कहां गई संवेदना
20-Nov-2020 12:00 AM 331

 

विश्व में अब तक कई महामारियां आई हैं, लेकिन कोविड-19 पहली ऐसी महामारी है, जिसके डर से लोगों की सद्भावना और संवेदना भी मर गई। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोग अपने स्वजनों की अस्थ्यिों का विसर्जन करने से भी कतरा रहे हैं।

तीन साल पहले सीरिया के समुद्र तट पर निर्जीव पड़े तीन साल के ऐलान कुर्दी के शव की तस्वीर ने सारी दुनिया की सामूहिक संवेदना को झकझोरकर रख दिया था। ब्रिटेन और कई यूरोपीय देशों ने उस तस्वीर के प्रकाशित होने के बाद अपने देशों की सीमा शरणार्थियों के लिए खोलने का फैसला किया। वैसी कितनी ही तस्वीरें कोरोना संकट की महामारी के इस दौर में भारत में बन रही हैं पर क्या किसी की संवेदना के तार झंकृत हो रहे हैं? असल में वह महामारी का दौर नहीं था तो दुनिया विचलित हुई पर अब कोई विचलित नहीं हो रहा है क्योंकि सब अपनी चिंता में हैं।

इसका असर यह देखने को मिला कि कोविड-19 से पीड़ित व्यक्ति को घर परिवार और समाज में अछूत माना जाने लगा। हैरानी की बात यह है कि संक्रमित की मौत के बाद भी उसकी अस्थियों के साथ भी संवेदना नहीं दिखाई जा रही है। देशभर के विश्रामघाटों पर कोरोना से मरे लोगों की अस्थियां विसर्जन का इंतजार कर रही हैं। मप्र की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में पिछले 7 महीने से अंतिम संस्कार के बाद पवित्र नदियों में विसर्जन का इंतजार कर रहीं अस्थियों को नर्मदा नदी में विधानपूर्वक विसर्जित किया गया। गत दिनों रामबाग मुक्तिधाम से एक क्विंटल से ज्यादा अस्थियों को लेकर समिति सदस्य नर्मदा किनारे पहुंचे। यहां पंडित ने मंत्रोच्चार के साथ मृतकों की आत्माओं की शांति की प्रार्थना के साथ अस्थियों को विसर्जित करवाया। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि अस्थियों का विसर्जन बिना अंतिम संस्कार अधूरा होता है।

कोरोना के कारण 24 मार्च से इंदौर पूरी तरह से लॉक हो गया था। इसके बाद से लंबे समय तक लोग घरों में बंद रहे। कोरोना के कारण लगातार मौतें होती रहीं। इस दौरान कुछ लावारिस लाशें भी आईं और कुछ सामान्य मौतें भी हुईं। इस दौरान संक्रमण नहीं फैले, इस कारण कोरोना संक्रमित शव का निगम-प्रशासन द्वारा ही अंतिम संस्कार करवाया गया। ऐसे में यहां अस्थियां लेने भी कई लोग नहीं पहुंच पाए। ये अस्थियां लंबे समय से मुक्तिधाम के लॉकर में रखी थीं।

रामबाग मुक्तिधाम पर ही मार्च से लेकर अक्टूबर महीने तक 1 क्विंटल से ज्यादा अस्थियां एकत्रित हो गईं, जिन्हें पवित्र नदियों में प्रवाहित करने का काम रामबाग मुक्तिधाम एवं दशा पिंड विकास समित ने किया। सभी अस्थियों को लॉकर से निकालकर बोरी में भरा गया। नर्मदा नदी में विसर्जन के पहले मुक्तिधाम में ही सभी अस्थियों का विधिपूर्वक पूजन किया गया। सभी प्रक्रिया को समिति सदस्यों ने ही संपन्न करवाया।

रामबाग मुक्तिधाम विकास समिति अध्यक्ष सुधीर दांडेकर ने बताया कि मुक्तिधाम में कोरोनाकाल में लगे लॉकडाउन के बाद से ही अंतिम संस्कार के बाद यहां रखी अस्थियों का विसर्जन नहीं हो पाया था। इसमें वे लोग भी थे, जिन्हें या तो कोरोना से डर था या परिवार ही क्वारैंटाइन था। कुछ लोग तो प्रतीकात्मक रूप से दो-चार अस्थियां लेकर चले गए। उन्होंने अस्थियों के विसर्जन के लिए निवेदन किया था। इतने समय में एक क्विंटल से ज्यादा अस्थियां एकत्रित हो गई थीं, जिन्हें विधि-विधान से पूजन के बाद नर्मदा नदी में प्रवाहित किया गया।

गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण की भयावहता बढ़ी तो मरीजों के साथ-साथ अफसरों की संवेदनाएं भी मरने लगी हैं। कोरोना संक्रमण से हुई मौत के बाद आम आदमी हो या नामी सबके शव के साथ ऐसे व्यवहार किए गए, जिसे देखकर लोग कांप उठते थे। कहीं श्मशान घाट में शव को घसीटा जाता था तो कहीं अधजली हालत में शव पड़ा दिखता। इसकी वजह यह है कि महामारी सबसे पहले इंसान की संवेदना पर चोट करती है। अपने जीवन और वर्तमान के संकटों की चिंता में इंसान प्यार, दोस्ती, इंसानियत जैसी बातें भूल जाता है। अल्बैर कामू ने अपनी महान रचना 'प्लेग’ में लिखा है- हकीकत यह है कि महामारी से कम सनसनीखेज और नीरस घटना कोई नहीं हो सकती। बड़ी मुसीबतें ज्यादा देर तक रहती हैं तो नीरस बन जाती हैं। कोरोना महामारी में भी ऐसा ही हो रहा है। महामारी जितनी फैल रही है और इससे मरने वालों की संख्या जितनी ज्यादा बढ़ रही है, सनसनी उतनी कम होती जा रही है। लोग आंकड़ों के प्रति उदासीन होने लगे हैं। मरने वालों का आंकड़ा जितना बड़ा हो रहा है वह उतना ही छोटा नजर आने लगा है। अखबार ऐसी खबरों से भरे हैं कि भारत में दिल का दौरा पड़ने से हर महीने कितने लोग मरते हैं या सांस की गंभीर बीमारी से कितने लोग मरते हैं, सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं में कितने लोग मर जाते हैं और उसके मुकाबले कोरोना महामारी से मरे लोगों की संख्या कितनी मामूली है।

प्रियजनों का शव लेने से इंकार कर चुके हैं लोग

जब महामारी शुरू हुई तो संख्या को लेकर ऐसी उदासीनता नहीं थी और न कोरोना की खबर सनसनी से परे थी। पर अब इसकी सनसनी खत्म हो गई है, बढ़ती हुई संख्या छोटी लगने लगी है और लाखों लोगों का पलायन समस्या का समाधान दिखने लगा है। याद करें, जब कोरोना वायरस की महामारी शुरू हुई थी तब किसी कोरोना संक्रमित की मौत और उसके अंतिम संस्कार को लेकर कैसी दारूण कथाएं सुनने को मिली थीं। लोग इस बात से दुखी हो रहे थे कि उन्हें अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार भी ठीक से करने को नहीं मिल रहा है। पर क्या अब कहीं से ऐसी खबर आ रही है? अब तो खुद लोग अपने प्रियजनों का शव लेने से इंकार कर रहे हैं या अंतिम संस्कार में शामिल होने से मना कर रहे हैं और वीडियो रिकार्डिंग से अंतिम संस्कार देख कर संतोष कर रहे हैं।

- लोकेन्द्र शर्मा

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