खैर की खैर नहीं
05-Apr-2021 12:00 AM 1795

 

प्रदेश के जंगल कत्था बनाने के काम आने वाले खैर की लकड़ी की तस्करी का बड़ा केंद्र बना है। बीते कुछ सालों में यहां से 4 हजार ट्रक लकड़ियां तस्करों ने चुराई और विभिन्न फैक्टरियों को सप्लाय की है। यह खुलासा दो महीने तस्करों से पूछताछ के बाद हुआ है। जानकारी के मुताबिक कई राज्यों में खैर की लकड़ी के लिए तस्कर सक्रिय हैं। मामले में स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स (एसटीएसएफ) बड़े रैकेट की पड़ताल में जुटी है, जिसमें तस्करों के तार हरियाणा के एक बड़े कारोबारी से जुड़े हैं। ये पान मसाला बनाने वाली कंपनी के लिए कत्था बनाकर सप्लाय करता है। उधर अब खैर बचाने में वन विभाग गंभीर हो चुका है।

कुछ सालों में खैर की तस्करी व अवैध व्यापार को लेकर प्रदेश में माफियाओं पर कार्रवाई चल रही है। वन विभाग और एसटीएसएफ दोनों अलग-अलग कार्रवाई करने में लगे हैं। छिंदवाडा, देवास, भोपाल, सतना, जबलपुर, ग्वालियर सहित कई वनक्षेत्र से खैर की लकड़ियां चोरी हो चुकी हैं। तीन साल में 80 से ज्यादा प्रकरण बनाए हैं, जिसमें 95 आरोपियों को पकड़ा गया है। अकेले एसटीएसएफ ने नवंबर 2018 से लेकर अभी तक पूरे प्रदेश में 50 से ज्यादा प्रकरण दर्ज किए हैं। 69 आरोपियों को अलग-अलग राज्यों से पकड़ा है, जिनसे 21 वाहन भी जप्त किए हैं। यहां तक कुछ वाहनों को राजसात करने की प्रक्रिया हो चुकी है। अभी तक 324 मैट्रिक टन खैर की लकड़ी जप्त की गई है। आरोपियों से पूछताछ में बीते 3 साल में प्रदेश के जंगल से खैर बड़ी मात्रा में चुराया गया है, जिसमें करीब 4 हजार ट्रक लकड़ियां दूसरे राज्यों में भिजवाई गई हैं।

जनवरी 2020 में देवास स्थित खिवनी अभयारण्य से वनपोज खैर के पेड़ काटने और अवैध परिवहन को लेकर वन विभाग ने कार्रवाई की। अगले दिन ही एसटीएसएफ ने प्रकरण की जांच अपने हाथ में ली। नियमानुसार अभयारण्य में वन्यप्राणी व वनपोज से जुड़े अपराध की जांच एसटीएसएफ कर सकता है। खिवनी अभयारण्य से खैर तस्करी में पिछले साल ही 6 लोगों को गिरफ्तार किया गया। सूत्रों के मुताबिक जांच में तस्करी के बाद लकड़ियां कई राज्यों में पहुंचने की बात गिरोह ने कबूली। गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, उप्र, राजस्थान की फैक्टरियों में लकड़ियां सप्लाय हुईं, जिसमें हरियाणा के भाजपा नेता के भांजे की फैक्टरी भी शामिल है। यहां से एक कर्मचारी को गिरफ्तार किया गया है। जनवरी 2021 में एसटीएसएफ ने एक ट्रक संचालक विनोद कटियार को पकड़ा। बताया जाता है कि कई बड़े कारोबारियों के नाम सामने आए हैं।

तस्करों से पूछताछ में कई चौंकाने वाली जानकारी मिली है। फैक्टरियों में खैर की लकड़ियां पहुंचने के बाद इनसे कत्था निकाला जाता है। इसे पान मसाला बनाने वाली कंपनियों को भेजते हैं। हरियाणा के जिस कारोबारी का नाम प्रकरण में शामिल है। इसकी फैक्टरी से भी कत्थे के लिए कंपनी को निरंतर खैर सप्लाय हुआ है। एसटीएसएफ इस कारोबारी को पकड़ने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। सूत्रों के मुताबिक कारोबारी को बचाने के लिए एसटीएसएफ के अधिकारियों से रोहित नामक व्यक्ति संपर्क बनाए हुए है।

देश में सबसे अधिक 1.67 प्रतिशत खैर के जंगल मप्र में हैं, जबकि पश्चिम बंगाल, उप्र, राजस्थान में भी खैर के पेड़ मौजदू हैं। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईईपीएन) ने दुनियाभर में पेड़ों की जिन प्रजातियों को खतरे में माना था उसमें खैर भी शामिल है। प्रदेश में खैर की चोरी होने के बावजूद वन विभाग की सक्रियता थोड़ी कम नजर आती है। बताया जाता है कि कई स्थानों पर तस्कर क्षेत्रीय वनकर्मियों से सांठगांठ बनाए है। पान मसाले और कैमिकल के लिए इस्तेमाल होने वाली खैर की लकड़ी काफी महंगी बिकती है। 5 हजार रुपए प्रति क्विंटल मूल्य में लकड़ी बिकती है। मांग अधिक होने पर तस्कर इसकी कीमत भी बढ़ा देते हैं। पीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ व एसटीएफएस प्रमुख अलोक कुमार कहते हैं कि खैर की तस्करी को लेकर वन विभाग और एसटीएसएफ मिलकर काम कर रहा है। वन विभाग ने जंगल में सर्चिंग बढ़ाई है और एसटीएसएफ तस्करों से पूछताछ कर गिरोह का पता लगाने में जुटे है। कारोबारी पर शिकंजा कसने के लिए सबूत जुटाने का काम किया जा रहा है।

खैर के हरे पेड़ को काटने की सख्त मनाही है। उत्तराखंड में नदियों के किनारे लगे पेड़ जो बाढ़ में बह जाते हैं, उन्हें वन विभाग बेचता है। इसी तरह अन्य स्थानों पर भी वन विभाग खराब हुए पेड़ों को बेचता है, जिससे बाजार में इसकी उपलब्धता के साथ जंगल भी बचाया जा सके। हरियाणा में हर 10 साल में वन विभाग खैर के वयस्क पेड़ काटते हैं और नया पौधा लगा देते हैं। मांग अधिक होने की वजह से वन तस्कर बेहताशा इस पेड़ को काटते हैं। बाजार में लकड़ी की कीमत 5 से 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक है। इस तरह एक वयस्क पेड़ से 5 से 7 लाख रुपए तक का फायदा हो जाता है।

गुणों की वजह से खैर के पेड़ों पर वन माफिया की नजर

देशभर में खैर का जंगल तेजी से सिमट रहा है और वन विभाग ने इसे दुर्लभ वृक्ष की श्रेणी में रखा है। राष्ट्रीय वन नीति 1988 में पेड़ों की प्रजातियों को संतुलित रूप से इस्तेमाल में लाने की बात कही गई है जिससे वे खत्म न हों। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने वर्ष 2004 में विश्व में तकरीबन 552 पेड़ों की प्रजातियों को खतरे में माना गया जिसमें 45 प्रतिशत पेड़ भारत से थे। इन्हीं में खैर का नाम भी शामिल है। इस पेड़ का इस्तेमाल औषधि बनाने से लेकर पान और पान मसाला में इस्तेमाल होने वाले कत्था, चमड़ा उद्योग में इसे चमकाने के लिए किया जाता है। प्रोटीन की अधिकता के कारण ऊंट और बकरी के चारे के लिए इसकी पत्तियों की काफी मांग है। चारकोल बनाने में भी इस लकड़ी का उपयोग होता है। आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल डायरिया, पाइल्स जैसे रोग ठीक करने में होता है। मांग अधिक होने की वजह से खैर के पेड़ों को अवैध रूप से जंगल से काटा जाता है। तस्करी के मामलों में पुलिस व वन विभाग द्वारा वाइल्ड लाइफ एक्ट 1972 की धारा 50 के अंतर्गत गिरफ्तारी करके कार्रवाई होती है। तस्करों के पकड़े जाने पर 3 वर्ष की सजा व जुर्माने का भी प्रावधान है।

- नवीन रघुवंशी

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