केजरीवाल मॉडल का सहारा
18-Feb-2020 12:00 AM 1248

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस का खाता न खुला हो लेकिन उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत करने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की जोड़ी लगातार मेहनत कर रही है। मिशन 2022 को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस अब उप्र में 'केजरीवाल मॉडल’ का सहारा लेगी। कांग्रेस बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और किसानों के मुद्दों को हथियार बनाने की रणनीति पर काम कर रही है।

दरअसल, दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की बंपर जीत के पीछे केजरीवाल की 'फ्री स्कीम’ का अहम योगदान माना जा रहा है। साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में केजरीवाल सरकार द्वारा किए गए काम को भी जनता का समर्थन मिला है। लिहाजा अब कांग्रेस भी केजरीवाल के 'विकास मॉडल’ को अपनाने की तैयारी में है। कांग्रेस उप्र में दिल्ली के तर्ज पर ही बिजली और पानी पर अपना विजन साफ करेगी। कांग्रेस शिक्षा और स्वास्थ्य की गारंटी भी देगी। इतना ही नहीं कांग्रेस उप्र में सुरक्षा और किसानों पर भी बात करेगी। कांग्रेस नेता सचिन नायक ने बताया कि प्रियंका गांधी आजमगढ़ पहुंची थीं। उनके दौरे को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल रहा। वो लगातार जमीन से जुड़े मुद्दों को लेकर संघर्ष कर रही हैं। आजमगढ़ की जमीन से उन्होंने सीएए और एनआरसी के विरोध में आवाज बुलंद की। इतना ही नहीं आम जन मानस से जुड़े मुद्दों को भी लेकर प्रियंका सड़क पर उतर रही हैं। कांग्रेस हमेशा से ही गरीबों, दलितों, किसानों, युवा और महिलाओं के मुद्दों पर संघर्ष करती रही है।

दरअसल, कांग्रेस ने उप्र में फ्रंट फुट पर खेलने का मन बना लिया है। सपा-बसपा गठबंधन के 24 घंटे के अंदर ही पार्टी ने उप्र की सभी 80 सीटों पर चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है। कांग्रेस के फ्रंट फुट पर खेलने की घोषणा से नए नवेले सपा-बसपा गठबंधन को खुश होने का ज्यादा मौका नहीं दिया। कांग्रेस का एक धड़ा तो यही मुराद मांग रहा था कि सपा-बसपा से गठबंधन न हो। कई नेताओं ने गठबंधन में शामिल न होने के लिए राहुल गांधी को पत्र भी लिखा था। सपा-बसपा ने कांग्रेस को गठबंधन से बाहर करके कांग्रेस को फ्रंट फुट पर खेलने के लिए मजबूर नहीं किया है। वास्तव में कांग्रेस तो तीन राज्यों में मिली सत्ता के बाद से ही गठबंधन को खास तवज्जो नहीं दे रही थी। पर वो गठबंधन में शामिल न होने की बदनामी से बचना चाहती थी।

कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो कांग्रेस ने सपा-बसपा गठबंधन की काट ढूंढ ली है। कांग्रेस ने अपने दिग्गज चेहरों के आधार पर चुनाव लडऩे की योजना को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष भी क्षेत्र में प्रभावी चेहरों पर दांव लगाकर उनके दमखम और जमीनी हकीकत को आंकना चाहते हैं। उप्र में कांग्रेस का संगठन मजबूत न होने के कारण भी ऐसी रणनीति बनाई जा रही है। अगर ऐसा होता है तो रायबरेली से सोनिया गांधी और अमेठी से राहुल गांधी के अलावा अन्य कई सीटों से भी कई प्रमुख व खास चेहरे मैदान में होंगे। प्रतापगढ़ क्षेत्र से रत्ना सिंह व इलाहाबाद से प्रमोद तिवारी को मैदान में उतारा जा सकता है। वहीं, लखीमपुर खीरी की धौहरारा सीट से जितिन प्रसाद, बाराबंकी से पीएल पुनिया, गोंडा से बेनी प्रसाद वर्मा, कुशीनगर से आरपीएन सिंह, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर क्षेत्र से इमरान मसूद, फर्रूखाबाद से सलमान खुर्शीद, फैजाबाद से निर्मल खत्री और कानपुर से श्रीप्रकाश जयसवाल पर पार्टी दांव लगा सकती है। प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर को आगरा या फिरोजाबाद से उतारा जा सकता है। इन लोगों का अपने-अपने क्षेत्र में प्रभाव भी है और ये अच्छे वोट भी बटोर सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार सीटों के अलावा कांग्रेस को अकेले लडऩे में और भी फायदे नजर आ रहे हैं। प्रदेश की सभी 80 सीटों से चुनाव लडऩे से उसे हर एक लोकसभा सीट पर एक नेता मिल जाएगा, दूसरे पार्टी लोकसभा चुनाव के बहाने अपने कमजोर संगठन को एक बार फिर खड़ा कर सकती है। गठबंधन की स्थिति में उसके पाले में चंद सीटें ही आएंगी और संगठन भी वहीं रह पाएगा, पूरे राज्य में नहीं। कांग्रेस के कई नेता यह दावा करते हैं कि कांग्रेस सीटों के मामले में अकेले लड़कर भी गठबंधन की तुलना में ज्यादा ला सकती है। उधर कांग्रेस के तमाम जमीनी नेता भी यही चाहते हैं और लगातार मांग कर रहे हैं कि पार्टी अकेले चुनाव लड़े। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन के बाद मिली करारी पराजय की वजह से फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।

लगातार सड़कों पर नजर आ रही हैं प्रियंका

बता दें कि सोनभद्र में आदिवासियों के नरसंहार का मामला रहा हो, या फिर ब्राह्मणों की हत्या के बाद ब्राह्मण यात्रा, उन्नाव और शाहजहांपुर रेप पीडि़तों का मामला, या फिर सीएए का विरोध करने वालों पर पुलिसिया कार्रवाई और गन्ना किसानों के भुगतान का मुद्दा सभी पर प्रियंका गांधी ने न सिर्फ मुखर होकर अपनी बात रखी बल्कि सड़कों पर भी वो उतरीं। प्रियंका गांधी लगातार किसान, कानून व्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर उप्र की सड़कों पर संघर्ष करती दिख रही हैं। जिसका असर भी देखने को मिल रहा है। हताश और निराश कांग्रेस कार्यकर्ताओं में प्रियंका गांधी और अजय कुमार लल्लू की जोड़ी ने जान फूंकने का काम किया है। अब आगे की रणनीति दिल्ली के 'केजरीवाल मॉडल’ पर तय होगी। कांग्रेस नेताओं के मुताबिक पार्टी अब बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगार, महिलाओं और किसानों से जुड़े मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरेगी।

- लखनऊ से मधु आलोक निगम

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