हमेशा तिरंगा गमछा गले में डाले रहने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया के गले में अब भगवा गमछा नजर आने लगा है। सिंधिया ने जिस दिन अपने गले में भगवा गमछा डाला उसी दिन तय हो गया था कि मप्र की कांग्रेस सरकार अधिक दिन नहीं टिक पाएगी और 20 मार्च को 15 माह पुरानी कमलनाथ सरकार गिर गई। लेकिन सिंधिया के गले में भगवा गमछा पहनवाने और उनके समर्थकों को कांग्रेस से तोड़कर भाजपा में लाने के लिए पार्टी के 6 नेताओं केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, विश्वास सारंग, संजय पाठक, अरविंद भदौरिया और सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले जफर इस्लाम को लगाया गया था। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरे ऑपरेशन पर नजर रखे हुए थे।
मप्र में 2018 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद से ही राज्य में राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई थी। इस राजनीतिक अस्थिरता के लिए भले ही कांग्रेस और कमलनाथ भाजपा और केंद्र सरकार को जिम्मेदार बता रहे हैं लेकिन इस अस्थिरता के पीछे असली कारण कांग्रेस पार्टी का अंदरूनी असंतोष था जिसे पार्टी समय रहते नहीं संभाल पाई। उधर कांग्रेस की इसी अस्थिरता का फायदा उठाने के लिए भाजपा ने ऑपरेशन लोटस शुरू किया।
कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में लाने के लिए चलाए जा रहे ऑपरेशन लोटस के लिए एक ऐसे चेहरे की जरूरत थी जिस पर सिंधिया और भाजपा आलाकमान भरोसा कर सके। काफी सोच विचार करके भाजपा ने पार्टी प्रवक्ता जफर इस्लाम को ऑपरेशन लोटस की कमान सौंपी। ज्योतिरादित्य को भाजपा तक लाने और फिर गृहमंत्री अमित शाह व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचाने वाले कोई और नहीं, बल्कि भाजपा प्रवक्ता जफर इस्लाम हैं। वहीं मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने में भाजपा ने अपने 6 नेताओं को लगाया था जिसमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, विश्वास सारंग, संजय पाठक, अरविंद भदौरिया और सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले जफर इस्लाम लगाया गया था। इसके बाद मध्य प्रदेश स्तर की राजनीति में सारे समीकरणों को साधने के लिए नरोत्तम मिश्रा ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। वहीं संजय पाठक और विश्वास सारंग ने भोपाल से लेकर बेंगलुरु तक मोर्चा संभाले रखा। 9 मार्च को जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से आखिर बगावत कर दी तो उससे करीब एक महीने पहले से ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा के बड़े नेता आपस में संपर्क में थे। गृहमंत्री अमित शाह मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, कृषि मंत्री और मध्य प्रदेश के बड़े नेता नरेंद्र सिंह तोमर, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और भाजपा के महासचिव डॉ. अनिल जैन के बीच 11 फरवरी से लगातार बैठकें हो रहीं थी। इन बैठकों में मध्य प्रदेश में सरकार पलटने के फॉर्मूले पर चर्चा हो रही थी। यह वह समय था जब बजट सत्र का पहला हिस्सा खत्म हो रहा था। 11 फरवरी को गृहमंत्री अमित शाह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के फॉर्मूले पर सहमति दे दी थी और आगे की बातचीत के लिए धर्मेंद्र प्रधान, शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा डॉ. अनिल जैन की अगुवाई में एक टीम बना दी थी। टीम का नेतृत्व पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कर रहे थे।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 21 फरवरी को भाजपा नेताओं को 24 कांग्रेस विधायकों की सूची सौंपी। इसके बाद लगभग यह तय हो गया कि अब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस को टाटा बाय-बाय कहने के मूड में आ गए हैं। इन विधायकों से संपर्क का जिम्मा भाजपा ने नरोत्तम मिश्रा, अरविंद भदौरिया, विश्वास सारंग को सौंपा गया। इसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया के निकट सहयोगी मदद कर रहे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस नेतृत्व से राज्य में प्रदेश अध्यक्ष का पद या राज्यसभा की सीट चाहते थे, लेकिन कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी सिंधिया को ना तो प्रदेश अध्यक्ष का पद और ना ही राज्यसभा की सीट देने के पक्ष में थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की इस मंशा को समझ गए थे। इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थामने का मन भी बना चुके थे और इसके लिए 5 मार्च की तारीख भी तय हो गई थी।
भाजपा नेता नरोत्तम मिश्रा और भूपेंद्र सिंह तमाम कांग्रेस विधायकों को लेकर गुड़गांव पहुंचने लगे थे। यह कांग्रेस विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के थे इनमें एंदल सिंह कंसाना, जसवंत जाटव, मुन्नालाल गोयल, रघुराज सिंह कंसाना, गिरिराज दंडोतिया, इमरती देवी, प्रद्युम्न सिंह तोमर शामिल थे। इनके साथ ही बसपा से रामबाई और संजीव सिंह के अलावा समाजवादी पार्टी के राजेश शुक्ला उर्फ बबलू और निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा भी शामिल थे। इन विधायकों को 5 मार्च की रात गुड़गांव की होटल ग्रैंड में ठहराया गया, लेकिन इस बड़े उलटफेर की खबर दिग्विजय सिंह को लग गई और और वे अपने बेटे जयवर्धन और एक अन्य मंत्री जीतू पटवारी के साथ गुड़गांव के होटल में जा धमके। कुछ कांग्रेस विधायक वहां से स्थिति बिगड़ती देख चुपचाप निकल लिए जबकि बसपा विधायक रामबाई को जयवर्धन सिंह और जीतू पटवारी अपने साथ लेकर आए और ऑपरेशन लोटस की यह पहली कोशिश विफल हो गई। लेकिन भाजपा और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हार नहीं मानी। सिंधिया के तेवर और कड़े हो गए इस बार उन्होंने जो योजना बनाई वह ऐसी थी कि किसी को कानो कान खबर नहीं हुई।
8 मार्च और 9 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, धर्मेंद्र प्रधान की कई दौर की बैठकें हुईं। यह बैठकें दिल्ली के गोल्फ कोर्स इलाके में गुप्त ठिकाने पर हुईं। इस दौरान यह सभी नेता अपने स्टाफ और सरकारी ड्राइवर को भी अपने घरों पर छोड़कर गुप्त ठिकाने पर मिलते थे। 8 मार्च की बैठक में ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा में भेजे जाने पर सहमति बन गई। इसके बाद 8 मार्च की रात को भिंड, ग्वालियर और मुरैना के सिंधिया खेमे के विधायकों को दिल्ली लाने का ऑपरेशन शुरू हुआ। फिर जब दोबारा ऑपरेशन लोटस शुरू हुआ तो तीन विधायकों प्रद्युम्न सिंह तोमर जो कि मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी थे, ओपीएस भदौरिया को ग्वालियर के जयविलास पैलेस से सबसे पहले अपने साथ लिया गया। इस ऑपरेशन में नरोत्तम मिश्रा ने अहम भूमिका निभाई। इसके बाद मुन्नालाल गोयल, इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया, सुरेश धाकड़, महेंद्र सिंह सिसोदिया जैसे तमाम दूसरे विधायकों को एक के बाद एक लेते हुए यह लोग दिल्ली की तरफ बढ़ लिए।
इस बार इस ऑपरेशन की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुद संभाल रखी थी और उनके पीए पाराशर खुद विधायकों के साथ कॉर्डिनेट कर रहे थे। 8 मार्च के ऑपरेशन की कानों कान खबर किसी को नहीं हुई। सुबह 4 बजे के आसपास सिंधिया खेमे के 17 विधायक पलवल के पास एक रिसॉर्ट में शिफ्ट कराए गए। खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया सुबह 5 बजे इन विधायकों से मिलने उस रिसॉर्ट में पहुंचे। सिंधिया ने अपने खेमे के विधायकों के साथ 2 घंटे लंबी चर्चा की। उन्होंने अपने कट्टर विधायकों की काउंसलिंग की। उन्हें समझाया कि क्यों इस सरकार से बाहर निकलना है और कमलनाथ की सरकार गिराना जरूरी है। आखिरकार सभी विधायक अपने नेता के साथ खड़े हो गए।
9 मार्च की सुबह इन विधायकों को बेंगलुरु ले जाने के लिए तीन चार्टर प्लेन तैयार थे। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इन चार्टर प्लेन को समय पर तैयार रहने के आदेश दिए थे। तकरीबन दोपहर के 12 बजे के आसपास यह विधायक एयरपोर्ट पहुंचकर चार्टर प्लेन में बैठ चुके थे। 3 बजे यह चार्टर प्लेन बेंगलुरु के एयरपोर्ट पर उतरे तो वहां भाजपा के विधायक निंबा वाली ने इनका स्वागत किया और इन्हें सीधे बेंगलुरु के बाहरी इलाके में फॉर्म स्प्रिंग रिसॉर्ट में ठहरा दिया गया। इस दौरान शाम को 5 बजे के आसपास ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस नेतृत्व को अपना इस्तीफा दे चुके थे। इस्तीफा भेजने के बाद उनकी मुलाकात गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी हुई। सबकुछ तय कार्यक्रम के मुताबिक ही चल रहा था। मध्य प्रदेश में सरकार गिराने का जो फॉर्मूला तय हुआ था, उसके तहत कम से कम 27 विधायकों को साथ लेने का फार्मूला तय हुआ था। इनमें से 22 विधायक सिंधिया खेमे के थे, बाकी पांच विधायक, बीएसपी, समाजवादी पार्टी और निर्दलीय थे। 9 मार्च की रात ऑपरेशन लोटस लगभग आधा रास्ता तय कर चुका था। अब सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया और विधायकों के इस्तीफे देने की औपचारिकता बची थी। 10 मार्च का दिन खास तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसलिए चुना, क्योंकि इसी दिन 75 साल पहले उनके पिता माधव राव सिंधिया का जन्म हुआ था। 10 मार्च की सुबह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गृहमंत्री अमित शाह के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और उसके बाद तय कार्यक्रम के मुताबिक बेंगलुरु में मौजूद सिंधिया खेमे के 19 विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया। बाद में सिंधिया खेमे के तीन और विधायकों ने भी विधानसभा अध्यक्ष को अपने इस्तीफे भेज दिए और इस तरह ऑपरेशन लोटस अपने अंजाम तक पहुंचता हुआ दिखाई देने लगा।
नड्डा ने आते ही अभियान को दी हर झंडी
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 में प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 114, भाजपा ने 109, बसपा ने 2, सपा ने 1 और चार निर्दलीय जीते थे। कमलनाथ ने सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी। कांग्रेस ने सरकार तो बना ली लेकिन सरकार गठन के बाद से ही मुश्किलों का सामना कर रही थी। शाह की अगुवाई में भाजपा इसे गिराने का कोई सक्रिय प्रयास नहीं कर रही थी। सूत्रों के मुताबिक, जेपी नड्डा भाजपा अध्यक्ष बने तो उन्होंने संघ से मिले फीडबैक के बाद शिवराज सिंह चौहान को ऑपरेशन लोटस शुरू करने की अनुमति दी। शिवराज ने भूपेंद्र सिंह, अरविंद भदौरिया और रामपाल सिंह के साथ अपनी योजना पर काम शुरू किया। नरोत्तम मिश्रा को भी शामिल किया गया। सिंधिया से संपर्क किया गया और बातचीत शुरू हुई।
ऐसे टूटा सिंधिया के सब्र का बांध
मध्य प्रदेश में जब 13 दिसंबर 2018 को 15 साल बाद शिवराज के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को शिकस्त देकर कांग्रेस की सरकार बनी और सिंधिया की तमाम कोशिशों, जोड़-तोड़ के बावजूद पार्टी आलाकमान ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया। तभी से सिंधिया खिन्न थे, मलाल इस बात का था कि चुनाव उनके नाम और चेहरे पर लड़ा गया, लेकिन मुख्यमंत्री पद की मलाई कमलनाथ के हाथ लगी। राज्य में सरकार बनी तो आरोप यह लगा कि सिंधिया गुट से सबसे कम विधायकों को मंत्री बनाया गया। सिंधिया के सब्र का नतीजा ये रहा कि कमलनाथ-दिग्विजय सिंह की जोड़ी ने उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष भी नहीं बनने दिया। उसके बाद राज्यसभा की बारी आई तो पहली सीट पर दिग्विजय सिंह का नाम आगे कर दिया गया। दूसरे के लिए प्रियंका गांधी से लेकर दीपक सक्सेना तक के नाम हवा में तैराए जाने लगे। सत्ता और संगठन में लगातार उपेक्षा से आहत ज्योतिरादित्य सिंधिया के सब्र का बांध आखिर टूट ही गया। उपेक्षा से आहत सिंधिया ने पिछले कुछ दिनों से आर-पार की लड़ाई के तेवर अपना लिए थे। बीते फरवरी में अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण और किसानों की कर्जमाफी के मुद्दे पर आंदोलनकारियों के बीच से ज्योतिरादित्य ने अपनी ही सरकार को खुली चुनौती दे डाली थी कि अगर कमलनाथ सरकार ने अपने चुनावी वचन पत्र का पालन नहीं किया तो वह सड़क पर उतरेंगे। इसका जवाब मुख्यमंत्री कमलनाथ की ओर से बेहद तल्खी भरा आया। उन्होंने यहां तक कह दिया कि सरकार वचन पत्र का पालन कर रही है, जिसे सड़क पर उतरना हो, उतर जाए। हम डरने वाले नहीं हैं। यह बात सिंधिया को नागवार गुजरी। सुलह के लिए दिग्विजय सिंह के साथ उनकी मीटिंग भी नाकाम हो गई। जब तक बात संभलती, तब तक पानी सिर से ऊपर निकल चुका था।
- राजेश बोरकर