घर पहुंचकर भी बेहाल
04-May-2020 12:00 AM 444

बुंदेलखंड के लोगों के साथ उनका दुर्भाग्य भी चलता है। दूसरे प्रदेशों में मेहनत मजदूरी कर अपना गुजारा करने वाले लाखों लोग लॉकडाउन के बाद अपने घर तो पहुंच गए हैं, लेकिन अब यहां उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।

कोरोना के खौफ के चलते शहरों से वापस अपने गांव पहुंचे मजदूरों के सामने अब बड़ा संकट खड़ा हो गया है। अब का वक्त तो गांव में गेहूं कटाई से मिली मजदूरी से कट गया लेकिन अब क्या होगा। बुंदेलखंड के जनपदों में रहने वाले मजदूर परिवारों के सामने यह सबसे बड़ी चिंता है। उप्र के जिलों से ज्यादा खराब हालात मध्यप्रदेश के गांवों में हैं। क्योंकि इन गांवों में बड़ी संख्या में मजदूर शहरों से वापस लौटे हैं। इस बार मजदूरों की संख्या बढ़ने के कारण मजदूरी के रेट भी घट गए। वहीं लॉकडाउन में अब दुकानदारों ने भी उधार देना बंद कर दिया है। दुकानों पर पोस्टर लगा दिए हैं कि उधार बंद है।

अगर बुंदेलखंड में शामिल जिलों की बात करें तो उप्र के झांसी, ललितपुर, बांदा, महोबा, जालौन, हमीरपुुर, चित्रकूट और मध्यप्रदेश के दतिया, निवाड़ी, टीकमगढ़, छतरपुर और शिवपुरी शामिल हैं। प्रशासनिक आंकड़ों के मुताबिक इन सब जिलों के पंजीकृत मजदूरों की संख्या 8 लाख है। विगत दिनों एक सर्वे टीम ने झांसी के समीपवर्ती जिलों के उन गांवों में गांवों में जाकर मजदूरों की स्थिति को देखा जो बुंदेलखंड का हिस्सा हैं। सबसे पहले हाईवे किनारे पड़ने वाले झांसी के गांव बडोरा में टीम के लोग पहुंचे और यहां खेत में गेहूं की कटाई कर रहे मजदूरों से मुलाकात की। शोभरन के खेत में गेहूं की कटाई कर रहे मजदूरों का कहना था कि फिलहाल तो काम चल रहा है। गेहूं की कटाई और भूसा ढुलाई से मजदूरी मिल रही है लेकिन उसके बाद क्या होगा। मध्यप्रदेश के निवाड़ी जिले के चकरपुर निवासी देवी सिंह राजस्थान में बेलदारी का काम करते थे लेकिन अब दस दिनों से गेहूं कटाई की मजदूरी कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के गांव मानपुर निवासी गोपाल सिंह गेहूं की कटाई करने के बाद घर में पहुंचे ही थे जब सर्वे टीम ने पूछा तो कहने लगे कि फिलहाल तो गेहूं के भरोसे समय कट जाएगा लेकिन आगे संकट आएगा। झांसी से 30 किलोमीटर दूर मध्यप्रदेश के दतिया जिले के गांव चिरुला निवासी सुदामा कहते हैं कि इस समय मजदूरों के सामने बड़ा संकट है। दुकानदार उधार नहीं दे रहे। ललितपुर जिले के पवा गांव में खेत से गेहूं की कटाई करके लौट रहे रूप सिंह से जब बात की गई तो कहने लगे कि इस बार बेमौसम बरसात ने भी गेहूं की फसल को बेकार कर दिया है। गेहूं खेत में गिर गया था उत्पादन भी कम हुआ है।

अनुमान है कि करीब 6 लाख मजदूर बुंदेलखंड और यहां से जुड़े इलाकों में लौटे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता रामबाबू तिवारी कहते हैं कि जिन गांव के घरों में ताले लटके थे वे अब खुल रहे हैं। पलायन से वापसी का आंकड़ा 6 लाख से भी आगे जाएगा। उनका कहना है कि बांदा के गांवों में लगातार मजदूरों का पहुंचना जारी है। मजदूरों के लौटने के बाद सबसे बड़ी चुनौती उनके स्वास्थ्य परीक्षण की है। जो मजदूर आए हैं उनको बिना परीक्षण के वापस घर भेजा जा रहा है। संक्रमण की आपात स्थिति के बीच सरकार की ओर से कई घोषणाएं तो की गईं है लेकिन वह जनता तक पहुंचकर कितना राहत देगी यह देखने की बात होगी। सरकार ने मनरेगा मजदूरों के बैंक अकाउंट में राहत धनराशि भेजे जाने का ऐलान कर दिया है, लेकिन यह धनराशि ऐक्टिव मजदूरों के लिए ही होगी।

मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ और छतरपुर जिले से ही करीब 50 हजार मजदूर एनसीआर से वापस लौटे हैं। यह लोग दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद में मजदूरी करते थे। लेकिन अब इनके सामने दो वक्त की रोटी का भी संकट खड़ा हो गया है। मानपुर निवासी दिलीप कुमार ने कहा कि कुछ दिन तो गेहूं की कटाई करके जो मजदूरी मिली उससे कट गए लेकिन अब तो उनके पास कुछ है ही नहीं। जमीन है नहीं जो कुछ कर लेते। दिलीप ने बताया कि वह काफी समय से गाजियाबाद में रहकर मजदूरी कर रहे थे। राशन कार्ड भी नहीं बन पाया है। डीलर के पास गए थे तो उसने कह दिया कि आपका नाम सूची में नहीं है। पहले गांव के दुकानदार उधार दे दिया करते थे लेकिन अब वह भी मना कर रहे हैं। मध्यप्रदेश के गांव चकरपुर निवासी कपिल कुमार ने बताया कि उनके गांव में तो आज तक कोई नहीं आया। प्रशासन ने भी किसी की मदद नहीं की। लोगों को इस समय में क्या-क्या दिया जा रहा है इसकी जानकारी भी किसी को नहीं है। बांदा के प्रहलाद सिंह कहते हैं कि संकट बड़ा है।

मंडलायुक्त सुभाष चंद्र शर्मा ने बताया कि बुंदेलखंड में मजदूरों की संख्या अन्य जिलों के मुकाबले ज्यादा है। प्रशासन कोशिश कर रहा है कि किसी के भी सामने कोई दिक्कत न हो। राशन का वितरण कराया जा रहा है। जिनके पास कार्ड नहीं हैं उनके कार्ड गांव और मोहल्लों में बनाए जा रहे हैं। सभी एसडीएम निरीक्षण कर रहे हैं। वह खुद लगातार जायजा ले रहे हैं।

अब शहरों में वापसी भी बड़ी चुनौती बनेगी

निवाड़ी निवासी रोहताश कुमार का कहना है उस जैसे करीब 500 मजदूर दिल्ली में किराए का मकान लेकर परिवार के साथ रहते थे। अब जब लॉकडाउन हुआ तो मकान खाली करके आ गए। अब अगर शहर को वापस जाएंगे तो दोबारा से मकान की तलाश करनी होगी। बड़े शहरों में मकान मिलना आसान नहीं है। नत्थीखेड़ा निवासी सुशील कहते हैं कि अभी तो लॉकडाउन खत्म ही नहीं हो पा रहा। मई-जून ऐसे ही बीत जाएगा तो फिर कैसे शहर में जाकर रहेंगे। जो पैसा था वह भी खत्म हो गया है। मकान मालिक एडवांस मांगते हैं।

- सिद्धार्थ पांडे

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