सरकार का लक्ष्य है कि 2023 तक भोपाल और इंदौर में मेट्रो ट्रेन का संचालन शुरू करवा दे। लेकिन प्रदेश सरकार के बजट से स्पष्ट है कि राज्य सरकार अभी मेट्रो ट्रेन चलाना नहीं चाहती। बजट में भोपाल और इंदौर मेट्रो के लिए कुल 262 करोड़ की राशि रखी गई है। इसे दोनों शहरों में आधी-आधी भी बांटें तो एक के हिस्से में 131 करोड़ रुपए आते हैं। इतनी कम राशि से 2030 तक भी प्रोजेक्ट का पूरा होना मुश्किल लगता है। भोपाल मेट्रो के लिए 6 हजार 941 करोड़ रुपए खर्च होने हैं। इसमें से अब तक करीब 170 करोड़ रुपए एम्स से सुभाष नगर तक एलीवेटेड रूट बनाने में खर्च किए जा चुके हैं, जबकि यह राशि महज 6 किमी का रूट बनाने में खर्च हुई है। अब जो रूट बनाया जा रहा है, वह करीब 9 किमी से अधिक है। इसमें से दो किमी का रूट अंडरग्राउंड है। इसके चलते 300 करोड़ रुपए तो सिर्फ टेंडर में ही खर्च हो जाएंगे। इधर, मेट्रो के लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं हुआ है। डिपो और स्टेशनों के टेंडर किए जाने हैं। इस तरह बजट में मिली राशि मेट्रो को गति देने के लिए काफी कम है। इधर, मेट्रो से जुड़े अधिकारियों का मानना है कि सुभाष नगर फाटक के पास मेट्रो का डिपो बनाने के लिए 65 एकड़ जमीन आरक्षित है। वहीं मेट्रो के पहले रूट पर करीब 16 स्टेशन बनाए जाने हैं। इतना ही नहीं, मेट्रो का पर्पल रूट 12.99 किमी का है। भदभदा से रत्नागिरी तक बनाए जा रहे इस रूट का टेंडर भी जारी किया जाना है। इससे भी प्रोजेक्ट रुक-रुककर चलने की आशंका है।
इंदौर मेट्रो के पहले चरण का प्रोजेक्ट ही 31 किमी का है। उसमें भी पहला ट्रैक 5.29 किमी का है। पहले चरण की लागत है 7500.08 करोड़ रुपए। 2021-22 के बजट में यदि 131 करोड़ की राशि खर्च भी होती है तो यह पहले चरण की राशि का 10 प्रतिशत हिस्सा भी नहीं है। यानी पहले 5 किमी का काम 2023 तक पूरा हो पाएगा, इसमें संशय है। ऐसे में पहला चरण 2030 तक पूरा होना भी मुश्किल है।
इंदौर में 27 महीने में 5.29 किमी ट्रैक तैयार होने का लक्ष्य रखा था, लेकिन 26 माह गुजरने के बाद पिलर खड़े किए जाने का काम शुरू हुआ है। मेट्रो ट्रेन के कुल 31.55 किमी के रूट में से नवंबर 2018 में 5.29 किमी रूट का टेंडर और वर्कऑर्डर हुआ था, लेकिन ठेकेदार कंपनी दिलीप बिल्डकॉन और जनरल कंसल्टेंट के विवाद और अधिकारियों की सुस्ती के कारण प्रोजेक्ट में देरी हुई। इंदौर मेट्रो ट्रेन प्रोजेक्ट को 4 साल हो गए हैं, लेकिन इसका काम 1 फीसदी भी नहीं हुआ। इसे बेपटरी करने के लिए जिम्मेदार हटाए गए टेक्निकल डायरेक्टर जितेंद्र दुबे की गलतियों के कारण प्रोजेक्ट अटक गया। सबसे पहले जनवरी 2018 में इंदौर मेट्रो के लिए जियो टेक्निकल सर्वे शुरू हुआ, इसे तकनीकी गड़बड़ी बताकर बीच में ही रोक दिया गया। इससे प्रोजेक्ट के अंडर ग्राउंड काम की रूपरेखा ही नहीं बन सकी। फिर इंदौर मेट्रो के लिए सिस्मिक जोन-2 से बढ़ाकर 3 किया और फिर जानबूझकर जोन 4 के हिसाब की प्लानिंग करवाई। एमपीएमआरसीएल का एक भी अफसर पदस्थ नहीं किया गया, जिससे जनरल कंसल्टेंट निरंकुश हो गए। उसके बाद दिलीप बिल्डकॉन द्वारा दी गई 127 ड्राइंग डिजाइन जीसी ने रोकी। इसमें टेक्निकल डायरेक्टर का जिम्मा था उसका समाधान करें। लॉकडाउन में पूरे देश में काम चला, इंदौर मेट्रो का काम कलेक्टर की अनुमति के बाद भी शुरू नहीं हुआ। फिर 29 स्टेशन में किसी की भी ड्राइंग या डिजाइन फाइनल नहीं हो सकी। मेट्रो के कोच का न अभी तक ऑर्डर दिया गया और न उनकी डिजाइन फाइनल हो सकी। इस कारण से चार साल में एक फीसदी भी काम नहीं हो पाया।
इंदौर शहर में मेट्रो प्रोजेक्ट का काम जैसे-तैसे दिसंबर-2020 के अंत में शुरू हुआ था, जो अब फिर बंद हो गया है। एमआर-10 ब्रिज के पास जिन दो पिलरों के निर्माण का काम पिछले साल शुरू हुआ था, वह दो महीने से ठप पड़ा है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतने महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट को लेकर न तो सरकार गंभीर है, न ठेकेदार कंपनी और न ही कंसल्टेंट फर्म। पहले सरकार के अफसरों ने सपने दिखाए थे कि इंदौर में 2023 तक मेट्रो ट्रेन चलना शुरू हो जाएगी, लेकिन मौजूदा स्थिति देखकर तो 2025 तक भी काम पूरा होता हुआ नहीं दिखता। इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट का भूमिपूजन 14 सितंबर 2019 को तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किया था। प्रोजेक्ट की कुल लंबाई 31.50 किमी है, जिसके निर्माण पर 7500 करोड़ रुपए से ज्यादा के खर्च का अनुमान है। शहर का पहला मेट्रो कॉरिडोर एयरपोर्ट से सुपर कॉरिडोर, एमआर-10, रिंग रोड, कनाड़िया रोड, एमजी रोड, राजवाड़ा, बड़ा गणपति होते हुए फिर एयरपोर्ट पर मिलेगा। यह कॉरिडोर रिंग के रूप में रहेगा। काम की शुरुआत एमआर-10 से मुमताजबाग के बीच लगभग 5.27 किमी लंबे हिस्से में होना थी, लेकिन अब तक वहां पिलर भी नहीं बन पाए हैं। प्रदेश सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए 262 करोड़ रुपए दिए हैं, जबकि इंदौर के पहले कॉरिडोर के पहले हिस्से की लागत ही 237 करोड़ रुपए है। प्रदेश सरकार द्वारा आवंटित राशि में भोपाल का भी हिस्सा शामिल है। ऐसे में काम कैसे होगा, कहना मुश्किल है।
अब तक मेट्रो प्रोजेक्ट के अंतर्गत इंदौर में बेरिकेडिंग लगाने-हटाने के अलावा ज्यादा काम नहीं हुआ है। कुछ जगह डिवाइडर और उनमें लगे पेड़-पौधे जरूर हटाए गए हैं, लेकिन पिलर निर्माण ही बंद है। नगर निगम ने मेट्रो कॉरिडोर में बाधक रोटरियों और प्रतिमाओं की शिफ्टिंग भी अब तक नहीं की है। ठेकेदार कंपनी, कंसल्टेंट और सरकार के बीच समन्वय नहीं होने से यह स्थिति बनी है। पिछले महीने बिजली ट्रांसमिशन ने एमआर-10 से गुजर रही हाईटेंशन को शिफ्ट करने से पहले वैकल्पिक लाइन बिछाने का काम शुरू किया था, लेकिन इसकी गति भी बेहद धीमी है।
उम्मीद... लोन की पहली किश्त की
मेट्रो बोर्ड का गठन पिछले साल दिसंबर में हो पाया है। इसमें केंद्र सरकार के अधिकारी भी शामिल हैं। केंद्र सरकार बोर्ड के गठन के बाद ही राशि देती है। आमतौर पर राज्य सरकार जितना प्रावधान करती है, लगभग उतना ही अनुदान केंद्र का होता है। इस हिसाब से 250 करोड़ रुपए तक केंद्र से मिल सकते हैं। साथ ही लोन की पहली किश्त भी मिल सकती है। यूरोपियन इंवेस्टमेंट बैंक हर निर्माण के हिसाब से सरकार के अनुदान के आधार पर लोन देगा।
- विकास दुबे