मप्र कांग्रेस नेताओं ने पिछले सप्ताह 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था। अब इस मुद्दे पर पार्टी आलाकमान के हाथ बंधे नजर आ रहे हैं। मुख्यमंत्री उम्मीदवारों की घोषणा जैसे निर्णय आमतौर पर गांधी परिवार ही लेता आया है। लेकिन अचानक से राज्य के नेताओं का कमलनाथ को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करना उनके अधिकार को कम करने के समान देखा जा रहा है। इसे लेकर फिलहाल तो केंद्रीय नेतृत्व कुछ कहता नजर नहीं आ रहा। इसकी वजह शायद कमलनाथ के साथ उनके समीकरण हैं।
कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि वे इस बात से नाराज हैं कि नाथ ने पार्टी आलाकमान को लूप में नहीं रखा, लेकिन उन्होंने किसी भी तरह की कार्रवाई की संभावना से इंकार किया क्योंकि नाथ 'गांधी परिवार के प्रति वफादारÓ हैं। 75 साल के कमलनाथ, मार्च 2020 में अपनी सरकार के बहुमत खोने तक मप्र के मुख्यमंत्री के रूप में काम करते रहे थे। वह गांधी और तथाकथित जी-21 (मूल रूप से जी-23) वरिष्ठ नेताओं के एक समूह के बीच एक वार्ताकार के रूप में कार्य कर रहे हैं। कांग्रेस के अंदर का विपक्ष कहे जाने वाले इस समूह से जुड़े नेता शुरुआत से ही सामूहिक और समावेशी नेतृत्व की व्यवस्था, हर स्तर पर निर्णय लेने और संगठन में बदलाव की मांग करते आए हैं। हालांकि, कई वरिष्ठ केंद्रीय नेताओं ने कहा कि नाथ की मुख्यमंत्री उम्मीदवारी पर उनके साथ चर्चा नहीं की गई, जबकि अन्य ने कहा कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ही इस संबंध में अंतिम फैसला लेंगी। वैसे राज्य के कुछ नेताओं का दावा ये भी है कि नाथ के मुख्यमंत्री चेहरे पर गांधी परिवार पहले से ही एक अनौपचारिक मुहर लगा चुका है।
4 अप्रैल को राज्य इकाई में विभिन्न गुटों का प्रतिनिधित्व करने वाले मप्र के वरिष्ठ नेताओं ने अपने मतभेदों को एक तरफ रखते हुए ऐलान किया कि पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ेगी। यह फैसला नाथ के आवास पर राज्य इकाई की समन्वय बैठक के दौरान लिया गया। बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी और कांतिलाल भूरिया, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति और विधानसभा की पूर्व डिप्टी स्पीकर हिना कांवरे शामिल थीं। इसके तुरंत बाद अरुण यादव ने ट्वीट किया, कांग्रेस पार्टी भाजपा के कुशासन के खिलाफ राहुल गांधी और कमलनाथ के नेतृत्व में 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ेगी।
मप्र कांग्रेस महासचिव केके मिश्रा ने बताया कि कमलनाथ को सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में चुन लिया गया है। मप्र के लोग उन्हें एक 'दूरदर्शीÓ नेता के रूप में देखते हैं। मिश्रा ने कहा कमलनाथ एक राष्ट्रीय नेता हैं। वह पार्टी में चौथे नंबर पर आते हैं। असल में वह दूसरे नंबर पर आते हैं क्योंकि वह उम्र और तजुर्बे में राहुल और प्रियंका गांधी से बड़े हैं। उन्हें पार्टी आलाकमान की सहमति की जरूरत नहीं है। राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री और जबलपुर से मौजूदा सांसद तरुण भनोट बैठक में मौजूद वरिष्ठ नेताओं में से एक थे। उन्होंने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा, 'हमने उन्हें नेता के रूप में चुना है। जाहिर तौर पर इस पर पार्टी आलाकमान की मंजूरी की मुहर है, तभी तो वह राज्य का नेतृत्व कर रहे हैं।Ó अरुण यादव का कहना है कि यह मप्र कांग्रेस की कोर कमेटी का निर्णय है। उन्होंने बताया, 'मैंने ही कमलनाथ के नाम का प्रस्ताव रखा था। उसके बाद राज्य के सभी वरिष्ठ नेताओं ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि उन्हें पार्टी का नेतृत्व करना चाहिए।Ó
वैसे अंदरूनी कलह से घिरी राज्य कांग्रेस इकाई में यह कदम 'एकताÓ का प्रतीक लगता है। लेकिन हर कोई इससे सहमत नहीं है। एक केंद्रीय नेता ने दावा करते हुए कहा, 'सभी जानते हैं कि नाथ के गांधी परिवार के साथ अच्छे संबंध हैं। भले ही राज्य के नेता व्यक्तिगत रूप से नहीं चाहते कि वह नेतृत्व करें, मगर उनके पास इस फैसले पर अपनी स्वीकृति देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। लेकिन जैसे ही उन्हें केंद्रीय नेतृत्व से कोई इशारा मिलेगा, तो उन्हें बदलने में एक मिनट नहीं लगने वाला।Ó पार्टी की मप्र इकाई में लंबे समय से चली आ रही गुटबाजी के कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया और 22 कांग्रेस विधायक 2020 में भाजपा में शामिल हो गए थे। इसके बाद राज्य में 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार गिर गई। आपसी खींचतान का मसला टला नहीं है। कुछ दिनों पहले, कमलनाथ को उस समय आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था, जब उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से इस महीने रामनवमीं और हनुमान जयंती मनाने के लिए एक सर्कुलर जारी किया था। तब कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने इस पर सवाल उठाते हुए पूछा था कि उन्होंने रमजान मनाने के लिए इस तरह के दिशा-निर्देश क्यों नहीं जारी किए हैं।
गांधी परिवार के लिए मुश्किल स्थिति
कांग्रेस के भीतर विरोध के उठते स्वर और असंतुष्ट नेताओं के जी-21 समूह के बनने के बीच, कमलनाथ उन कुछ वरिष्ठ नेताओं में से रहे हैं, जिन्होंने पार्टी को चलाने के लिए गांधी नेतृत्व पर विश्वास जताया है। केंद्रीय पार्टी के एक नेता के अनुसार, इस स्थिति ने आलाकमान को मुश्किल में डाल दिया है। एक अन्य पार्टी नेता ने बताया, 'अगर वे चाहें तो भी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से नहीं हटा सकते। एक समय में दो युवा नेताओं के नाम चर्चा में थे, लेकिन एक बार फिर इस पर विराम लग गया है। उन्होंने (केंद्रीय नेतृत्व) इस तरह के मामलों को जब तक नजरअंदाज किया जा सकता है, तब तक अनदेखा करने की नीति को अपनाने का फैसला किया है। मप्र में अगले साल के अंत में चुनाव हैं। केंद्रीय नेतृत्व के पास तब तक का समय है। कई केंद्रीय नेताओं ने गांधी परिवार की इस असमंजस की स्थिति पर अपनी नाराजगी जाहिर की है। कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ केंद्रीय नेताओं ने कहा कि विधानसभा चुनावों के लिए अभी एक साल से ज्यादा का समय है। ऐसी कोई भी घोषणा करने में नाथ को 'जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी।Ó
- राजेश बोरकर