निर्माण कार्यों में लगे मजदूर, रेहड़ी-पटरी, खोमचे और रिक्शा चलाने वाले श्रमिकों का एक बड़ा
वर्ग है जो रोज कमाता है और रोज परिवार का पेट भरता है, लेकिन कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन के बाद ऐसे लाखों दिहाड़ी मजदूरों के समक्ष रोजीरोटी का संकट खड़ा हो गया है।
कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरी दुनिया त्राहि-त्राहि कर रही है। देश में भी कोहराम मचा हुआ है। उद्योग धंधे बंद हो गए हैं। इस कारण बड़ी संख्या में मजदूर शहरों से गांवों में पहुंच गए हैं। लेकिन इन मजदूरों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। एक तरफ प्रदेश सरकार कोरोना वायरस से निपटने के लिए कारगर कदम उठा रही है, वहीं दूसरी तरफ शहरों में सोशल डिस्टेंस मेंटेन करने पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए बकायदा अफसरों की टीम बनाकर मॉनीटरिंग की जा रही है। लेकिन गांवों की ओर किसी का ध्यान नहीं है। सबसे हैरानी की बात यह है कि प्रदेश के आसपास के राज्यों में कोरोना की दहशत फैलते ही ये मजदूर गांव तो पहुंच गए लेकिन इनकी जांच तक नहीं हो पाई।
सरकार ने कोरोना को लेकर शहरों पर पूरा फोकस कर रखा है। सभी संसाधन शहरी क्षेत्र में पीड़ित और संदिग्धों की जांच में लगे हैं, जबकि गांवों में लाखों की संख्या में मजदूर दूसरे राज्य और बड़े शहरों से बिना जांच के वापस गांव लौट रहे हैं। फिलहाल गांवों में हालत से निपटने के लिए सरकार के पास कोई प्लान नहीं है।
प्रदेश के करीब 54 हजार गांवों में करीब साढ़े पांच करोड़ की आबादी बसती है। इस आबादी में गरीब, मजदूर की बड़ी संख्या है। साथ ही गांवों में पढ़े-लिखे बेराजगारों की बड़ी संख्या है। जो रोजगार के लिए बड़े शहर या दूसरे राज्यों में कंपनी, होटल, मॉल, दुकान आदि में नौकरी करते हैं। साथ ही हाईराइज बिल्डिंग, सड़क, भवन निर्माण से जुड़े कार्यों में मजदूरी करते हैं। कोरोना के चलते 14 अप्रैल तक देश लॉकडाउन होने के बाद शहरों में सभी निर्माण कार्य, मॉल, होटल, दुकान बंद हैं। ऐसे में ज्यादातर बेरोजगार युवा, मजदूर अपने गांव लौट रहे हैं। सड़क एवं रेल यातायात बंद होने की स्थिति में मजदूर पैदल या फिर टै्रक्टर-ट्रॉली से प्रदेश, जिले के बॉर्डर तक आ रहे हैं। हाल ही में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा के बड़े शहरों से मजदूर अपने गांव लौटे हैं। खास बात यह है कि इनकी अभी तक किसी तरह की मेडिकल जांच नहीं हुई है। अभी तक प्रदेश सरकार की गांवों में मेडिकल परीक्षण की कोई तैयारी नहीं है।
जिन राज्यों से मप्र के मजदूर वापस लौटे हैं, उनमें कोरोना वायरस का प्रभाव ज्यादा है। सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, दिल्ली, केरला, राजस्थान, पश्चिम बंगाल में कोरोना पीड़ित मिले हैं। मप्र के मजदूर दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र में मजदूरी के लिए जाते हैं। इन शहरों से मजदूरों के आने से गांवों के बाशिंदों की चिंता बढ़ गई है। खासकर आदिवासी जिलों में तो सबसे अधिक चिंता देखी जा रही है। ये चिंताएं इसलिए भी ज्यादा हो गई हैं, क्योंकि आदिवासी बाहुल्य जिलों से हजारों लोग अन्य राज्यों में मजूदरी या अन्य काम करते हैं, जो अब कोरोना के खौफ से वापस लौटने लगे हैं। आदिवासी बहुल जिला श्योपुर में अभी तक ऐसे लोगों की स्क्रीनिंग की कोई व्यवस्था नहीं है, लिहाजा बाहर से आने वाले मजदूर बिना जांच के ही सीधे अपने गांव और कस्बों में समुदाय के बीच पहुंच रहे हैं। हालांकि अभी जिले में कोरोना का कोई पॉजीटिव या संदिग्ध मरीज नहीं मिला है, लेकिन श्योपुर के पड़ोसी मुरैना जिले में इस तरह का प्रकरण सामने आने के बाद अब लोग चिंतित हैं। प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य और पिछड़े जिले श्योपुर के हजारों लोग अन्य राज्यों में काम करते हैं। इनमें कराहल, वीरपुर और विजयपुर तहसील क्षेत्रों के हजारों लोग गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली और केरल जैसे राज्यों में विभिन्न कार्यों में लगे हुए हैं। इनमें अधिकांश लोग मजदूरी कार्य में हैं, लेकिन बढ़ते कोरोना के प्रभाव के चलते ये लोग अब इन राज्यों से वापस श्योपुर की ओर रुख कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश तो आदिवासी समाज के लोग हैं, जिनमें जागरुकता और शिक्षा का अभाव है। ऐसे में श्योपुर में प्रवेश करते वक्त ही इनकी स्क्रीनिंग नहीं होने से चिंताएं और बढ़ जाती है। यही वजह है कि सोशल मीडिया सहित जनप्रतिनिधियों द्वारा भी अब बाहर से आने वाले मजदूरों की जांच के लिए प्रक्रिया शुरू करने की मांग उठ रही है।
निजी सेक्टर बंद, घर लौटे युवा
देश व्यापी लॉकडाउन से पहले दक्षिण भारतीय राज्यों के कई जिलों में लॉकडाउन कर दिया था। इसके बाद उन राज्यों के बड़े शहर, दिल्ली, मुंबई, चैन्नई, कोलकाता जैसे बड़े शहरों आईटी, बैंकिंग एवं अन्य निजी सेक्टरों में काम करने वाले युवा अपने गृह नगर लौट आए हैं। इनमें से भी ज्यादातर का मेडिकल परीक्षण नहीं हुआ है। कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को लेकर आज पूरा देश चिंतित है। वहीं इस वायरस के संक्रमण को लेकर छोटे-छोटे रेलवे स्टेशनों से लगे गांव में दहशत का माहौल बना हुआ है। क्योंकि बीते एक सप्ताह के दौरान देश के बड़े-बड़े महानगरों में काम करने वाले लोग वापस अपने गांव आए हुए हैं। हैरानी की बात तो यह है कि छोटे-छोटे स्टेशनों पर कोरोना के संक्रमण की जांच की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण यह मजदूर बिना कोई जांच के ही घरों में पहुंच गए हैं। इनमें ज्यादातर दिल्ली, गुडगांव, नोएडा, पुणे, गुजरात, हरियाणा से आए लोग शामिल हैं। हैरानी की बात तो यह है कि जिन राज्यों से ये मजदूर वापस आए हैं उन राज्यों में सबसे ज्यादा कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज पाए गए हैं। ऐसे में इन मजदूरों की जांच होना भी अनिवार्य है।
- अरविंद नारद