कमलनाथ के सामने खुला मैदान
07-Jan-2021 12:00 AM 442

 

वर्तमान समय में कांग्रेस संक्रमण के दौर से गुजर रही है। पहले अहमद पटेल, फिर मोतीलाल वोरा के निधन के बाद पार्टी में एक ऐसे रणनीतिकार की जरूरत है जो इनके खालीपन को भर सके। इस कड़ी में मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का नाम सबसे ऊपर है। दरअसल, कमलनाथ सोनिया गांधी के विश्वसनीय नेताओं में शामिल हैं। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि नाथ को सोनिया गांधी अपनी कोर कमेटी में बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकती है। वैसे नाथ के लिए मैदान खुला है।

कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में लोगों के सामने एक शिगूफा छोड़ा था- संन्यास लेने जैसा। शर्त भी रख दी, अगर छिंदवाड़ा के लोग चाहें। वे लोग जिन्होंने 9 बार वोट देकर उनको लोकसभा पहुंचाया और उनके बाद उनके बेटे नकुलनाथ को भी जिता दिया। वो भी तब जब मोदी लहर की आंच में कांग्रेस के टिकट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी झुलस गए और अपने गढ़ में चुनाव हारने वाले पहले सिंधिया बने।

असल बात तो ये रही कि कमलनाथ मप्र में अब तक डेप्युटेशन पर रहे और जब उनके दिल्ली लौटने का रास्ता खुल गया तो संन्यास लेने और आराम करने का मूड होने जैसी बातें करने लगे। वरना, मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ वो मप्र कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद छोड़ने तक को तैयार न थे। कोरोना वायरस के चलते देश में लॉकडाउन लागू होने से पहले कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते वक्त कहा था- आज के बाद कल आता है और कल के परसों भी आता है। कमलनाथ के बयान के कई तरीके से राजनीतिक मतलब निकाले गए थे, लेकिन उपचुनावों में कोई कमाल नहीं दिखा पाए। लिहाजा वो 'कलÓ तो आया नहीं, शायद इसीलिए अब 'परसोंÓ की तैयारी में लग गए हैं।

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के बरसों राजनीतिक सचिव रहे अहमद पटेल के निधन के बाद पार्टी को शिद्दत से उनके उत्तराधिकारी की तलाश है। जब अहमद पटेल के बाद कांग्रेस का कोषाध्यक्ष बनाए जाने की बात चली, तो भी कमलनाथ का नाम संभावित लिस्ट में आया था, लेकिन फिर पवन कुमार बंसल की कुछ खासियतों के चलते फिलहाल उनको अंतरिम कोषाध्यक्ष बना दिया गया। मतलब, कमलनाथ के सामने अब भी खुला मैदान है और वो चाहें तो मप्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी की ही तरह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को पछाड़कर अहमद पटेल की जगह ले सकते हैं। सुनने में आया है कि सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं की मीटिंग के अघोषित संयोजक कमलनाथ ही हैं और ये मीटिंग ही कमलनाथ के आगे का राजनीतिक भविष्य तय करने वाली है। सोनिया गांधी ने मीटिंग के दौरान राहुल गांधी को लेकर कमलनाथ को एक बहुत ही मुश्किल टास्क दे रखा है।

कमलनाथ की ये पहल कम से कम इस हिसाब से तो ठीक ही लगती है कि इसी बहाने अहमद पटेल की जगह लेने की कोशिशों में ये मीटिंग रिहर्सल का मौका मुहैया करा रही है और बाकी सब ठीक रहा, तो फिर कमलनाथ की बल्ले-बल्ले ही है। सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं की एक अति महत्वपूर्ण बैठक ऐसे वक्त बुलाई गई है, जब कुछ बातें पहले से तय और निश्चित हैं, एक- कांग्रेस के लिए नए अध्यक्ष का चुनाव, दो- सोनिया गांधी का यूपीए चेयरपर्सन पद भी छोड़ना और तीन- यूपीए के लिए नए चेयरमैन का चुनाव। हाल ही में यूपीए के नए चेयरमैन को लेकर शरद पवार का नाम उछला था जो एनसीपी के इंकार और शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के सस्पेंस खड़ा करने के बीच गायब भी हो गया।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीब हफ्ता भर गोवा में बिताने के बाद दिल्ली लौटने पर ये मीटिंग बुलाई गई है। दिल्ली में प्रदूषण के चलते डॉक्टरों ने सोनिया गांधी को कुछ दिन के लिए कहीं बाहर जाने की सलाह दी थी। जाने से पहले सोनिया गांधी ने कांग्रेस में कामकाज को सुचारू बनाने के लिए कुछ कमेटियां भी बनाई थीं जिनमें चिट्ठी लिखने वाले जी-23 नेताओं को भी जगह दी गई थी और अब होने जा रही मीटिंग में करीब आधा दर्जन ऐसे नेताओं के शामिल होने की भी संभावाना जताई जा रही है। सोनिया गांधी के दिल्ली लौटने के बाद कमलनाथ दो बार उनसे मिल चुके हैं और राहुल गांधी की नए सिरे से संभावित ताजपोशी से पहले रास्ते की अड़चनों को दूर करने का दावा करते हुए कुछ करने की पहल की है। सुना है सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद कमलनाथ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से भी मिल चुके हैं।

सोनिया गांधी को लगने लगा है कि जिस तरीके से जी-23 नेता सक्रिय हैं, कहीं ऐसा न हो राहुल गांधी के अध्यक्ष चुनाव के दौरान जितेंद्र प्रसाद जैसा वाकया न हो जाए। सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने पर जब आम सहमति बनाने की कोशिश की जा रही थी तो जितेंद्र प्रसाद ने बगावत कर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी।

अगर जितेंद्र प्रसाद जैसा विरोधी रुख अपनाते हुए किसी ने राहुल गांधी को चैलेंज किया तो नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी। ध्यान रहे जब जितेंद्र प्रसाद ने चैलेंज किया था, सोनिया गांधी के पक्ष में सारे कांग्रेसी खड़े हो गए थे और वो अकेले पड़ गए। ऐसा ही तब भी हुआ था जब शरद पवार के साथ कुछ नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने को मुद्दा बनाकर बगावत कर डाली थी, तब भी सोनिया गांधी का जादू चला और विरोध आसानी से दब गया। मौजूदा माहौल काफी अलग है। सोनिया गांधी को लेकर तो कांग्रेस में अब भी कोई ऐसी वैसी बात नहीं है, लेकिन राहुल गांधी के नाम पर आम सहमति नहीं है। ये सही है कि राहुल गांधी के नाम पर कांग्रेस में खासी एकजुटता है, लेकिन सच तो ये भी है कि वो आम सहमति जैसी तो कतई नहीं है।

हाल फिलहाल, जी-23 के चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को काफी सक्रिय देखा गया है। बिहार चुनाव के बाद कुछ सीनियर नेताओं के बीच कई दौर की मीटिंग हुई है। गुलाम नबी आजाद जी-23 के सर्वमान्य नेता बने हुए हैं और कपिल सिब्बल झंडा लेकर आगे-आगे चल रहे हैं। ऐसे कुछ नेताओं और कमलनाथ के बीच भी संवाद हुआ था और फिर सोनिया गांधी से मुलाकात में कमलनाथ ने असंतुष्ट नेताओं का संदेश भी पहुंचाने की कोशिश की। कमलनाथ ने अपनी तरफ से ऐसे नेताओं को बुलाकर उनकी बात सुनने की सोनिया गांधी को सलाह दी तो वो तैयार हो गईं।

कमलनाथ की वफादारी पर सोनिया गांधी को अहमद पटेल जैसा भरोसा भले न हो, लेकिन मौजूदा दौर में उनकी नजर में जो भी ऐसे नेता होंगे उनमें कम भी नहीं है। लगता है यही सब सोचकर सोनिया गांधी ने कमलनाथ के सामने उनको नए संकटमोचक की भूमिका में आने और कुछ ठोस नतीजे हासिल करने का काम सौंपा है और इन कामों में सबसे ज्यादा अहम है राहुल गांधी के रास्ते की बाधाओं को खत्म करना।

राहुल गांधी के राजनीतिक राह की बाधाएं भी बला की तरह हैं जो बगैर बताए किसी भी तरफ से आ धमकती हैं। कभी अमेरिका से बराक ओबामा किताब लिखकर उनकी कमजोरियां बताने लगते हैं तो कभी महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में हिस्सेदार एनसीपी नेता शरद पवार निरंतरता की कमी बताने लगते हैं। बड़ी मुश्किल ये नहीं है कि राजनीतिक विरोधी भाजपा नेता ऐसी बातों को लेकर हमलावर हो जाते हैं, मुश्किल ये है कि कांग्रेस के भीतर ही राहुल गांधी को नाकाबिल मानने वाले नेता भी ऐसी बातों को खूब हवा देते हैं।

कमलनाथ को ऐसी ही मुश्किलों का हल निकालकर कांग्रेस नेतृत्व के दिल और दल में भी बराबर मजबूत जगह बनाने की चुनौती है और यही वजह है कि सोनिया गांधी और कांग्रेस नेताओं की इस मीटिंग को मनमाफिक नतीजे पर ले जाना भी कमलनाथ के लिए तलवार की धार पर चलने जैसा ही है। मगर, कुदरत के कुछ नियम ऐसे होते हैं कि कभी भी मंजिल की कोई राह आसान नहीं होती।

ये इम्तिहान है

कमलनाथ के लिए कांग्रेस में अब तक की राजनीति स्कूल टाइम जैसी ही रही है। ये पहला मौका लगता है जब उनको इम्तिहान देकर कुछ हासिल करना पड़ रहा है। कमलनाथ, इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी के साथ पढ़े हुए हैं और वही दोस्ती अब तक कांग्रेस में उनकी राजनीति को कायम रखे हुए है। इंदिरा गांधी उनको तीसरे बेटे की तरह मानती थीं और वो रिश्ता राजीव गांधी से होते हुए सोनिया गांधी के जमाने तक चला आ रहा है। हालांकि, आगे का सफर तय करने के लिए कमलनाथ को साबित करना है कि वो अहमद पटेल जैसे तो नहीं लेकिन बाकियों से बेहतर संकटमोचक बन सकते हैं और यही उनके लिए सबसे बड़ा इम्तिहान है। कमलनाथ को अहमद पटेल जैसे नेता का उत्तराधिकारी बनना है जो गांधी परिवार के मौजूदा तीनों शक्ति केंद्रों सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को कभी भी उनके मोबाइल का नंबर डायल करने के मैंडेट हासिल किए हुए था।

कमलनाथ पीसीसी चीफ रहेंगे या दिल्ली जाएंगे फैसला 3 को

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने रहेंगे या फिर दिल्ली में उन्हें कोई जिम्मेदारी दी जाएगी? यह 3 जनवरी को दिल्ली में आयोजित कोर ग्रुप की बैठक में तय हो सकता है। हालांकि कमलनाथ कह चुके हैं कि वे फिलहाल मप्र में ही रहेंगे। लेकिन कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ देंगे, यह लगभग तय हो चुका है। आगे यह जिम्मेदारी किसे मिलेगी, केंद्रीय नेतृत्व ही तय करेगा। लेकिन माना जा रहा है कि सीनियर विधायक डॉ. गोविंद सिंह और बाला बच्चन नेता प्रतिपक्ष पद के प्रबल दावेदार हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह गोविंद सिंह की पैरवी कर रहे हैं, जबकि कमलनाथ कैंप बाला बच्चन के लिए लॉबिंग कर रहा है। नेता प्रतिपक्ष कौन होगा? इसको लेकर कमलनाथ ने कहा है कि यह विधायक आपसी सहमति के आधार पर तय करेंगे। कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि कमलनाथ 6 जनवरी तक दिल्ली में रहेंगे। वे 3 जनवरी को होने वाली कोर ग्रुप की बैठक में शामिल होंगे। यह बैठक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर बुलाई गई है। जिसमें अगले एक महीने में पार्टी के अध्यक्ष पद सहित कार्यसमिति के 12 सदस्यों के चुनाव कराने के लिए तैयारी को लेकर निर्णय होना है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की भूमिका भी इस दौरान तय होने की संभावना है। क्योंकि सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल और एआईसीसी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा को निधन के बाद 10 जनपद के भरोसेमंद नेता कमलनाथ हैं। 

-  कुमार राजेन्द्र

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