने के बावजूद स्वयं को किसान बताकर पंजीयन करा लिया और 2018-19 में 6-6 हजार रुपए की राशि ले ली। कई शासकीय सेवक और आयकर दाताओं ने भी लाभ ले लिया। जब इसकी भनक अधिकारियों को लगी तो हड़कंप मच गया। अपात्रों का डाटा समग्र आईडी के माध्यम से खंगाला गया और राशि वसूल करने के लिए तहसीलदार द्वारा नोटिस जारी किए जा रहे हैं। रतलाम जिले में 15,242 किसान अपात्र घोषित किए गए हैं, जबकि 2 लाख 52 हजार 887 किसान पात्र हैं। अपात्रों में ऐसे लोग भी हैं जो सरकारी नौकरी के साथ खेती करते हैं और इनकम टैक्स के दायरे में आते हैं।
झाबुआ में 30 हजार खाते ऐसे थे, जो अटक गए थे। वजह यह थी कि डुप्लीकेट आधार कार्ड किसानों ने लगा दिए। पुराने समय से कई किसानों के पास दो-दो आधार कार्ड बने हुए थे और उन्होंने अलग-अलग अपडेट कर दिए थे। इनकी जांच हो रही है। भू-अभिलेख के अधीक्षक सुनील कुमार राहणे के अनुसार जिले में एक लाख 33 हजार किसान पात्रता रख रहे थे, लेकिन तकनीकी त्रुटि से एक लाख 3 हजार किसानों के खाते में ही प्रथम किश्त जमा हो पाई। बड़वानी जिले में ऐसे 889 किसानों के खातों में राशि आ गई है, जो आयकरदाता हैं। अधीक्षक भू-अभिलेख मुकेश मालवीय ने बताया कि संबंधित तहसीलदारों के माध्यम से इन किसानों को नोटिस जारी किए गए हैं। खरगोन जिले में 1 लाख 85 हजार किसानों को योजना का लाभ मिल रहा है। 9 गांवों में सत्यापन करने पर 86 किसान अपात्र मिले हैं। इनसे 4 लाख 44 हजार रुपए की वसूली होगी। अन्य गांवों में सत्यापन कार्य की गति धीमी है।
इंदौर कृषि के संयुक्त संचालक आलोक मीणा कहते हैं- नियम है कि किसान सम्मान निधि उन्हीं किसानों को मिलनी चाहिए, जिनके पास कृषि भूमि है। हर जिले में सम्मान निधि का काम भू-अभिलेख विभाग कर रहा है। किसान के जमीन के खसरे के हिसाब से उसके खाते में ही राशि मिलती है। फिर भी यदि कहीं गड़बड़ी हो रही है तो इसे सुधरवाने में हम भू-अभिलेख विभाग को मदद करेंगे।
मप्र में सरकार को इस बड़े घपले का पता तब चला, जब उसके पास पहुंची लाभार्थी किसानों की संख्या अनुमान से कहीं ज्यादा हो गई। सतना का उदाहरण लें, तो वहां ऐसे किसानों की संख्या एक हजार से भी ज्यादा है। सूची में उन भूमिहीन फर्जी किसानों की संख्या ज्यादा है, जिन्होंने स्वपंजीयन किया है, लेकिन स्वपंजीयन के बाद उनकी पहचान को तहसीलदार ने सत्यापित किया है, इसके बाद उनके खातों में किसान सम्मान निधि की राशि मिलने लगी। सवाल यह है कि इतना बड़ा घोटाला तहसीलदार, पटवारी की जानकारी या उनके शामिल हुए बिना संभव है क्या? इन भूमिहीनों को किसान निधि की राशि मिलने का पता ही नहीं चलता, अगर ग्वालियर के भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त विभाग अपर आयुक्त ने सतना कलेक्टर को पत्र न लिखा होता। पत्र में साफ-साफ लिखा गया कि भूमिहीनों को दी गई किसान सम्मान निधि वापस ली जाए, योजना से उनके नाम काटे जाएं।
कैसे हुई घोटाले की शुरुआत
देश में योजना लागू होने के बाद किसानों के पंजीयन के साथ ही फर्जीवाड़े की शुरूआत हो चुकी थी। सरकार की नजर में भी गड़बड़ी सामने आ चुकी थी। उसने 8 राज्यों के करीब एक लाख 20 हजार खातों से पैसा वापस भी लिया, क्योंकि खाताधारकों के नाम, पते व अन्य विवरण आपस में मेल नहीं खा रहे थे। सरकार के योजना में धांधली को लेकर उस समय कान खड़े हुए, जब पिछले सितंबर के महीने में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला तमिलनाडु में सामने आया, जहां फर्जीवाड़ा करने वालों ने सिस्टम में सेंध लगाकर 110 करोड़ रुपए खातों से निकाल लिए। जरा इन आंकड़ों से अंदाजा लगाइए कि गड़बड़ी कितने बड़े स्तर की है, तमिलनाडु में अब तक 5.95 लाख लाभार्थियों के अकाउंट की जांच की गई, जिसमें से 5.38 लाख अकाउंट फर्जी निकले हैं। कई मंत्रियों के गृहजिलों में ही हजारों किसान अपात्र मिले हैं। सरकार की सख्ती के बाद 61 करोड़ रुपए ही वसूले जा सके हैं, जबकि सरकार 94 हजार करोड़ रुपए किसानों के बैंक अकाउंट में राशि भेज चुकी है।
- लोकेश शर्मा