मप्र में नगरीय निकाय चुनाव पर असमंजस का साया मंडरा रहा है। ये चुनाव कब होंगे, कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस का आरोप है कि संभावित हार को देखते हुए भाजपा चुनाव नहीं कराना चाहती है। उधर, चुनाव आयोग तैयारी में जुटा हुआ है।
मप्र में नगरीय निकायों का कार्यकाल खत्म हुए 10 महीने से ज्यादा बीत चुके हैं, लेकिन अगले चुनाव की तारीखों की घोषणा अभी तक नहीं हुई है। कोरोना संकट को आधार बनाकर ये चुनाव टाले जा रहे हैं। दिसंबर में भी तारीखों का ऐलान होने ही वाला था, कि कोरोना संकट का हवाला देकर राज्य निर्वाचन आयोग ने इसे टाल दिया। प्रदेश के नगरीय निकायों का कार्यकाल अप्रैल 2020 में खत्म हो चुका है।
कांग्रेस का कहना है कि सत्तारूढ़ भाजपा जानबूझ कर चुनाव टाल रही है। जिस तरह से केंद्र सरकार के खिलाफ जनता में नाराजगी भरी हुई है, उससे शिवराज सरकार डरी हुई है। उसे लग रहा है कि केंद्र की नाराजगी चुनावों में उसके खिलाफ जा सकती है। नाराजगी कई कारणों से है। किसान आंदोलन का असर राज्य के कई क्षेत्रों में दिख रहा है। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के लगातार बढ़ते दाम और बेरोजगारी से जनता परेशान हो चुकी है। इसलिए भाजपा को हार का डर है।
मप्र सरकार के पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन सिंह वर्मा सीधे आरोप लगाते हैं कि भाजपा सरकार चुनाव से भाग रही है। वे कहते हैं, 'सरकार चुनाव की तारीखें घोषित नहीं कर रही है, क्योंकि वह जानती है कि पेट्रोल, डीजल, गैस के दाम इतने बढ़ गए हैं कि जनता इनको वोट नहीं करेगी। भाजपा समझ रही है कि अगर अभी चुनाव कराए गए तो वे सभी नगर निगम सीटें हार जाएगी।Ó भाजपा इस तरह के आरोपों को खारिज करती है। पार्टी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं, 'कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए स्वयं चुनाव टाला और अब आरोप हम पर लगा रही है। इन्होंने ही मेयर का चुनाव परोक्ष रूप से कराने के लिए संशोधन किया था। इसका सीधा अर्थ यह है कि वे लोग सीधे चुनाव से बचना चाह रहे थे।Ó अग्रवाल के अनुसार भाजपा चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है। राज्य सरकार तो कोर्ट में भी कह चुकी है कि वह किसी भी समय चुनाव के लिए राजी है।
भाजपा ने निकाय चुनावों की तैयारियों के लिहाज से नवंबर-दिसंबर में मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं की बैठकें की थीं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सभी निगमों का दौरा भी किया था। अब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा सभी नगर निगमों का दौरा कर रहे हैं। प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव भी कई स्तरों पर स्वयं बैठकें कर चुके हैं। प्रदेश में पिछले नगरीय निकाय चुनाव 2015 में हुए थे, जिसमें भाजपा को बड़ी जीत मिली थी। प्रदेश के सभी 16 नगर निगमों पर उसका कब्जा था। ज्यादातर निगमों की नगर परिषदों में भी भाजपा का ही बहुमत था। उस समय शिवराज सिंह की लोकप्रियता चरम पर थी। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन पिछले साल उसे गिराकर भाजपा फिर सत्ता में आ गई।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हार का डर भाजपा से ज्यादा शिवराज सिंह को सता रहा है। जिन परिस्थितियों में उनकी सत्ता वापसी हुई है, उसके चलते निकाय चुनावों में जीत का पिछला परिणाम दोहराना उनकी आवश्यकता है। उनको सत्ता में आए एक साल का समय हो गया है। इसका सीधा अर्थ है कि जनता उनके काम के आधार पर वोट देगी। ऐसे में यदि नतीजे पिछली बार की तुलना में खराब रहे तो यह बात उनके खिलाफ जाएगी। उनके विरोधियों को आवाज उठाने का मौका मिल जाएगा और वे ऐसा कोई मौका देना नहीं चाहते हैं। यही कारण है कि पिछले साल विधानसभा उपचुनाव के परिणाम आने के बाद शिवराज नगरीय निकाय चुनावों को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के सभी नगर निगमों का दौरा कर चुके हैं। सभी शहरों के 3 साल के विकास कार्यों की योजना बनवाकर उन पर अमल भी शुरू करवा चुके हैं। यह सब नगर निगम चुनावों को ध्यान में रखकर ही किया जा रहा है।
भाजपा के लिए एक चुनौती सिंधिया के साथ आए नेता और मंत्री भी हैं। दरअसल, सिंधिया के साथ ही उनके समर्थक नेता भी इस कोशिश में जुटे हुए हैं कि उनके समर्थकों को निकाय और पंचायत चुनाव में टिकट मिले। इससे भाजपा में असंतोष बढ़ते जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण मुरैना में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के सामने आ चुका है। इसलिए भाजपा की कोशिश है कि जैसे भी हो नगरीय निकाय चुनाव को लंबा खींचा जाए।
तैयारी में जुटा राज्य निर्वाचन आयोग
राज्य निर्वाचन आयुक्त बीपी सिंह ने कलेक्टरों को निर्देश दिए हैं कि वे इलेक्शन मोड में आ जाएं। निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान छोटी-छोटी खामियों को दूर कर लें। यदि छोटी सी गलती भी पाई जाती है, तो माफ नहीं किया जाएगा। आयोग ने नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराने की तैयारी की है। आयुक्त बीपी सिंह ने नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनाव की तैयारियों को लेकर वीडियो कॉन्फे्रंसिंग के जरिए कलेक्टरों (जिला निर्वाचन अधिकारी) के साथ समीक्षा बैठक की। उन्होंने कहा कि रिटर्निंग ऑफिसर की नियुक्ति, नाम-निर्देशन पत्र प्राप्त करने के लिए स्थान का चयन, आयोग द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार सीसीटीवी और वीडियो कैमरे की व्यवस्था, मतदान के गठन के लिए सॉफ्टवेयर में एंट्री और जिला स्तर पर क्रय की जाने वाली सामग्री की खरीदी तुरंत करें। बता दें कि राज्य निर्वाचन आयुक्त स्पष्ट कर चुके हैं कि 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं के दौरान चुनाव नहीं कराए जाएंगे। प्रदेश में 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं 20 अप्रैल से 18 मई तक होंगी। इस हिसाब से देखें, तो चुनाव अप्रैल माह में होंगे या फिर मई के तीसरे सप्ताह में कराए जाएंगे।
- राकेश ग्रोवर