दांव पर साख
05-Apr-2021 12:00 AM 1317

 

दमोह विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव का मैदान सज गया है। उपचुनाव में मुख्य मुकाबला कांग्रेस से भाजपा में आए पूर्व विधायक राहुल लोधी और कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन के बीच है। लेकिन इस उपचुनाव में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की साख दांव पर है। इसलिए भाजपा ने अपने दो मंत्रियों नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह और लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव को प्रभारी नियुक्त किया है। इन दोनों नेताओं पर पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी होगी।

चुनाव आयोग ने 16 मार्च को ऐलान किया कि मप्र की दमोह विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव 17 अप्रैल को होगा। अन्य विधानसभा चुनावों के परिणाम के साथ-साथ 2 मई को दमोह सीट का भी नतीजा घोषित होगा। अक्टूबर, 2020 में तत्कालीन कांग्रेस विधायक राहुल लोधी के इस्तीफे के बाद यह सीट खाली हो गई थी। तब राहुल लोधी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। इस उपचुनाव को केंद्रीय मंत्री तथा दमोह से सांसद प्रहलाद सिंह और पूर्व राज्य मंत्री जयंत मलैया के बीच छद्म युद्ध के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उनकी पार्टी उपचुनाव के इस जंग में जोरदार तरीके से उपस्थित है। कांग्रेस ने अजय टंडन को यहां का अपना प्रत्याशी बनाया है। वे दमोह से कांग्रेस के वफादार परिवार से हैं।

अजय टंडन पर पार्टी ने तीसरी बार भरोसा जताया है। इस बार उनकी सीधी टक्कर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए राहुल लोधी से होगी। टंडन का इससे पहले दो बार पूर्व वित्तमंत्री जयंत मलैया से मुकाबला हो चुका है। मलैया 6 बार इस सीट से विधायक रह चुके हैं। लेकिन पिछले चुनाव में कांग्रेस के राहुल लोधी ने उन्हें हरा दिया था। अब लोधी भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं। मलैया 2018 में कांग्रेस के राहुल लोधी से करीब 800 वोटों से हार गए थे। राहुल लोधी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले कुल 26 लोगों में आखिरी शख्स थे। अन्य 25 लोगों को नवंबर, 2020 में मप्र में उपचुनाव का टिकट देकर पुरस्कृत कर दिया गया था। उम्मीद थी कि समझौते के तहत लोधी को टिकट मिल जाएगा। लेकिन लोधी स्थानीय तौर पर बहुत लोकप्रिय नहीं हैं और मलैया दमोह के दिग्गज नेता हैं। ऐसे में लोधी की राह आसान नहीं है। मलैया 1990 और 2013 के बीच 6 बार यह सीट जीत चुके हैं। मलैया के बेटे सिद्धार्थ भी टिकट के दावेदारों में शामिल थे। भाजपा जहां लोधी को पुरस्कृत करना चाहती है, वहीं यह भी चर्चा है कि सिद्धार्थ निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि साल 1984 में दमोह सीट कांग्रेस विधायक चंद्र नारायण टंडन के निधन के बाद रिक्त हो गई थी। कांग्रेस ने उनके भतीजे अनिल टंडन को मैदान में उतारा था, जो भाजपा उम्मीदवार जयंत मलैया से हार गए थे। मलैया की जीत ने उनके सियासी कैरियर को 2018 तक मजबूत बनाए रखा, तब तक वे भाजपा सरकार में मंत्री बने रहे। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दमोह उपचुनाव लोधी के कैरियर को पुनर्जीवित करेगा या किसी नए नेता को उभारेगा।

दमोह में भाजपा के दिग्गज नेता पूर्व में 6 बार विधायक रह चुके जयंत मलैया को प्रत्याशी न बनाए जाने से उनके समर्थकों में नाराजगी नजर आ रही है। वहीं मलैया के बेटे सिद्धार्थ भी इस सीट से भाजपा से टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने की बात कह चुके हैं। इधर, दमोह में सिद्धार्थ और गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव को भी साथ देखा गया है। उधर, शिवराज कैबिनट में मंत्री भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव को विधानसभा क्षेत्र का प्रभारी बनाया गया है। कई लोग इन्हें मलैया-विरोधी मानते हैं। जिस तरह दमोह में भाजपा का निश्चित वोट है, उसी तरह कांग्रेस का भी। दमोह बुंदेलखंड क्षेत्र में आता है और आगामी चुनावों में शायद ही कोई स्थानीय कारक उभरे। उम्मीद की जा रही है कि जाति ही प्रभावी कारक होगा।

दमोह सीट पर अपना कब्जा बरकरार करने के लिए कांग्रेस ने माइक्रोमैनेजमेंट प्लान तैयार किया है। कांग्रेस के संगठन पदाधिकारियों को दमोह में डेरा डाल पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की जिम्मेदारी दी गई है। मप्र महिला कांग्रेस ने हर वार्ड में 10 महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं की टीम तैनात कर दी है। ये कार्यकर्ता आपके द्वार कार्यक्रम के जरिए महिलाओं को बढ़ती महंगाई के प्रति जागरूक और कमलनाथ सरकार की उपलब्धियां बता रही हैं। कभी अपनी परंपरागत रही सीट को कांग्रेस से हथियाने के लिए भाजपा ने भी जोर लगाना शुरू कर दिया है। दमोह चुनाव के लिए बूथ स्तर तक तैयारी की गई हैं। पार्टी ने निचले स्तर तक नेता और कार्यकर्ताओं की टीम तैनात कर दी है। जो भाजपा उम्मीदवार राहुल लोधी के समर्थन में माहौल बनाने में जुटे हैं।

उधर, दमोह विधानसभा सीट उपचुनाव की रणनीति पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पूरी तरह से अपने हाथ में ले रखी है। दिग्विजय सिंह, अरूण यादव सहित दूसरे बड़े नेताओं की कोई भूमिका अब तक सामने नहीं आई। गत दिनों उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी का नामांकन करवाया। इस दौरान भी कांग्रेस का कार्यक्रम फीका रहा। दमोह में अजय टंडन को अपनी पसंद और सर्वे के आधार पर कमलनाथ ने ही टिकट दिया है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने तो सिर्फ उम्मीदवार घोषित करने की औपचारिकता की है। दमोह के उपचुनाव में कमलनाथ के नेतृत्व की भी एक और परीक्षा होना है। कमलनाथ, मप्र कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष होने के साथ-साथ पार्टी विधायक दल के नेता हैं। कमलनाथ पहली बार मप्र में पूरा समय देकर राजनीति कर रहे हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था। उनके साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी के प्रचार का प्रमुख चेहरा थे। 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में वापस लौटी। लेकिन, 15 माह भी सरकार नहीं चल सकी थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी उपेक्षा के कारण 25 विधायकों के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी।

सिंधिया के कांग्रेस पार्टी छोड़कर जाने के बाद राज्य की कांग्रेस राजनीति का केंद्र कमलनाथ बने हुए हैं। दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, अजय सिंह, कांतिलाल भूरिया और अरूण यादव जैसे कद्दावर चेहरे हाशिए पर दिखाई दे रहे हैं। दमोह विधानसभा उपचुनाव के लिए आयोजित की गई पहली सभा के मंच पर कांग्रेस एकजुट होने का संदेश नहीं दे पाई है। कमलनाथ के अलावा कार्यक्रम में कोई दूसरा बड़ा नेता मौजूद नहीं था। कमलनाथ ने चुनाव की कमान अपने भरोसेमंद समर्थकों को सौंपी है। दो विधायक रवि जोशी और संजय यादव के पास चुनाव संचालन की जिम्मेदारी है।

मप्र में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नब्ज समझने वाले दिग्विजय सिंह अकेले नेता हैं। विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह को नेताओं के बीच समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी थीं। राज्य में कांग्रेस कई गुटों में बंटी हुई है। सबसे बड़े गुट के क्षत्रप खुद दिग्विजय सिंह हैं। दिग्विजय सिंह राज्य के 10 साल मुख्यमंत्री रहे हैं। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिस्टर बंटाधार के नारे पर ऐतिहासिक जीत मिली थी। पार्टी की हार के बाद दिग्विजय सिंह ने अपनी घोषणा के अनुसार पार्टी में 10 साल तक कोई पद नहीं लिया चुनाव भी नहीं लड़ा। 15 साल के लंबे अंतराल के बाद उन्होंने वर्ष 2019 में भोपाल से लोकसभा सांसद का चुनाव लड़ा, हार गए। इससे पहले विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के मैदानी कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय स्थापित करने में दिग्विजय सिंह की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही थी। कांग्रेस की सत्ता में वापसी की एक वजह नेताओं के बीच समन्वय भी रहा। लेकिन, सत्ता में आते ही नेताओं के बीच समन्वय टूट गया। सरकार गिरने का ठीकरा भी दिग्विजय सिंह के सिर फूटा। 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में दिग्विजय सिंह मुख्य भूमिका में दिखाई नहीं दिए थे। कमलनाथ ने उम्मीदवारों का चयन भी खुद ही किया था।

कमलनाथ का एक साथ दोनों महत्वपूर्ण पद संभालना कांग्रेस की राजनीति में असंतोष का कारण बने हुए हैं। गोडसेवादी पार्टी से आए बाबूलाल चौरसिया के प्रवेश के समय असंतोष सामने भी आया था। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अरूण यादव ने तो तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि बापू हम शर्मिंदा हैं। एक अन्य नेता माणक अग्रवाल को पार्टी से ही बाहर निकाल दिया गया। इस सवाल पर प्रवक्ता अजय सिंह यादव ने कहा कि वक्त का इंतजार करिए। पार्टी अपनी रणनीति के अनुसार चेहरों का उपयोग करेगी। दमोह में 17 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। कांग्रेस उम्मीदवार अजय टंडन सिर मुडाते ही ओलों का शिकार हो गए। पहले तो चुनावी सभा में कमलनाथ टंडन का नाम ही भूल गए। दूसरी अजीब स्थिति उस वक्त बनी जब नामांकन दाखिल कराने में भी कमलनाथ साथ नहीं गए। जबकि चुनावी सभा और नामांकन पत्र दाखिल कराने के लिए ही कमलनाथ दमोह गए थे। मप्र भाजपा के अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा तंज करते हुए कहते हैं कि कमलनाथ की उम्र चुनाव प्रचार की नहीं है, उन्हें आराम करना चाहिए।

अब शोले के जय और वीरू बने भार्गव और मलैया

अमर-अकबर-एंथोनी की जोड़ी टूटने के बाद अब प्रदेश के मंत्री गोपाल भार्गव ने खुद को और पूर्व वित्तमंत्री जयंत मलैया को शोले के जय और वीरू की जोड़ी कहा है। उनका कहना है कि यदि चुनाव जीतने के लिए जरूरत पढ़ी तो वह दोनों जय और वीरू बन जाएंगे। बता दें कि वर्ष 2008 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद गोपाल भार्गव, जयंत मलैया और डॉ. रामकृष्ण कुसमरिया को मंत्री बनाया गया था। उस समय जब ये तीनों मंत्री एक कार्यक्रम में दमोह पहुंचे थे तो उन्होंने तीनों को अमर-अकबर-एंथोनी की जोड़ी बताया था और ये भी कहा था कि अब ये जोड़ी खूब कमाल करेगी। समय बदला तो एंथोनी बने डॉ. कुसमरिया ने 2018 विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने पर बगावत कर दी और निर्दलीय चुनाव लड़े, फिर कांग्रेस में चले गए। हालांकि अब वे भाजपा में आ गए हैं, लेकिन मंत्री भार्गव और मलैया से अब उनकी कुछ खास नहीं बनती, इसलिए अब इस जोड़ी ने अपने नए किरदार तय कर लिए हैं। चुनावी समीकरण पर चर्चा के दौरान मंत्री भार्गव ने कहा कि उपचुनाव को लेकर कोई कशमकश नहीं है। परिणाम सप्ष्ट है, दीवार पर लिखा है। भाजपा भारी बहुमत से दमोह विधानसभा का उपचुनाव जीतेगी। किसी प्रकार का संदेह किसी के मन में नहीं रहना चाहिए। परिणाम देखने के बाद आप खुद स्वीकार करेंगे कि उन्होंने सही कहा था। जहां तक पार्टी की बात है, तो ये उपचुनाव है। भाजपा की ताकत के बारे में पूरा देश जानता है, दुनिया जानती है। भााजपा दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है और अपनी रीति-नीति और अपने संगठन के लिए भी जानी जाती है। संगठन के कार्यकर्ता तो अभी शुरुआती दौर में हैं।

कांग्रेस ने खेला ब्राह्मण कार्ड

नगरीय निकाय चुनाव तथा विधानसभा उपचुनाव को लेकर कांग्रेस के रणनीतिकार वो हर दांव खेलने की तैयारी में लगे है जिससे प्रमुख विपक्षी दल भाजपा को पटखनी दी जा सके। कांग्रेस पिछले साल मार्च में प्रदेश की सत्ता से बेदखल होने के बाद और उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद अब किसी तरह की चूक नहीं चाहती। ऐसे में अब संगठनात्मक फेरबदल भी बहुत सोच समझकर किया जा रहा है। इसी के तहत अब पार्टी के दिग्गज नेता और दमोह नगर पालिका के अध्यक्ष रह चुके मनु मिश्रा को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। माना जा रहा है कि मिश्रा के अनुभवों का लाभ हासिल कर पार्टी निकाय चुनाव में भी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। पूर्व पालिका अध्यक्ष मनु मिश्रा कांग्रेस की ओर से प्रबल दावेदारों में से थे। लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों ने मिश्रा को दोबारा नगर पालिका अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाने के साथ ही जिले की कमान सौंपने का निर्णय किया है। ऐसे में जिन चार जिला अध्यक्षों की सूची जारी की गई है उसमे मनु मिश्रा को शामिल किया गया है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो विधानसभा उपचुनाव से पहले कांग्रेस ने ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए दमोह नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष मनु मिश्रा को कांग्रेस का जिलाध्यक्ष बनाया है। विधानसभा सीट पर ब्राह्मण वोटों को साधने के लिए यह कदम उठाया गया है।

- लोकेंद्र शर्मा

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