मप्र में इन दिनों शहरों, नदी, नालों, सड़क, चौराहों का नाम बदलने की जैसे होड़ लगी हुई है। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि ऐतिहासिक गलतियों को सुधारा जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने होशंगाबाद का नाम बदलकर नर्मदापुरम रखने का ऐलान किया है, तो उमा भारती चाहती हैं कि हलाली नदी का नाम बदला जाए। होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम करने की दिशा में मप्र सरकार अब एक कदम और आगे बढ़ गई। गत दिनों मप्र विधानसभा में इस संबंध में अशासकीय संकल्प पेश किया गया। जिसे सर्वसम्मति से मंजूरी मिल गई। सरकार के इस प्रस्ताव को विपक्ष का भी साथ मिल गया। विधानसभा में मंजूरी के बाद अब ये प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाएगा। केंद्र से मंजूरी के बाद होशंगाबाद का नाम बदलकर नर्मदापुरम कर दिया जाएगा। इसी के साथ मप्र में अब नाम बदलने की राजनीति की औपचारिक शुरुआत हो गई।
मप्र में इन दिनों नाम बदलने की राजनीति चल रही है। घोषणाओं और मांग की शुरुआत तो गुरुपर्व के दिन से शुरू हो गई थी। अब इसकी औपचारिक और वैधानिक शुरुआत गत दिनों हो गई। सदन की मंजूरी के बाद सरकार केंद्र को प्रस्ताव भेजकर इस बात की मांग करेगी कि होशंगाबाद का नाम बदलकर नर्मदापुरम किया जाए। यह सच है कि विदेशी आक्रांताओं ने हमारे देश के अनेक शहरों के नाम बदलकर इतिहास के साथ छेड़खानी की। इसके साथ उन्होंने यहां की संस्कृति और परंपराओं को भी प्रभावित करने की पुरजोर कोशिश की। यह अलग बात है कि भारतीय समाज की जीवटता के कारण हमारी संस्कृति का अस्तित्व बचा रहा। कभी मुगलों ने तो कभी अंग्रेजों ने हमारे अस्तित्व को नए रंग में रंगने का प्रयास किया। इन थोपे गए नामों को बदलकर शहरों को उनकी पुरानी पहचान दिलाने का काम अब मप्र में भी शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समय की मांग और सियासी जरूरत को समझ चुके हैं। अब वह नाम बदलने को लेकर ताबड़तोड़ फैसले ले रहे हैं।
हाल में मुख्यमंत्री ने नर्मदा किनारे बसे होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम करने की घोषणा की थी। इसके दो दिन बाद ही जब वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में पहुंचे तो सभा में मौजूद जनसमुदाय की मांग पर तुरंत नसरुल्लागंज का नाम बदलकर भेरुंदा करने की घोषणा कर दी। इन शहरों के नाम की कहानी भी दिलचस्प है। सबसे पहले बात होशंगाबाद की। नर्मदा किनारे बसे इस शहर का नाम पहले नर्मदापुर था। इतिहासकारों के मुताबिक मांडू का सुल्तान हुशंगशाह यहां आया था। तब उसने नर्मदापुर का नाम बदलकर होशंगाबाद रख दिया था। परमारकालीन ताम्रपत्र में भी होशंगाबाद का नाम नर्मदापुर होने का उल्लेख मिलता है। 2009 में शिवराज सरकार ने जब होशंगाबाद को संभाग का दर्जा दिया तो स्थानीय लोगों की मांग पर संभाग का नाम नर्मदापुरम रख दिया, लेकिन शहर का नाम होशंगाबाद ही रहने से इसे ज्यादा पहचान नहीं मिली।
अब थोड़ी चर्चा नसरुल्लागंज की करते हैं। इस छोटे से शहर का इतिहास भी कम दिलचस्प नहीं है। इसका नाम भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्ला खान के बड़े भाई के नाम पर रखा गया था। इतिहासकार असर किदवई के मुताबिक भोपाल की नवाब सुल्तान जहां बेगम ने अपने सबसे बड़े बेटे नसरुल्ला खान को भोपाल रियासत में ही भेरुंदा नाम की जागीर दी थी। बाद में उन्हीं के नाम पर भेरुंदा का नाम नसरुल्लागंज कर दिया गया। कहा जाता है कि नसरुल्लागंज में जिस समाज का बाहुल्य था, उनके आराध्य भेरु भगवान थे, इसलिए नगर का नाम भेरुंदा रखा गया था। वैसे मप्र में कई अन्य शहरों के भी नाम बदलने को लेकर काफी दिनों से मांग की जा रही है। पहली मांग तो मप्र की राजधानी भोपाल की ही है। राजा भोज की नगरी का नाम भोजपाल किए जाने को लेकर कई दशकों से मांग उठ रही है।
इतिहासकार भी इससे सहमत हैं कि भोपाल का नाम भोजपाल होना चाहिए। भोपाल से राजा भोज का नाम जोड़ने के लिए ही शिवराज ने कई वर्ष पहले भोजताल में राजा भोज की आदमकद प्रतिमा लगाई। गौरतलब है कि भोपाल में परमारवंशी राजाओं का शासन रहा है, जिन्होंने राजधानी के समीप भोजपुर मंदिर का भी निर्माण कराया था। इसके अलावा उज्जैन का नाम उज्जयनी करने की मांग भी की जा चुकी है। संस्कारधानी जबलपुर को भी महाकौशल के लोग जबालीपुरम का नामकरण चाहते हैं। नर्मदा तट पर बसे इस शहर का नाम जबाली नामक एक ऋषि के नाम पर पड़ा था। बाद में यह जबलपुर में तब्दील हो गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भोपाल के पास स्थित हलाली डैम का नाम बदलने की मांग भी पिछले दिनों की थी। वहीं विधानसभा के सामयिक अध्यक्ष रहे रामेश्वर शर्मा ने भोपाल में ईदगाह हिल्स का नाम गुरुनानक टेकरी करने को लेकर लंबा अभियान चलाया। इसी तरह ओबेदुल्लागंज, बेगमगंज, गैरतगंज, शाहगंज, सुल्तानपुर, इस्लामपुरा सहित कई नाम ऐसे हैं जिन्हें बदलने की मांग भी उठ रही।
अहिल्या बाई महान या मंत्रीजी के दादाजी?
भाजपा के तमाम छोटे-बड़े नेता अपने-अपने इलाकों के नाम बदलकर नए नाम रखने की मुहिम में जुटे हुए हैं। इस मुहिम के बीच भाजपा के राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक और दलबदल कर शिवराज सरकार में मंत्री बने महेंद्र सिंह सिसौदिया ने गुना में तो देवी अहिल्या बाई होलकर के नाम से बने एक चौराहे का ही नाम बदलकर अपने दादाजी स्व. सागर सिंह सिसौदिया के नाम पर रखवा लिया। चौराहे के लिए जमीन दान करने वालों और स्थानीय लोगों ने जब बवाल काटा, तो चौराहे पर बदले हुए नाम का शिलालेख का फीता काटने अपने समर्थक मंत्री के साथ पहुंचे। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोगों को धमकाते हुए चेतावनी भी दे डाली कि शुभ कार्य में उठापटक ठीक नहीं। मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा। अब ये चौराहा ही नहीं, बल्कि न्यू टेकरी सड़क भी मंत्रीजी के दादाजी के नाम से जानी जाएगी। सिंधिया ने न सिर्फ जमीन के दानकर्ताओं को फटकार लगाई, बल्कि गुना नगर पालिका परिषद से कहा कि यहां मंत्रीजी के दादाजी की प्रतिमा और उनकी इतिहास पट्टिका भी लगाई जाए।
- प्रवीण कुमार