खतरे में बब्बर शेर
23-Jun-2020 12:00 AM 1517

 

एशियाई शेरों के लिए ख्यात गुजरात के गिर अभयारण्य में शेरों की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही है, उसी तेजी से उनकी मौत भी हो रही है। इसलिए वन्य प्राणी विशेषज्ञों ने मप्र के कूनो पालपुर में इन शेरों को बसाने की मांग एक बार फिर तेज कर दी है। उनका कहना है कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो बब्बर शेरों की प्रजाति खतरे में पड़ जाएगी। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 10 जून को एशियाई शेरों की आबादी (2015 और 2020 के बीच 151) में 29 प्रतिशत की ऐतिहासिक वृद्धि का जश्न मना रहे थे, तब ही पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा बनाई गई एक समिति की रिपोर्ट में बताया गया कि जनवरी से लेकर अब तक गुजरात के गिर लॉयन लैंडस्केप (जीएलएल) में 92 एशियाई शेरों की मौत हो चुकी है।

गौरतलब है कि गिर के एशियाई शेरों को मप्र के कूनो पालपुर में बसाने की लगातार कोशिशें चल रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में गुजरात सरकार को पहल करने का निर्देश दिया है। वहीं मप्र सरकार ने इसके लिए कूनो पालपुर अभयारण्य को तैयार कर लिया है, लेकिन केंद्र और गुजरात सरकार की निष्क्रियता के कारण शेरों का विस्थापन नहीं हो पा रहा है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि गिर अभयारण्य में शेरों की आबादी बढ़ने के कारण वे आपस में लड़ रहे हैं या फिर बीमार होकर मौत के घाट उतर रहे हैं। जानकारी के अनुसार कुछ शेर आपस में लड़ कर मर गए और कई कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (सीडीवी) की वजह से मर गए। मंत्रालय से जुड़े एक सूत्र जिनके पास रिपोर्ट है उन्होंने बताया कि जसधर रेसक्यू सेंटर में समिति को दो शेर दिखाए गए, जो सीडीवी से पीड़ित थे। 92 में से 36 शेरों की मौत मई में हुई, जबकि अप्रैल में 24, मार्च में 10, फरवरी में 12 और जनवरी में 10 शेरों की मौत हुई थी। मरने वालों में 19 शेर, 25 शेरनियां, 42 शावक और 6 अज्ञात शेर शामिल हैं। इनमें से सबसे अधिक 59 शेरों की मौत गिर के ईस्ट डिवीजन, धारी में हुई, जहां 2018 में सीडीवी का प्रकोप हुआ था।

दिलचस्प बात यह है कि सितंबर 2018 में जब सीडीवी का प्रकोप हुआ था, उस महीने 26 शेरों की मौत हुई थी, जबकि मई में उससे अधिक शेरों की मौत हुई। एशियाई शेरों के विशेषज्ञ एवं भारतीय जैवविविधता एवं स्वास्थ्य सेवाओं के आंकड़े उपलब्ध कराने वाली गैर लाभकारी संस्था मेटास्ट्रींग फाउंडेशन के सीईओ रवि चेल्लम के अनुसार, गिर लॉयन लैंडस्कैप में शेरों की मृत्यु दर का कोई बेसलाइन डाटा उपलब्ध नहीं है। मार्च 2018 में गुजरात सरकार ने कहा था कि दो साल में 184 शेरों की मौत हो गई। इस बार पांच महीनों में 92 की मौत हुई है, जबकि 60 की मौत सिर्फ अप्रैल और मई में हुई है। हालांकि, गुजरात वन विभाग ने सीडीवी की उपस्थिति से इनकार किया है। जूनागढ़ वन्यजीव सर्कल के मुख्य वन संरक्षक डीटी वासवदा ने कहा कि गिर में यहां कोई सीडीवी नहीं है। हमने अप्रैल में बेबेसिया और सीडीवी के लिए बड़ी संख्या में नमूनों का परीक्षण करने के लिए भेजा, लेकिन अभी तक परिणाम नहीं मिले हैं। उन्होंने कहा कि सीडीवी का मुद्दा गुजरात सरकार के खिलाफ मीडिया द्वारा उछाला गया है। इसमें कोई सच्चाई नहीं है।

मंत्रालय ने 29 मई को एक समिति का गठन किया। इसमें राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के सहायक महानिरीक्षक, मंत्रालय के वन्यजीव प्रभाग के संयुक्त निदेशक, भारतीय वन्यजीव संस्थान के प्रतिनिधि और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के एक पशु चिकित्सक शामिल है। मंत्रालय ने समिति के गठन के साथ ही कहा था कि समिति को जून के पहले सप्ताह में ही क्षेत्र का दौरा करना चाहिए और शेरों की मौत के संयोग, मृत्यु का कारण पता करना चाहिए। साथ ही, यह भी पता करना चाहिए कि शेरों की मौत को रोकने के लिए क्या इंतजाम किए गए। गुजरात के वन विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि गिर में शेरों की मौतों की खबर से ध्यान हटाने के लिए एशियाई शेरों के आंकड़ों का प्रचार किया जा रहा है। शेरों की मौत की जांच कर रही समिति की रिपोर्ट सरकार के पास थी, लेकिन इससे ध्यान हटाने के लिए 5-6 जून को लगाए गए अनुमान को बढ़-चढ़ कर प्रचारित किया जा रहा है। अधिकारी कहते हैं कि जो अनुमानित आंकड़ा अभी बताया जा रहा है, वो नियमित प्रक्रिया है।

विस्थापन की प्रक्रिया शुरू

गुजरात गिर के बब्बर शेरों का कूनो नेशनल पार्क को दूसरा घर बसाने के लिए 24 साल पहले विस्थापित किए जा चुके 24 गांवों के बाद अब 25वें गांव के विस्थापन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। हालांकि ढाई दशक बाद और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी यहां बब्बर शेर नहीं आ पाए हैं, लेकिन अब बागचा गांव को विस्थापित किया जाएगा। जिसके लिए जिला प्रशासन की बैठक भी हो चुकी है और अब गांव के परिवारों के सत्यापन के लिए राजस्व और वन विभाग संयुक्त दल भी गठित कर दिए गए हैं। हालांकि दोनों विभागों के संयुक्त दल के सत्यापन रिपोर्ट के बाद ही विस्थापित परिवारों की अंतिम सूची तय होगी, लेकिन प्रारंभिक रूप से पूर्व में बागचा के 265 परिवारों को सूचीबद्ध किया गया था। बताया गया है कि बागचा गांव के विस्थापन पर साढ़े 26 करोड़ रुपए खर्च होंगे। उल्लेखनीय है कि तीन दशक पहले संरक्षित किए गए कूनो अभयारण्य का दायरा 352 वर्ग किमी का था, जिसे बढ़ाकर डेढ़ साल पहले 748 वर्ग किमी किया गया, साथ ही नेशनल पार्क का दर्जा भी दे दिया गया। यही वजह है कि रकबा बढ़ाने के कारण पहले बफर जोन मेें शामिल बागचा गांव अब नेशनल पार्क में आ गया, लिहाजा कूनो वनमंडल ने तत्समय से ही बागचा को विस्थापन का प्रस्ताव शासन को भेजा था। जिसे शासन ने मंजूरी दे दी। यही वजह है कि अब विस्थापन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसके लिए पिछले दिनों कलेक्टर श्योपुर की अध्यक्षता में विस्थापन संबंधी बैठक आयोजित की गई थी।

- राजेश बोरकर

 

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