बासमती चावल के जीआई टैग को लेकर पंजाब और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच खींचतान जारी है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी है। शिवराज सिंह ने सोनिया गांधी को लिखे अपने पत्र मे पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, राहुल गांधी, कमलनाथ समेत कांग्रेस पार्टी पर जमकर निशाना साधा है और पूछा है कि मध्यप्रदेश के किसान से कांग्रेस को क्या परेशानी है।
दुनियाभर में अपनी खुशबू और स्वाद के लिए मशहूर बासमती चावल इन दिनों अपनी भौगोलिक पहचान को लेकर कानूनी विवाद में उलझा हुआ है। लगभग 12 साल से चल रही यह लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गई है। यह मामला मध्यप्रदेश बनाम सात अन्य राज्यों से जुड़ा हुआ है। जुलाई के पहले सप्ताह में इसी मसले को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नई दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की। उन्होंने बासमती चावल को जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी जीआई टैग दिलाने में मदद करने की गुहार लगाई। शिवराज सरकार का दावा है कि मध्य प्रदेश के कई इलाकों में परंपरागत तरीके से बासमती धान की खेती होती है। इसी आधार पर चौहान ने अपने पिछले कार्यकाल में भौगोलिक संकेतक के लिए चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्री में प्रदेश का आवेदन कराया था। बरसों पुराने प्रमाणित दस्तावेज भी जुटाकर दिए थे। लेकिन, एपीडा (एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट एक्सपोर्ट डेवलमेंट अथॉरिटी) के विरोध के कारण मान्यता नहीं मिल सकी। एपीडा ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें प्रदेश के पक्ष को खारिज कर दिया गया था। इसके खिलाफ मध्यप्रदेश सरकार ने मई 2020 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। मप्र सरकार के मुताबिक, उनके यहां पैदा की जाने वाली बासमती चावल की गुणवत्ता हरियाणा, पंजाब या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उत्पादित चावल से बेहतर है। प्रदेश 59,238 मीट्रिक टन तक बासमती चावल एक्सपोर्ट करता रहा है, लेकिन कभी गुणवत्ता की शिकायत नहीं रही। जीआई टैग को लेकर ऐसे भी अवसर आए जब मप्र के पक्ष में फैसला आया लेकिन एपीडा की अपील और विरोध से मामला अटकता रहा।
मप्र के 13 जिलों में बासमती धान की खेती होती है, लेकिन जीआई टैग नहीं होने की वजह से इसे बासमती के तौर पर मान्यता नहीं है। प्रदेश के लगभग 4 लाख किसान इससे जुड़े हुए हैं। शिवराज सिंह चौहान का तर्क है कि किसानों के हित और चावल की गुणवत्ता को देखते हुए मध्यप्रदेश की बासमती को जीआई टैग दे दिया जाए। मध्यप्रदेश के जिन 13 जिलों में इसकी खेती होती है उनमें भिंड, मुरैना, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, श्योपुर, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर शामिल हैं। टैग न मिलने की वजह से यहां के बासमती धान को वह कीमत नहीं मिल पाती है जो मिलनी चाहिए। फिलहाल, चौहान के आग्रह पर कृषि मंत्री तोमर ने जीआई टैग के लिए मध्यप्रदेश को हर संभव सहायता देने का आश्वासन दिया है। एपीडा ही नहींं बल्कि जीआई रजिस्ट्री भी मध्यप्रदेश के दावे को खारिज करती रही है। रजिस्ट्री ने अपने आदेश में कहा था कि मध्यप्रदेश जीआई टैग के लिए आवश्यक पारंपरिक बासमती-उत्पादक क्षेत्र संबंधी 'लोकप्रिय धारणा की मौलिक आवश्यकता को पूरा नहीं करता। बासमती के लिए जीआई टैग गंगा के मैदानी क्षेत्र वाले खास हिस्से के लिए दिया गया है और मध्यप्रदेश इस क्षेत्र में नहीं आता। इसलिए उसे जीआई टैग नहीं दिया जा सकता।
दुनियाभर में बासमती की बहुत मांग है। ऐसे में जिस इलाके के बासमती को जीआई टैग मिला हुआ है वहां के चावल को असली माना जाता है। इससे उत्पाद का बाजार सुरक्षित हो जाता है। भारत में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के 77 जिलों को बासमती चावल की अलग-अलग किस्मों का जीआई टैग मिला हुआ है। भारत ने 2018-19 में 44,14,562 मीट्रिक टन बासमती चावल एक्सपोर्ट किया था, जिससे 32,804.19 करोड़ रुपए मिले थे। असली लड़ाई इसी एक्सपोर्ट की है। जिससे राज्य को पैसा मिलता है। भारत से ईरान, सऊदी अरब, इराक, यूएई, यमन, कुवैत, यूएसए, यूके, ओमान और कतर आदि में भारत से यह चावल एक्सपोर्ट होता है।
मध्यप्रदेश को टैग न देने के पीछे क्या है तर्क?
एपीडा का कहना है कि यदि मध्यप्रदेश को बासमती उत्पादक राज्य माना गया तो यह फैसला उत्तरी राज्यों में बासमती पैदा करने वाले अन्य किसानों को नुकसान पहुंचा सकता है। यदि मप्र भी बासमती उत्पादक राज्यों में शामिल हुआ तो न सिर्फ आपूर्ति बढ़ जाएगी बल्कि बासमती चावल की कीमतें भी गिर जाएंगी और गुणवत्ता पर असर पड़ेगा। बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड चेन्नई ने मध्यप्रदेश के दावे को पेंडिंग रखते हुए फरवरी 2016 में आदेश दिया था कि वर्तमान में जिन सात राज्यों को बासमती चावल उत्पादक माना गया है, उन्हें मिलने वाली सुविधाएं दी जाएं। जबकि, दिसंबर 2013 में भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्रार (चेन्नई) ने मप्र के पक्ष में निर्णय दिया था। तब मप्र सरकार ने 1908 व 1913 के ब्रिटिश गजेटियर पेश किए थे, जिसमें बताया था कि गंगा और यमुना के इलाकों के अलावा मध्यप्रदेश के भी कुछ जगहों में भी बासमती पैदा होता रहा है। एपीडा ने इसके खिलाफ आईपीएबी में अपील कर दी थी। तब एपीडा ने कहा था कि जम्मू एंड कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उप्र, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के अलावा कहीं भी बासमती चावल का उत्पादन नहीं होता।
- श्याम सिंह सिकरवार