हरे सोने से भरेगा खजाना
04-May-2020 12:00 AM 551

मप्र में 25 अप्रैल से हरे सोने यानी तेंदूपत्ते  का संग्रहण शुरू हो गया है। इस बार सरकार ने 19 लाख मानक बोरा पत्ता संग्रहण का लक्ष्य रखा है। प्रदेश के वनक्षेत्रों में आदिवासी और श्रमिक पत्तों के संग्रहण में जुट गए हैं। हालांकि कोरोना वायरस के कारण किए गए लॉकडाउन के चलते महाराष्ट्र के श्रमिक इस बार नहीं आ पाए हैं। इसलिए संग्रहण की प्रक्रिया धीमी गति से चल रही है।

आर्थिक बदहाली के इस दौर में सरकार को कोरोना वायरस के लॉकडाउन के कारण बड़ी आर्थिक क्षति पहुंची है। ऐसे में सरकार को तेंदूपत्ता से बड़ी आय होने की संभावना है। प्रदेश के 22 लाख से ज्यादा तेंदूपत्ता श्रमिकों के लिए अच्छी खबर यह है कि वन विभाग ने 11 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता, तुड़ाई से पहले ही बेच दिया है। इस कारण श्रमिकों को बोनस की राशि मिलने में ज्यादा देर नहीं होगी। वहीं, 6 लाख मानक बोरा पत्ता बेचने के लिए विभाग ने फिर से टेंडर जारी कर दिए हैं। इस बार 19 लाख मानक बोरा पत्ता संग्रहण का लक्ष्य है। 25 अप्रैल से तुड़ाई शुरू कर दी गई है और 4 जून से पत्ता फड़ (खरीदी केंद्रों) पर पहुंचना शुरू होगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तेंदूपत्ता तुड़ाई और 2500 रुपए मानक बोरे में खरीदी करने की घोषणा की है।

विभाग के सूत्र बताते हैं कि पत्ते की क्वालिटी के हिसाब से तीन से छह हजार रुपए मानक बोरा की दर से बीड़ी ठेकेदारों ने पत्ता खरीद लिया है। इसका औसत निकालें, तो 3700 रुपए मानक बोरा में पत्ता बिका है। यह रेट पिछले सालों की तुलना में काफी कम है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 में पत्ते के सबसे ज्यादा 5500 रुपए मानक बोरा रेट आए थे, तो पिछले 2 साल में चार से साढ़े चार हजार रुपए रेट आए। बताया जाता है कि इस बार कोरोना वायरस के कारण छाई विश्वव्यापी मंदी का असर तेंदूपत्ता पर भी नजर आ रहा है।

प्रदेश सरकार ने कोरोना संक्रमण के कारण जारी लॉकडाउन के दौरान लघु वनोपज, संग्रहण प्रसंस्करण, उपचरण, परिवहन, भंडारण और विपणन कार्यों में संलग्न श्रमिकों और ग्रामीणों को संक्रमण से बचाने के निर्देश दिए हैं। वनोपज संग्रहण के दौरान किसी संग्राहक अथवा वनकर्मी में कोरोना वायरस के लक्षण दिखते हंै तो उसे तुरंत निकटतम अस्पताल पहुंचाने के लिए कहा गया है। लघु वनोपज के संग्रहण में संलग्न कर्मचारी, क्रेता और प्रतिनिधि श्रमिक और ग्रामीण अनिवार्य रूप से चेहरे को मास्क, फेसकवर, गमछा, रुमाल, दुपट्टे से ढंककर रखेंगे। तेंदूपत्ता क्रेताओं और उनके प्रतिनिधियों के लिए वन मंडल अधिकारी अथवा प्रबंध संचालक जिला यूनियन द्वारा पूर्व से निर्धारित परिचय पत्र जारी किए जाएंगे। प्रत्येक संग्रहण एवं भंडारण केंद्र और गोदाम पर आवश्यक रूप से सेनेटाजर और साबुन रखा जाएगा। यहां सभी संबंधित के लिए आने और जाने, दोनों समय 20 सेकंड तक हाथ धोकर हाथ सैनेटाइज करना जरूरी होगा। वनोपज संग्रहण आदि कार्यों में संलग्न सभी व्यक्ति आपस में कम से कम 2 मीटर की दूरी बनाए रखते हुए काम करेंगे। प्रत्येक संग्रहण केंद्र पर 2-2 मीटर की दूरी पर चूने का घेरा बनेगा। इन केंद्रों पर रात में कार्य के लिए उचित प्रकाश व्यवस्था होगी।

प्रदेश में तेंदूपत्ता संग्रहण का काम शुरू हो गया है, लेकिन श्रमिकों को डर सता रहा है कि कहीं इस बार भी उन्हें बोनस से हाथ न धोना पड़े। दरअसल, तेंदूपत्ता संग्राहकों को आर्थिक मदद देने वाला संघ अब आर्थिक घाटे की ओर जा रहा है। जिसकी वजह से बीते वर्ष श्रमिकों को बोनस नहीं मिल पाया था और इस साल का भी मिल पाना मुश्किल है। यह आर्थिक संकट प्रदेश स्तर पर है। रीवा संभाग के चारों जिलों में तेंदूपत्ता से करीब 200 करोड़ रुपए हर साल सरकार को संघ देता था। इसकी आधी लागत पत्ता तुड़ाई एवं परिवहन सहित अन्य कार्यों में खर्च हो जाती थी। करीब 100 करोड़ रुपए का हर साल फायदा होता था। लेकिन अब धीरे-धीरे संघ के सामने समस्याएं आने लगी हैं। तेंदूपत्ता संग्रहण के साथ अन्य वन संपदाओं की खरीदी भी कुछ समय पहले तक की जाती रही है लेकिन उसमें आए आर्थिक घाटे की वजह से इसे बंद कर दिया गया है। बीते साल रीवा संभाग का महुआ खरीदा गया था लेकिन बाजार मूल्य की तुलना में वह अधिक महंगा पड़ रहा था, जिसकी वजह से बिक्री नहीं हो पाई। इस कारण अब महुआ की खरीदी बंद कर दी गई है। सरकार की ओर से वर्ष 2017 में तेंदूपत्ता संग्राहकों को बोनस बांटा गया था। इसके बाद से सरकार की ओर से समीक्षा भी की गई है लेकिन फिलहाल बोनस वितरण करने के कोई संकेत नहीं दिए गए हैं। चुनावी वर्ष होने की वजह से वर्ष 2017 तक का पूर्व की सरकार ने बोनस वितरित कर दिया था, इसलिए अब पुराना भी लंबित नहीं है, जिसे सरकार बांट सके। माना जा रहा है कि यदि इस वर्ष तेंदूपत्ते का बेहतर संग्रहण होगा तो आने वाले वर्षों में बोनस भी मिलेगा।

हर साल 100 करोड़ मिलता है ब्याज

लघु वनोजन संघ के खाते में समितियों के 1300 करोड़ रुपए जमा हैं। इसका हर साल करीब 100 करोड़ रुपए ब्याज मिलता है। इस राशि को भी समितियों को बोनस के साथ बांटा जाता है। गौरतलब है कि तेंदूपत्ता संग्रहण से लाभांश की 70 फीसदी राशि लघु वनोपज संघ संग्राहकों को बांट देता है। जबकि 30 फीसदी राशि संघ अपने पास रख लेता है, इसमें से अध्यक्षीय कोटा, स्थापना व्यय और वनों के विकास पर राशि खर्च की जाती है। संघ ने दो टूक कह दिया कि वन समितियों के खातों में पैसा दिया जाएगा। इसके बाद समितियों को तय करना है कि वे इस पैसे का क्या इस्तेमाल करना चाहती हैं। संघ के इस जवाब से डीएफओ का प्रस्ताव रद्द हो गया। प्रदेश के तेंदूपत्ता संग्राहकों को हर साल करीब 300 करोड़ रुपए बोनस दिया जाता है। पिछले साल बोनस की राशि दी गई थी। इससे पहले तत्कालीन भाजपा सरकार ने जूते-चप्पल, साड़ी और पानी की बॉटल बांटी थी, जिस पर भारी विवाद हुआ था। इस बार प्रबंध संचालक ने कहा है कि समितियों के खाते में बोनस की राशि ट्रांसफर की जाएगी। किसी भी सामान की खरीदी यहां से नहीं होगी।

- धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया

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