जनता चुनेगी महापौर
02-Jul-2020 12:00 AM 459

 

प्र देश में नगर निगम के महापौर, नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष अब सीधे मतदाता चुनेंगे। शिवराज सरकार ने कमलनाथ सरकार के महापौर और अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने के फैसले का पलटने के लिए विधानसभा के मानसून सत्र में संशोधन विधेयक लाने का फैसला किया है। इसके साथ ही चुनाव से 6 माह पहले तक ही वार्डों का परिसीमन हो सकेगा। गत दिनों मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की अध्यक्षता में हुई वरिष्ठ सचिव समिति की बैठक में जुलाई में संशोधन विधेयक लाने की अनुमति नगरीय विकास एवं आवास विभाग को दी। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस शासनकाल में नगरीय निकाय चुनाव व्यवस्था में जो बदलाव किया था, उसे फिर पुराने स्वरूप में लाने का निर्णय किया है। कमलनाथ सरकार ने नगर पालिका अधिनियम में जनवरी 2020 में संशोधन कर महापौर और अध्यक्ष का चुनाव जनता की जगह पार्षदों के माध्यम से कराने की व्यवस्था लागू की थी। इसके लिए अधिनियम में संशोधन के साथ मध्यप्रदेश नगर पालिका अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के निर्वाचन नियम में भी बदलाव किया गया।

साथ ही चुनाव से दो माह पहले तक वार्ड परिसीमन करने और कलेक्टर को चुनाव के बाद पहला सम्मेलन बुलाने का अधिकार दिया था। भाजपा ने कमलनाथ सरकार के इस फैसले का हर स्तर पर विरोध किया था, लेकिन सरकार ने अध्यादेश के जरिए व्यवस्था में बदलाव किया और फिर विधानसभा में नगर पालिका अधिनियम में संशोधन विधेयक पारित कराकर 27 जनवरी 2020 को इसे लागू कर दिया था। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई वरिष्ठ सचिव समिति ने पुरानी व्यवस्था फिर लागू करने के लिए अधिनियम में संशोधन के लिए विधानसभा में विधेयक प्रस्तुत करने की अनुमति नगरीय विकास एवं आवास विभाग को दे दी है। अब विभाग संशोधन विधेयक का प्रस्ताव कैबिनेट में रखेगा और मंजूरी मिलने के बाद इसे विधानसभा में प्रस्तुत किया जाएगा। प्रस्तावित नई व्यवस्था के तहत चुनाव से 6 माह पहले निकाय व वार्ड की सीमा का परिसीमन रुक जाएगा। इसके बाद न तो नए निकाय का गठन होगा और न ही वार्ड की संख्या बढ़ेगी। कमलनाथ सरकार ने इस अवधि को घटाकर दो माह कर दिया था।

वहीं, चुनाव के बाद पहला सम्मेलन राज्य निर्वाचन आयोग ही बुलाएगा। इससे ही निकाय के पांच वर्षीय कार्यालय की गणना होगी। महापौर और अध्यक्ष का चुनाव पार्षदों के माध्यम से कराने के अध्यादेश को मंजूरी काफी ऊहापोह के बाद मिली थी। राज्यपाल लालजी टंडन ने पार्षदों द्वारा शपथ-पत्र में गलत जानकारी देने पर जुर्माना और सजा संबंधी अध्यादेश को तो मंजूरी दे दी थी, लेकिन चुनाव प्रणाली में बदलाव का अध्यादेश रोक लिया था। भाजपा इस अध्यादेश को मंजूरी न दिए जाने के लिए लगातार ज्ञापन दे रही थी। मामला लंबा खिंचता देख तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उनसे मुलाकात की थी, जिसके बाद उन्होंने इस अध्यादेश को अनुमति दी थी। चुनाव प्रक्रिया में बदलाव होने से अब फिर दो बैलेट यूनिट मतदान केंद्रों में लगेगी। एक बैलेट यूनिट में पार्षद और दूसरे में महापौर के लिए मतदान होगा। कंट्रोल यूनिट एक ही रहेगी। वहीं जनता को एक बार फिर नगर निगमों के महापौरों और नगर पालिका व नगर परिषद के अध्यक्षों को वापस बुलाने का अधिकार मिलेगा। तीन चौथाई पार्षदों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाने और उसे विधिसम्मत पाए जाने पर राज्य निर्वाचन आयोग खाली कुर्सी, भरी कुर्सी का चुनाव कराएगा। इसमें खाली कुर्सी के पक्ष में अधिक मतदान होता है तो फिर महापौर या अध्यक्ष को कुर्सी छोड़नी पड़ेगी।

पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार ने नगर पालिका अधिनियम में संशोधन कर इस प्रावधान को समाप्त कर दिया था। शिवराज सरकार ने फिर से इसमें संशोधन कर व्यवस्था को लागू करने की मंजूरी दे दी है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने प्रदेश के नगर निगम के महापौर और नगर पालिका तथा नगर परिषद के अध्यक्ष का चुनाव पार्षदों के माध्यम से कराने की व्यवस्था लागू की थी। इसके साथ ही जनता को मिला वह अधिकार भी छिन गया था, जिसमें उसे महापौर और अध्यक्ष को वापस बुलाने का अधिकार मिला था। हालांकि इससे पहले दिग्विजय सरकार ने नगर निगम अधिनियम-1956 में बदलाव कर राइट-टू-रिकॉल के माध्यम से पार्षदों को यह अधिकार दिया था कि वे आर्थिक अनियमितता सहित अन्य आरोपों के चलते महापौर या अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास ला सकते हैं। कमलनाथ सरकार ने यह व्यवस्था लागू कर दी थी कि पार्षदों को महापौर या अध्यक्ष के प्रति अविश्वास हो तो वे अपने में से ही किसी दूसरे व्यक्ति को चुन सकते हैं। विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने कमलनाथ सरकार की इस व्यवस्था का विरोध किया था। कलेक्टर यदि तीन चौथाई पार्षदों के माध्यम से प्राप्त प्रस्ताव को परीक्षण में विधिसम्मत पाता है तो शासन को महापौर या अध्यक्ष को वापस बुलाने के लिए चुनाव कराने की सिफारिश कर सकता है। शासन के प्रस्ताव पर राज्य निर्वाचन आयोग खाली कुर्सी, भरी कुर्सी का चुनाव कराता है। यदि खाली कुर्सी के पक्ष में जनता मतदान करती है तो संबंधित को पद छोड़ना पड़ता है। महापौर या अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव उनके कार्यरत रहने के दो साल बाद और 6 माह शेष रहने से पहले लाया जा सकता है।

अधिनियम में संशोधन की मंजूरी

सत्ता परिवर्तन के बाद शिवराज सरकार ने पिछली सरकार के जिन फैसलों की समीक्षा कर परिवर्तन करने का सैद्धांतिक निर्णय लिया था, उसे अब नगरीय विकास एवं आवास विभाग अमलीजामा पहना रहा है। इसके लिए पिछले दिनों मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस की अध्यक्षता में हुई वरिष्ठ सचिव समिति की बैठक में अधिनियम में संशोधन के लिए विधेयक लाने की मंजूरी दी गई है। इसके मुताबिक नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने संशोधित विधेयक का प्रारूप तैयार कर लिया है।

- लोकेश शर्मा

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