'बुदेलखंड की भागीरथी'
17-Mar-2021 12:00 AM 765

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में जब बुंदेलखंड की बेटी बबीता और उनके साथ की महिलाओं की तारीफ की तो पूरे देश ने उन्हें बुंदेलखंड की भागीरथी का नाम दे दिया। मप्र के छतरपुर जिले के छोटे से गांव अगरौठा में रहने वाली बबीता राजपूत और दूसरी स्थानीय महिलाएं अचानक एक बार फिर चर्चा में आ गई हंै। दूर-दूर से लोग उन्हें बधाइयां देने पहुंच रहे हैं। उनका जगह-जगह सम्मान हो रहा है। दरअसल जल संरक्षण के लिए काम करने वाली बबीता ने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर 107 फीट की बड़ी नहर बना दी वो भी पहाड़ काटकर। आज बबीता और उनके साथियों के चेहरे पर अलग मुस्कान है। वो बात करते हुए अपनी खुशी छुपा नहीं पा रही हैं। 19 साल की बबीता राजपूत खिलखिलाते हुए कहती हैं, 'प्रधानमंत्री ने उनके काम को सराहा, उनकी तारीफ की, ये हमारे लिए गर्व की बात है।Ó बबीता का कहना है कि जो लोग कल तक उनके इस काम का विरोध कर रहे थे वही आज बधाई देने आ रहे हैं।

बबीता बतातीं हैं, 'हमारे गांव में पानी की इतनी किल्लत है कि लड़कियां जब 5-6 साल की होती हैं, तब से वो छोटे-छोटे बर्तन उठाकर पानी भरने में लग जाती हैं। मैंने खुद भी 8 साल की उम्र से पानी भरना शुरू कर दिया था।Ó लेकिन आज बहुत हद तक पानी की समस्या में कमी आई है, गांव में जो हैंडपंप में उसका वाटर लेवल भी कम हुआ है। हालांकि आने वाली गर्मी में गांव को जल संकट का सामना करना पड़ेगा क्योंकि पूरा बुंदेलखंड इलाका ही कम बारिश की वजह से पानी के लिए जूझता है।

बबीता और उनके गांव की महिलाओं ने अपनी मेहनत के दम पर पहाड़ को पस्त कर दिया। बबीता बताती है, ये सब कुछ इतना आसान भी नहीं था। अगरौठा गांव और आसपास के इलाके का ज्यादातर हिस्सा पठारी क्षेत्र है। यहां लगभग 100 फीट की गहराई पर पानी मिलता है। परमार्थ समाज सेवी संस्था से जुड़े मानवेंद्र बबीता राजपूत और जल सहेलियों की तारीफ मन की बात में होने से बहुत खुश हैं। वो कहते हैं कि ये काम काफी मुश्किल था, बुंदेलखंड पैकेज के तहत इस गांव में 40 एकड़ का एक तालाब बनाया गया था, जो जंगल क्षेत्र से जुड़ा हुआ था। लेकिन इस तालाब में पानी आने का कोई रास्ता नहीं था। जबकि जंगल क्षेत्र के एक बड़े भूभाग का पानी बछेड़ी नदी से होकर निकल जाता था। अब सवाल ये था कि जंगल का पानी किसी तरह इस तालाब तक आ जाए। लेकिन ये इतना आसान नहीं था। काफी समय तक विचार विमर्श के बाद ये तय किया गया कि फिलहाल ऐसा किया जाए कि अभी जितना पानी पहाड़ पर आता है, उसे ही कम से कम तालाब तक लेकर आया जाए और फिर लोगों ने खुद अपने स्तर पर तालाब तक पानी लाने का जिम्मा उठाया और ये कर दिखाया।

आज बबीता और उसके साथ की जल सहेलियों की चर्चा पूरे देश और इलाके में हो रही है। लेकिन इसके पहले इन्होंने 6 महीने के पहले जो संघर्ष किया उसका अंदाजा किसी को नहीं होगा। क्योंकि दुनिया सिर्फ कामयाबी का मेहराब पहने हुए इमारत को देखती है, लेकिन जिस नींव पर इमारत टिकी होती है उसका बोझ कोई नहीं देखता है। बबीता और उनके साथ की महिलाओं ने बहुत संघर्ष किया, हाड़-तोड़ मेहनत की। घरों में झगड़े किए, पतियों के ताने सुने, बच्चों को धूप में अपने साथ रखा। नाजुक कही जाने वाली कलाइयों ने गेतियां चलाईं, तसले उठाए और काट दिया पहाड़। लेकिन काम इतना आसान नहीं जितना नजर आता है, ये एक दिन की मेहनत भी नहीं है। ये लगातार चलते रहने वाली प्रक्रिया है। ये सामाजिक चेतना की मिसाल है। ये चेतना, ये चमक एक दिन में नहीं आती है। औरतों को एकजुट करने का काम परमार्थ समाज सेवी संस्था ने किया। ये संस्था जल जन जोड़ो अभियान के तरह परमार्थ संस्था बुंदेलखंड के गांवों में जल स्त्रोतों को जिंदा करने का काम कर रही है। इसमें स्थानीय महिलाओं को शामिल किया जाता है। संस्था गांव में 20 या 25 महिलाओं की एक पानी पंचायत बनाती है, जिसमें अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष होते हैं। पानी पंचायत की सदस्य महिलाएं फिर गांव की बाकी महिलाओं को पानी के लिए जागरूक करती हैं, उन्हें समझाती हैं। फिर बनाई जाती हैं जल सहेलियां। इन्हीं जल सहेलियों ने पहाड़ काटा और पास के तालाब को एक तरह से जिंदा किया है। इसके पहले गांव में छोटे-छोटे चैक डेम, स्टाप डेम बनाए गए। धीरे-धीरे करके गांव का वाटर लेवल बढ़ गया।

जल संकट के जूझ रहे बुंदेलखड के लिए इस तरह की जन जागरूकता चेतना बहुत जरूरी है और फिर बात जीवनदायिनी की हो तो ये पूरी दुनिया के लिए जरूरी हो जाता है कि हम पानी को बर्बाद ही ना करें बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए पानी का इंतजाम करते हुए जाएं। क्योंकि जल नहीं तो कुछ नहीं हैं। फिलहाल हमारी तरफ से भी बबीता राजपूत और उनकी जल सहेलियों को बहुत-बहुत मुबारकबाद।

जिला प्रशासन करेगा मदद

छतरपुर कलेक्टर शीलेंद्र सिंह ने बबीता राजपूत को बधाई दी है। साथ ही उन्होंने कहा कि ये हमारे जिले ही नहीं बल्कि पूरे बुंदेलखंड के लिए गौरव की बात है। शीलेंद्र सिंह खुद जल संरक्षण के लिए कई कार्यक्रम चला रहे हैं। वो कहते हैं कि छतरपुर समेत पूरा बुंदेलखंड जल संकट से जूझ रहा है। अगरौठा गांव की महिलाओं ने जो काम किया वो सराहनीय है। बबीता जिले के लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी रोल मॉडल हैं। आने वाले गर्मियों के सीजन में इलाके को पानी के लिए परेशान ना होना पड़े इसके लिए कलेक्टर खुद जिम्मेदारी संभाले हुए हैं। वो कहते हैं कि हम सूखे पड़े जल स्त्रोतों को जिंदा करने की कोशिश में हैं। ताकि महिलाओं को पानी के लिए मीलों का सफर ना तय करना पड़े। जिला प्रशासन जल संरक्षण के लिए खास योजना पर काम कर रहा है साथ ही लोगों को भी जल संरक्षण के लिए जागरूक होना पड़ेगा।

- सिद्धार्थ पांडे

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