खेत में गल गई फसल
17-Apr-2020 12:00 AM 361

 

बेमौसम बारिश से बुंदेलखंड के किसानों का हाल बेहाल है। यहां के किसानों का कहना है कि होली के त्यौहार के बाद हर किसान यह उम्मीद करने लगता है कि उनकी फसल पक गई है; बस कटाई के बाद वह बाजार मेें बेंचकर अपनी मेहनत की कमाई से सरकारी-गैर सरकारी कर्ज चुकाएगा और अपने काम-काज, जैसे बच्चों की पढ़ाई, शादी वगैरह करेगा, कपड़े बनवाएगा। पर इस बार 7 मार्च और 13-14 मार्च को हुई बारिश से उनकी फसल पूरी तरह से चौपट हो गई। इस बेमौसम बारिश ने किसानों की फसलें चौपट कर दीं और अब उनके सामने आर्थिक संकट के अलावा सरकारी कर्ज चुकाना भी विकट चुनौती बना हुआ है।

बुंदेलखंड के किसानों ने बताया कि बुंदेलखंड के किसानों की दुर्दशा कभी सूखे की वजह से होती रहती है, तो कभी बे-मौसम बारिश की वजह से। उन्होंने कहा कि 2016 में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि 2022 तक देश के किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। तब किसानों को लगा था कि किसानों के दिन फिरेंगे और किसान खुशहाल होंगे। लेकिन किसानों की आय में कोई इजाफा नहीं हुआ। ऊपर से किसानों के सिर पर कुदरत का कहर भी किसी-न-किसी रूप में मुसीबत बनकर टूटता रहता है। हालांकि, केंद्र सरकार किसानों के लिए काम भी कर रही है, ताकि किसानों को आर्थिक तंगी का सामना न करना पड़े। सरकार ने पहल भी की है और उसका लाभ मिल रहा है। लेकिन बेमौसम बारिश से किसानों की जो फसलें चौपट हुई हैं, उनका सरकार को तुरंत मुआवजा देना चाहिए और किसानों का कर्ज भी माफ करना चाहिए, ताकि किसान सुकून से जीवन-यापन कर सकें।

यही हाल मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर और दतिया जिलों का है। यहां भी 13 और 14 मार्च को हुई बारिश ने किसानों को रोने को मजबूर कर दिया। टीकमगढ़ के मजना, बम्हौरी, बड़ागांव, पलेरा के किसान धीरज, दीपक और विनोद ने बताया कि उनकी खेती 19 बीघा है। उन्होंने सरकार से तो कर्ज नहीं लिया है, पर अब फसल नष्ट हो गई है, तो सरकार से कर्ज लेना होगा। क्योंकि घर चलाना मुश्किल होगा। उन्होंने बताया कि यहां के किसान पलायन तक करते हैं, क्योंकि किसानों को सरकार और पैसे वाले लोग मजदूर जैसा मानते हैं। उनको किसानों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में किसान भगवान भरोसे खेती करते रहते हैं और किसानी करते-करते उनका जीवन तमाम हो जाता है। छतरपुर और दतिया के किसान अनूप और राधेश्याम का कहना है कि किसानों को वोट बैंक की तरह सरकार और राजनीतिक पार्टियां इस्तेमाल करती हैं। सियासतदां चुनाव के दौरान तो किसानों के हित की बात करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद थोड़ी-बहुत राहत बमुश्किल देते हैं। उन्होंने बताया कि इस समय सही मायने में सरकार को किसानों की आॢथक मदद की जरूरत है, ताकि किसान अपना दैनिक जीवनयापन कर सकें। क्योंकि एक ओर तो फसल नष्ट हो गई है, दूसरा कर्ज ले रखा है, जिसे चुकाना संभव नहीं है, ब्याज अलग बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि उस पर मध्य प्रदेश में सरकार गिरने से किसान और मुसीबत में आ गए हैं। क्योंकि इस समय कुछ विधायक नई सरकार बनाने में लगे हैं, तो कुछ सरकार गिरने का रोना रो रहे हैं। ऐसे में किसान किसके पास जाएं? अधिकारी सुनते नहीं हैं। इसलिए किसान अधिकारियों के पास जाने से बचते हैं।

टीकमगढ़ के किसान नेता घनश्याम शर्मा ने बताया कि बुंदेलखंड में किसानों, खासकर छोटे किसानों का भविष्य कभी उज्ज्वल नहीं रहा है। क्योंकि सरकारें तो बस ऐलान करती हैं कि 2021 में यह होगा, 2022 में वो होगा, पर होता कुछ नहीं है। मुआवजा तो देना दूर, किसानों की समस्याएं तक सुनने वाला कोई नहीं है। बैंक वालों से साठगांठ न हो, तो उन्हें कर्ज तक नहीं मिलता है। साहूकारों का एक गिरोह है। भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की हो, दोनों सरकारों के जनप्रतिनिधियों का सरक्षण साहूकारों पर रहता है और ये लोग किसानों को महंगी ब्याज दर पर कर्ज देते हैं। किसान मजबूरी में साहूकारों से कर्ज लेता है। कर्ज न चुका पाने की स्थिति में साहूकार किसानों से उनका खेत ले लेते हैं। बाद में किसान अपने ही खेत में साहूकार की मजदूरी करने को मजबूर होता है। घनश्याम शर्मा ने बताया कि ऐसा नहीं कि शासन-प्रशासन को कुछ पता नहीं है, सब कुछ पता है। लेकिन किसानों की सुनवाई कहीं नहीं होती।

बुंदेलखंड में किसानों के भाग्य में परेशानी ही

किसान राहुल ने बताया कि बुंदेलखंड में किसानों को किसी-न-किसी रूप में परेशानी का सामना करना ही पड़ता है। जैसे इस बार किसानों को लग रहा था कि खेती में की गई मेहनत का फल उनको अच्छा मिलेगा, लेकिन 12 और 13 मार्च को हुई बारिश ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया। सारी मेहनत बेकार हो गई। अब यहां के किसानों को सरकार से उम्मीद है कि वह किसानों को सही मुआवजा दे, ताकि किसान अपना जीवनयापन कर सकें। जालौन के किसान डब्बू और प्रमोद का कहना है कि यहां के किसानों ने आत्महत्या तक की है। कभी सूखे की वजह से, तो कभी बे-मौसम बारिश और अन्य आपदा से फसल बर्बाद होने के चलते। क्योंकि किसान बुआई के समय साहूकार से और बैंक से कर्ज लेता है और फसल खराब होने पर कर्ज समय पर लौटा नहीं पाता है, जिसके चलते आत्महत्या तक कर लेता है। डब्बू किसान का कहना है कि मटर और गेहूं की फसल आने वाली थी। पर बारिश और ओले पड़ने से सब बर्बाद हो गई। हमीरपुर के किसान अनुपम कहते हैं कि किसानों की किस्मत में तो साफ लिखा है कि मेहनत करो और खुद खाने के लिए जूझो। सरकार कहती है कि किसानों के नुकसान की भरपाई की जाएगी। लेकिन भरपाई के नाम पर न के बराबर पैसा दिया जाता है। ऐसे में किसान फटेहाल और लाचार-सा भटकता फिरता है। उन्होंने कहा कि छोटे किसानों का हाल इसलिए बेहाल है, क्योंकि उनकी चार से छ: बीघा या उससे भी कम खेती होती है। ऐसे में छोटे किसान सरकार और साहूकार से कर्ज लेकर जो लागत लगाते हैं, वह भी कई बार नहीं निकल पाती है और वे कई परेशानियों से जूझते रहते हैं।

- सिद्धार्थ पांडे

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