बागियों की जीत आसान नहीं
17-Apr-2020 12:00 AM 590

 

भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाकर यह संकेत दे दिया है कि भविष्य में उन्हें मोदी सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है, लेकिन नफा-नुकसान की कसौटी पर अब उनके समर्थक ही होंगे। सिंधिया के साथ गए 22 विधायकों में सबसे ज्यादा 15 ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के हैं। मालवा-निमाड़ के 4 और बुंदेलखंड, विंध्य व मध्य क्षेत्र से एक-एक विधायक ने कांग्रेेस से किनारा कर भाजपा का दामन थाम लिया है।

विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने वाले छह पूर्व मंत्रियों समेत 22 विधायकों के चलते कमलनाथ की सरकार तो पलट गई, लेकिन अब खुद इनके सियासी भविष्य पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है। क्योंकि भाजपा में शामिल होने के बाद उन्हें विधायक बनने के लिए उपचुनाव में जीतना जरूरी है, लेकिन उन्हें जहां अपने पूर्व प्रतिद्वंद्वी की खिलाफत का सामना करना पड़ सकता है वहीं वर्तमान कांग्रेसी दावेदार का भी। ऐसे में ये नेता अब ऐसे दोराहे पर आ खड़े हुए हैं जहां उनका राजनीतिक भविष्य दांव पर है।

रघुराज कंषाना-मुरैना: मुरैना भाजपा का गढ़ है। 2018 में यहां 14 प्रत्याशी मैदान में थे। इस सीट पर कुल 1,51,175 वोट पड़े थे। रघुराज सिंह कंषाना को 68,965 वोट मिले थे, जबकि भाजपा के रुस्तम सिंह को 48,116 और बसपा के बलवीर सिंह डंडोतिया को 21149 वोट मिले थे। पूर्व कांग्रेस नेता व पूर्व जिला पंचायत के अध्यक्ष रघुराज कंषाना 20,849 वोटों से जीत हासिल कर पहली बार विधायक बने थे। इस बार इन्हें दोनों पार्टियों का विरोध झेलना पड़ सकता है।

ऐंदल सिंह कंषाना-सुमावली: 2018 में ऐंदल सिंह कंषाना चौथी बार विधायक बने थे। मुरैना जिले की सुमावली विधानसभा सीट पर 1,59,367 वोट पड़े थे।  एंदल सिंह कंषाना को 65,455, भाजपा प्रत्याशी अजब सिंह कुशवाह को 52,142 और बसपा के गांधी मानमेंद्र सिंह को 31,331 वोट मिले थे। कंसाना ने 2018 के  चुनावों में 13,661 वोटों से जीत हासिल की। अजब सिंह कुशवाह भी चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसलिए कंषाना को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

गिर्राज दंडोतिया-दिमनी: गिर्राज दंडोतिया 2018 में पहली बार विधायक बने थे। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार शिवमंगल सिंह तोमर को 18,477 वोटों से हराकर बड़ी जीत हासिल की थी। दंडोतिया ने अपनी इस जीत का श्रेय सिंधिया को दिया था। शिवमंगल सिंह तोमर भी उप चुनाव लड़ना चाहते है, लेकिन भाजपा डंडोतिया को टिकट देगी। यहां भितरघात की संभावना है।

कमलेश जाटव-अम्बाह: मुरैना जिले की अम्बाह सीट पर कमलेश जाटव ने 2018 में 7,628 वोटों से जीत हासिल कर पहली बार विधायक बने थे।  उन्होंने निर्दलीय नेहा किन्नर को 7,547 वोट से हराया था। जाटव को 37,343, नेहा किन्नर को 29,796, भाजपा प्रत्याशी गब्बर सखवाल को 29,715 और बसपा प्रत्याशी सत्यप्रकाश सखवाल को 22,179 वोट मिले थे। उप चुनाव में भाजपा उन्हें टिकट देगी, लेकिन इस सीट पर जाटव की राह आसान नहीं दिख रही है।

ओपीएस भदौरिया-मेहगांव: ओपीएस भदौरिया पहली बार विधायक बने थे। 2018 के चुनावों में 25,814 वोटों से भाजपा के वरिष्ठ नेता राकेश शुक्ला को हराया था। ओपीएस भदौरिया को 61,560, भाजपा प्रत्याशी राकेश शुक्ला को 35,746 और बहुजन संघर्ष दल के रंजीत सिंह गुर्जर को 28,160 वोट मिले थे। भाजपा उप चुनाव में उन्हें उतारेगी। पार्टी को उम्मीद है कि भदौरिया जीत दोहरा सकते हैं।

रणवीर जाटव-गोहद: आठवीं पास रणवीर जाटव भिंड जिले की गोहद  दूसरी बार विधायक थे। 2018 में उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ मंत्री लाल सिंह आर्य को 23,989 के अंतर से हराया था। जाटव को 62,981, लालसिंह आर्य को 38,992 वोट मिले थे। 35 साल के रणवीर जाटव भाजपा के टिकट पर उपचुनाव लड़ेंगे। पूर्व चुनाव बड़े अंतर से जीतने के कारण भाजपा उनकी जीत को लेकर आश्वस्त है।

प्रद्युम्न सिंह तोमर-ग्वालियर: प्रद्युम्न सिंह तोमर दूसरी बार विधायक बने थे। वे 2008 में पहली बार विधायक चुने गए थे और 2018 में उन्होंने भाजपा प्रत्याशी जयभानसिंह पवैया को 21,044 वोट से हराया था। तोमर को 92,055, पवैया को 71,011 और बसपा प्रत्याशी सावित्री कटारिया को 4,596 वोट मिले थे। भाजपा उन्हें उप चुनाव में उतारेगी, लेकिन उनको जीतने के लिए पवैया का साथ जरूरी है।

मुन्नालाल गोयल-ग्वालियर पूर्व: मुन्नालाल गोयल पहली बार विधायक बने थे। उन्होंने 2018 में भाजपा प्रत्याशी सतीश सिंह सिकरवार को 17,819 वोट से हराया था। गोयल को 90,133, सिकरवार को 72,314 वोट मिले थे। भाजपा को आशंका है कि कांग्रेस यहां तोड़-फोड़ कर सकती है। गोयल कांग्रेस के लिए कमजोर प्रत्याशी नजर आ रहे हैं।

इमरती देवी-डबरा: सिंधिया के प्रति निष्ठा रखने वाली इमरती देवी तीसरी बार विधायक बनी थी। इमरती देवी को 90,598, भाजपा के कप्तान सिंह सेहसरी को 33,152 और बसपा के पीएस मंडेलिया को 13,155 वोट मिले थे। उप चुनाव में भी उनकी जीत तय मानी जा रही है।

रक्षा संतराम सरोनिया-भांडेर: रक्षा संतराम सरोनिया पहली बार विधायक बनी थी। रक्षा संतराम सरोनिया को 73,569, भाजपा की रजनी प्रजापति को 33,673 वोट पड़े थे। रक्षा के  पति शिक्षक और ससुर विधायक थे। 2018 के विधानसभा चुनावों में 39,896 वोटों से वह अपने पहले चुनाव में चुनी गई थीं। भाजपा को भरोशा है की सिंधिया उप चुनाव में भी रक्षा संतराम सरोनिया को विजयश्री दिलवाएंगे। अगर यहां भितरघात हुई तो भाजपा का बना बनाया खेल बिगड़ सकता है।

जसमंत जाटव-करेरा: साल 2018 के विधानसभा चुनाव में 14,824 वोटों से जीतने वाले जाटव के लिए उप चुनाव आसान नहीं होंगे। जाटव में भाजपा के राजकुमार खटीक को 14,824 वोट से हराया था। जाटव को 64,201,राजकुमार खटीक को 49,377 और बसपा के प्रगीलाल जाटव को 40,026 वोट मिले थे। इस सीट पर जाटव के लिए उप चुनाव की राह आसान नहीं है।

सुरेश धाकड़-पोहरी: बसपा प्रत्याशी कैलाश कुशवाहा को 7,918 वोट से हराकर सुरेश धाकड़ शिवपुरी जिले की पोहरी सीट से पहली बार विधायक बने थे। सुरेश धाकड़ को 60,654, बसपा के कैलाश कुशवाह को 52,736 और भाजपा के प्रहलाद भारती को 37,268 वोट मिले थे। भाजपा उप चुनाव में धाकड़ को टिकट तो देगी, लेकिन उनकी जीत की गारंटी नहीं है।

महेंद्र सिंह सिसोदिया-बमोरी: दूसरी बार विधायक बने महेंद्र सिंह सिसोदिया ने भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन सिंह को 27,920 वोट से हराया था। सिसोदिया को 64,598, भाजपा के बृजमोहन सिंह को 36,678 और निर्दलीय कन्हैयालाल अग्रवाल को 28,488 वोट मिले थे। उप चुनाव में सिसोदिया की जीत आसान नजर आ रही है। लेकिन भाजपाईयों की भितरघात चुनाव का गणित बिगाड़ सकती है।

जजपाल सिंह जज्जी-अशोकनगर: जजपाल सिंह जज्जी अशोक नगर सीट पर भाजपा के लड्डूराम कोरी को 9,730 वोट से हराकर पहली बार  विधायक बने थे। जजपाल सिंह जज्जी को 65,750, लड्डूराम कोरी को 56,020 और बसपा के बालकृष्ण को 9,559 वोट मिले थे। भाजपा उप चुनाव में जज्जी को टिकट तो देगी, लेकिन उनकी जीत को लेकर वह सशंकित है।

ब्रजेन्द्र सिंह यादव-मुंगावली: ब्रजेंद्र सिंह यादव ने भाजपा के कृष्णपाल सिंह को 2,136 वोट से हराया था। बृजेन्द्र सिंह यादव को 55,346, कृष्णपाल सिंह को 53,220 और बसपा के कमल सिंह को 14,202 वोट मिले थे। उप चुनाव में भाजपा को भितरघात का खतरा है। इसलिए ब्रजेन्द्र सिंह यादव के लिए उप चुनाव चुनौती भरा होगा।

गोविंद सिंह राजपूत-सुरखी: गोविंद सिंह राजपूत तीसरी बार विधायक बने थे। उन्होंने 2018 में भाजपा प्रत्याशी सुधीर यादव को 21,418 वोट से हराया था। राजपूत को 80,806, यादव को 59,388 और नोटा में 2,137 वोट पड़े थे। राजपूत 2003 में पहली बार विधायक चुने गए और 2008 में भी जीत हासिल की थी। भाजपा का उम्मीद है कि गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह के प्रभाव से राजपूत आसानी से उप चुनाव जीत जाएंगे। लेकिन यहां बड़े स्तर पर भितरघात की आशंका है।

बिसाहूलाल सिंह-अनूपपुर: बिसाहूलाल सिंह अब तक पांच बार विधायक रह चुके हैं। बिसाहूलाल सिंह को 62,770, भाजपा के रामलाल रतौले को 51,209 और नोटा में 2,730 वोट पड़े थे। बिसाहूलाल सिंह ने 2018 के चुनावों में 11,561 वोटों के अंतर जीते थे।  भाजपा को आशंका है कि उप चुनाव में भितरघात बिसाहूलाल की जीत में रोड़ा न अटका दे।

डॉ. प्रभुराम चौधरी-सांची: प्रभुराम चौधरी को 89,567 वोट मिले थे। वहीं भाजपा प्रत्याशी मुदित शेजवार को 78,754 तथा नोटा को 2,519 वोट मिले थे। चौधरी 1985 में पहली बार विधायक बने थे। उनकी दूसरी जीत 2008 में और तीसरी 2018 में 10,813 वोटों से हुई। उप चुनाव में भी  चौधरी की जीत को लेकर भाजपा आश्वस्त है।

मनोज चौधरी-हाटपिपल्या: मनोज चौधरी देवास जिले की हाटपिपल्या सीट पर भाजपा के दीपक जोशी को 13,519 से हराकर पहली बार विधायक बने थे। मनोज चौधरी को 83,337, जोशी को 69,818 और बसपा के संतोष खंगोले को 2,347 वोट मिले थे। उप चुनाव में यहां कांग्रेस चौधरी को कड़ी चुनौती दे सकती है। यहां भाजपा को भितरघात का भी खतरा है।

राजवर्धन सिंह दत्तीगांव-बदनावर: राजवर्धन सिंह दत्तीगांव तीसरी बार विधायक बने थे। उन्होंने 2018 में भाजपा के भंवर सिंह शेखावत को 41,506 वोट से हराया था। राजवर्धन सिंह दत्तीगांव को 84,499, शेखावत को 42,993 और निर्दलीय राजेश अग्रवाल को 30,976 वोट मिले थे। भाजपा को विश्वास है की उप चुनाव में दत्तीगांव इस सीट पर जरूर जीत हासिल करेंगे।

तुलसी राम सिलावट-सांवेर: तुलसी राम सिलावट चौथी बार विधायक बने थे। 2018 में सांवेर सीट पर कुल 1,99,546 वोट पड़े थे और 9 प्रत्याशी मैदान थे। सिलावट को 96,535, भाजपा के राजेश सोनकर को 93,590 और बसपा के कमल चौहान को 2,844 वोट मिले थे। इंदौर विश्वविद्यालय से एमए एलएलबी की डिग्री पूरी कर चुके सिलवट ने 2018 के विधानसभा चुनावों में 2,945 वोटों से जीत हासिल की थी। इस सीट से सोनकर भी उप चुनाव लड़ने की मंशा पाले होंगे, लेकिन भाजपा सिलावट को टिकट देगी। भाजपा को उम्मीद है यह सीट वह आसानी से जीत लेगी।

हरदीप सिंह डंग-सुवासरा: दूसरी बार विधायक बने हरदीप सिंह डंग ने 2018 में भाजपा के राधेश्याम पाटीदार को मात्र 350 वोट से मात दी थी। मंदसौर जिले की इस सीट पर कुल 2,06,895 वोट पड़े थे और 10 प्रत्याशी मैदान में थे। डंग को 93,169, पाटीदार को 92,819 तथा निर्दलीय ओमसिंह भाटी को 10,273 वोट मिले थे। व्यवसायी परिवार से ताल्लुक रखने वाले हरदीप ने पोस्ट ग्रेजुएशन हंै। उप चुनाव में उनकी स्थिति मजबूत नजर आ रही है। भाजपा को उम्मीद है कि डंग अपनी सीट बचा लेंगे।

अब देखना यह है कि उपचुनाव में शह-मात के इस खेल में कांग्रेस इन बागी नेताओं से बदला कैसे ले पाती है। भाजपा को जहां भितरघात का खतरा है वहीं कांग्रेस को उम्मीद है कि सहानुभूति का भी फायदा उसे होगा।

बनाए जा सकते हैं 5 मंत्री

प्रदेश में कोरोना वायरस के इस संक्रमण काल में लॉकडाउन होने के कारण मंत्रिमंडल गठन भी अटका हुआ है। संभावना जताई जा रही है फिलहाल 5 मंत्री बनाए जा सकते हैं। जिन नेताओं को मंत्री बनाए जाने की संभावना है उनमें गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, नरोत्तम मिश्रा, राजेंद्र शुक्ल और तुलसी सिलावट का नाम है। इन नेताओं को वित्त, गृह, कृषि, स्वास्थ्य, उद्योग और खाद्यान्न विभाग का मंत्री बनाया जा सकता है।

- अरूण दीक्षित

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