हरियाली हो रही गायब
21-Jul-2020 12:00 AM 1051

 

म प्र में बीते कई वर्षों से प्रत्येक सीजन (मानसून) में 8 करोड़ से ज्यादा पौधे रोपने का दावा किया जा रहा है। सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार 10 वर्ष में 80 करोड़ से अधिक पौधे रोपे गए हैं। तल्ख सच्चाई यह है कि इनमें से 10 फीसदी पौधे भी जमीन पर नजर नहीं आते। जानकार कहते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह पौधरोपण के नाम पर केवल खानापूर्ति है। अभियान चलाकर आनन-फानन में पौधे लगा तो दिए जाते हैं, लेकिन रोपने से पहले न जमीन देखी जाती है, न उनकी सही देखभाल की जाती है।

राजधानी भोपाल में पांच साल में 15 लाख पौधे लगाए गए हैं। ये पौधे भोपाल लोकल व आसपास के जंगल में रोपे गए हैं। इनमें से 70 फीसदी पौधे यानी 10 लाख 50 हजार पौधों के जिंदा होने के दावे किए जा रहे हैं। यह दावा भोपाल जिले का वन विभाग कर रहा है, लेकिन इतने पौधे जमीन पर नजर नहीं आ रहे हैं तो वहीं फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की साल 2019 की रिपोर्ट कहती है कि भोपाल का जंगल 25 वर्ग किलोमीटर घट गया है। हालांकि पूर्व के सालों की तुलना में हरियाली ज्यादा नजर आ रही है।

दरअसल, भोपाल सामान्य वन मंडल का जंगल 354 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यह बात फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कही गई है। इसके पहले साल 2017 की रिपोर्ट में भोपाल के जंगल का दायरा 379 वर्ग किलोमीटर था। कुल मिलाकर पौधे लगाने के आंकड़े जो भी कह रहे हों, लेकिन वन विभाग की ही अधिकृत रिपोर्ट बताती है कि जंगल बढ़ने की बजाय कम हुआ है। यही वजह है कि गर्मी में धूप हर साल अधिक चुभ रही है तो ठंड के दिनों में प्रदूषण हावी हो जाता है। जनवरी से फरवरी 2020 के बीच ही वायु की गुणवत्ता बताने वाला सूचकांक 300 से ऊपर चला गया था जो कि 50 तक या उससे नीचे होना चाहिए।

भोपाल सामान्य वन मंडल के अधिकारियों का कहना है कि हर साल जो पौधे लगाए जाते हैं उनमें से 70 फीसदी पौधे जिंदा रहते हैं, बाकी के सूख जाते हैं या अन्य कारणों से मर जाते हैं। भोपाल सामान्य वन मंडल के डीएफओ एचएस मिश्रा का कहना है कि 70 फीसदी पौधे जिंदा रहते हैं, यही वजह है कि भोपाल के जंगल में हरियाली का ग्राफ पूर्व की तुलना में बढ़ा है।

शासन के निर्देश पर जबलपुर जिले का वनक्षेत्र बढ़ाने की मंशा से वन विभाग ने बीते दो साल के दौरान करीब 14 लाख पौधे लगाए। वर्तमान में इनमें से 4 लाख से ज्यादा पौधे दम तोड़ चुके हैं। बावजूद इसके वन विभाग इस वर्ष सवा 3 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखकर पौधारोपण कर रहा है। इस अभियान के अंतर्गत जिले में 80 हजार विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाने का काम पूरा हो चुका है। वन विभाग कार्यालय से बताया गया है कि सरकार के निर्देश व नीति के अनुसार वन विभाग ने जिले की जमीन का चयन करके पौधारोपण किया है। इसमें खास यह कि जिले की मिट्टी, जलवायु की जांच के बाद वन विभाग कार्ययोजना ने पौधारोपण के लिए पौधों की विभिन्न प्रजातियों का चयन किया। शासन की गाइडलाइन के अनुसार वन विभाग ने पौधों की प्रजाति के आधार पर 4-4, 7-7 फीट की दूरी रखकर पौधे लगाए।

वर्ष-2018 में जबलपुर वनमंडल के अंतर्गत वनपरिक्षेत्र जबलपुर, शहपुरा, बरगी, कुंडम, सिहोरा, पाटन, पनागर के कुल एक हजार 143 हैक्टेयर जमीन पर कुल 9 लाख 58 हजार 459 पौधों का रोपण किया गया। वहीं वर्ष-2019 में जबलपुर वनमंडल के विभिन्न परिक्षेत्र की 527 हैक्टेयर जमीन पर 4 लाख 32 हजार 225 पौधे लगाए गए। वन विभाग ने इस वर्ष 322 हैक्टेयर में करीब सवा 3 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। वन विभाग ने वर्ष-2018 और 2019 में अभियान चलाकर 14 लाख पौधों का रोपण किया। इसमें से 10 फीसदी पौधों ने एक सप्ताह में दम तोड़ दिया। वन विभाग ने यह पौधे बदलकर दूसरे पौधे लगाए। वनकर्मी पहाड़ी, बंजर जमीन पर लगाए गए पौधों का उचित रखरखाव करने में नाकाम रहे।

बीते तीन वर्ष में अकेले इंदौर वनमंडल में करीब 35 लाख से ज्यादा पौधे जंगल में लगाए हैं। विभिन्न प्रजातियों के पौधे जंगलों में वन विभाग और पर्यावरण से जुड़ी सामाजिक संस्थाओं की मदद से लगाते हैं। कई बार पानी कम होने या अत्यधिक छोटे पौधे होने से ये मुरझा जाते हैं या फिर पनप नहीं पाते हैं। आंकड़ों की बात करें तो करीब 10 लाख पौधे नष्ट हुए हैं। 2019 में बजट की कमी से पौधे कम लगाए गए जबकि इस साल कोरोना संक्रमण के चलते विभाग ने नष्ट पौधों को बदलने की योजना बनाई है। लगभग ढाई लाख पौधे अलग-अलग वनक्षेत्र में लगाए जाएंगे। लाखों पौधे विभाग की लापरवाही के चलते नष्ट हो गए। जानकारों के अनुसार पौधारोपण के लिए महज एक दिन रखा था। इसके लिए स्टाफ को लक्ष्य दे रखा था। इससे न तो गड्ढे ठीक से खुदवाए गए और न मिट्टी और खाद पर्याप्त मात्रा में पौधों को मिली। साथ ही पौधे भी इतने छोटे थे कि तेज बारिश में बह गए।

50 प्रजातियों के पौधे लगाते हैं जंगल में

प्रदेशभर के जंगलों में अलग-अलग प्रजातियों के पौधे लगाए जाते हैं। ये वनक्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इंदौर वनमंडल में सागवान, अंजन, शीशम, नीम, जामुन, जाम, आम, बरगद (20 प्रजाति), गूलर, बांस, इमली, बबूल समेत कई पेड़ शामिल हैं। नवरत्नबाग, अहिल्या आश्रम, रेसीडेंसी, बड़गोंदा और अनुसंधान केंद्र की नर्सरी में पौधे तैयार होते हैं। जंगल में पौधों की कई प्रजातियां अब खतरे में आ चुकी हैं। इनमें मेदा, कर्कट, शल्यकर्णी, दहिमन, सोनपाठा, गरुड़, सलाई, धावड़ा, मोखा, कुंभी, गवड़ी, केंकड़, बीजा, पाडर, रोहना प्रजातियां शामिल हैं। इन्हें बचाने के प्रयास में वन विभाग जुटा है। 

  - राकेश ग्रोवर

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