कैसे रूकेगी बाघ की मौत
21-Aug-2020 12:00 AM 470

 

दावा किया जा रहा है कि बाघों के संरक्षण के लिए देश में काम हुआ है, उसका असर देखने को मिला और देश में बाघों की संख्या लगातार बढ़ी है। लेकिन सवाल उठता है कि संरक्षण के दावों के बाद भी जंगल में बाघों की मौत कैसे हो रही हैं। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में 7 अगस्त को बाघिन को लेकर दो नर बाघों के बीच हुए भीषण संघर्ष में 8 वर्ष के युवा बाघ की मौत हो गई। वन विभाग इससे संतुष्ट है कि बाघ का शिकार नहीं हुआ। लेकिन वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी यक भूल जाते हैं कि इस देश या मप्र में बाघों की सर्वाधिक मौत शिकार से होती है।

अगर मप्र की बात करें तो बाघों के मामले में दो बातों ने इस साल रिकार्ड तोड़ा। पहला तो यह कि मप्र में जनवरी से मार्च तक एक भी बाघ की मौत की खबर नहीं थी, लेकिन अप्रैल के एक महीने में ही बाघों की सबसे ज्यादा मौतें होने का रिकार्ड भी मप्र ने ही तोड़ा। कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान 1 अप्रैल से 22 अप्रैल तक 8 और 2 मई को एक और बाघ शावक यानी कुल 9 बाघों की मौत की खबर ने सबको हैरान करके रख दिया। इतनी बड़ी संख्या में मौतें देश के किसी भी अन्य राज्य में नहीं हुईं। 1 अप्रैल को कान्हा में, 3 को पेंच, 9 को बांधवगढ़, 11 को बुरहानपुर, 13 को कान्हा, 17 को चित्रकूट और 22 अप्रैल को बांधवगढ़, मुकुंदपुर जू सतना में यह मौतें हुई। 2 मई को बांधवगढ़ से एक बाघ मारे जाने की खबर आई। हैरान करने वाली एक और बात यह है कि सभी बाघों के शव सड़ी-गली हालत में मिले और सभी की उम्र 10 साल से कम थी। इसके अलावा जून, जुलाई में भी बाघों के मौत की घटनाएं हुई हैं।

एनटीसीए के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 8 साल में मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 173 बाघों की मौत हुई। इसमें से 38 बाघों की मौत शिकार की वजह से, 94 की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई। 19 बाघों की मौत का मामला अभी जांच के दायरे में है। 6 बाघ अप्राकृतिक कारणों से मारे गए और 16 के दांत, खाल, नाखून, हड्डियां आदि अवशेष मिले। जानकारी के मुताबिक 8 साल में मौतों के मामले में महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर रहा, जहां 125 बाघों की मौत हुई। इसके बाद कर्नाटक में 111, उत्तराखंड में 88, तमिलनाडु में 54, असम में 54 केरल और उप्र में 35-35, राजस्थान में 17, बिहार और प.बंगाल में 11 तथा छत्तीसगढ़ में 10 बाघों की मौतें हुई हैं। एनटीसीए के मुताबिक 8 साल की अवधि में ओडिशा और आंध्र प्रदेश में 7-7, तेलंगाना में 5, दिल्ली, नागालैंड, हरियाणा और गुजरात मे एक-एक बाघ की मौत हुई है। मीडिया में बाघों की मौतों की खबरें सामने आने के बाद राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने 6 जून 2020 को अपने एक स्पष्टीकरण में यह तो माना कि वर्ष 2012 से 2019 के बीच 8 साल में 750 बाघों की मौत का आंकड़ा तो सही है, लेकिन इसमें 60 फीसदी मौतों के मामले में शिकार कारण नहीं रहा है। इस अवधि में जो भी बाघ मरे, उनमें 369 बाघों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई थी, 42 दुर्घटना या शिकार हुए, 101 बाघों के अंग तस्करी के प्रयास के दौरान पकड़े गए। शेष 70 मामलों की जांच की जा रही है।

कारण चाहे जो भी बताए जाएं, लेकिन सूत्र बताते हैं कि मप्र के भोपाल, होशंगाबाद, पन्ना, सिवनी, मंडला, बैतूल और छिंदवाड़ा के जंगल शिकारियों के पनाहगाह बन गए हैं। वन विभाग के अधिकारी और दीगर जानकार बताते हैं कि बाघों की मौतों के पीछे दो प्रमुख वजहें हैं, एक तो इनका आबादी में जाना। दूसरा, अपनी बादशाहत के लिए क्षेत्राधिकार की लड़ाई। इसके अलावा शिकार भी मौतों की एक बड़ी वजह है, लेकिन वन अधिकारी इस तथ्य को ज्यादा नहीं मानते। वास्तविकता यह है कि देश के दूसरे राज्यों में टाइगर कॉरिडोर बड़े जंगलों में फैले हुए हैं, लेकिन मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं है, इसलिए शिकारी घात लगा लेते हैं। बताते हैं कि सीधी जिले में संजय गांधी, मंडला जिले में कान्हा किसली, सिवनी जिले में पेंच, पन्ना में पन्ना नेशनल पार्क और उमरिया जिले में बांधवगढ़ नेशनल पार्क, यह सभी छोटे-छोटे टुकड़ों और वनक्षेत्रों में बंटे हैं, उनको कॉरिडोर से जोड़ते हुए नए अभ्यारण्य बनाने की योजना है, ताकि बाघों के बीच अपने-अपने इलाकों को लेकर संघर्ष न हो। एक बाघ के लिए कम से कम 60 से 80 किलोमीटर के दायरे वाला क्षेत्र चाहिए, वो नहीं चाहता कि उसके रहते कोई दूसरा यहां आए, इसलिए संघर्ष में बाघों के मरने की खबरें आती हैं।

मौतों का बड़ा कारण सरकारी उदासीनता

मध्यप्रदेश में बाघों के संरक्षण के मकसद से 8 साल पहले स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स बनाने की योजना बनी थी, जिसके तहत हथियार बंद सुरक्षा दस्तों को ट्रेनिंग देकर जंगल में उतारा जाना था, लेकिन इतनी लंबी अवधि बीत जाने के बावजूद कुछ हुआ नहीं। पिछली कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में योजना की फाइलें कुछ आगे बढ़ी थीं, लेकिन इस साल मार्च के तीसरे हफ्ते में ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के कांग्रेस मंत्री-विधायकों ने कांग्रेस से बगावत कर भाजपा से गठजोड़ कर सरकार गिरा दी। शिवराज सिंह के नेतृत्व में नई सरकार बनी, तो कोरोना की महामारी ने जकड़ लिया। मौजूदा दौर में बाघों की आबादी के लिए सबसे बड़ा खतरा उनके प्राकृतिक निवास स्थान का नुकसान है। एक अनुमान के मुताबिक विश्वभर के बाघों ने अपने रहने के 93 फीसदी प्राकृतिक स्थान खो दिए हैं। मध्यप्रदेश में तो भोपाल के ही उदाहरण से उनके इलाके खोने का अनुमान लगाया जा सकता है। राज्य के वनविभाग के पास भोपाल का 1960 का एक नक्शा मौजूद है, जिसमें बताया गया है कि बाघों का कहां-कहां डेरा था। नक्शे के मुताबिक नए भोपाल का लगभग पूरा इलाका बाघों का था। पुराने भोपाल के जहांगीराबाद इलाके में पुलिस मुख्यालय के पास तक बाघों का आना-जाना और दिखना हुआ करता था। केरवा और कलियासोत क्षेत्र बाघों से भरा हुआ था।

- राकेश ग्रोवर

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^