गहराया केन-बेतवा लिंक परियोजना विवाद
20-Nov-2020 12:00 AM 305

 

केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत उप्र और मप्र के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद जारी है। इस मामले में अब शिवराज सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। प्रदेश सरकार ने तय किया है कि केन-बेतवा लिंक परियोजना में उप्र को 700 एमसीएम से ज्यादा पानी नहीं दिया जाएगा। इस विवाद को हल करने के लिए लगातार उप्र और मप्र सरकार से समन्वय बना रहे केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से भी मुख्यमंत्री शिवराज ने फोन पर चर्चा की। मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया कि प्रदेश सरकार उप्र को 700 एमसीएम से ज्यादा पानी नहीं दे सकेगी। परियोजना जल्द शुरू करने पर आपसी सहमति बनाने पर भी चर्चा हुई है। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने परियोजना पूरा करने के लिए दोनों राज्यों के साथ जल्द बैठक करने की बात कही है।

बीते साल की तुलना में इस साल प्रदेश में दो लाख हैक्टेयर से ज्यादा सिंचाई करने का लक्ष्य सरकार ने तय किया है। मुख्यमंत्री शिवराज ने एक लाख हैक्टेयर क्षेत्र में पाइपलाइन के जरिए किसानों को सिंचाई के लिए पानी मुहैया कराने के लक्ष्य पर काम करने के निर्देश अफसरों को दिए हैं। बीते साल 29 लाख हैक्टेयर में सिंचाई हुई थी। इस साल 31 लाख हैक्टेयर में सिंचाई करने का लक्ष्य तय किया गया है। केन-बेतवा लिंक परियोजना में पानी के बंटवारे को लेकर मप्र और उप्र सरकार के बीच विवाद चला आ रहा है। इस विवाद को निपटाने के लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में अक्टूबर में बैठक होनी थी। लेकिन प्रदेश में उपचुनाव के कारण यह बैठक स्थगित कर दी गई। अब यह बैठक दिवाली के बाद होगी।

गौरतलब है कि है कि 25 अगस्त 2005 को मप्र, उप्र और केंद्र सरकार के बीच समझौता हुआ था। जल संसाधन विभाग के अधिकारियों का कहना था कि प्रारंभ में 533 एमसीएम पानी उप्र को देने की बात थी, जो बाद में 700 एमसीएम तक पहुंच गई। मप्र इसके लिए भी तैयार हो गया, जबकि परियोजना से पन्ना टाइगर रिजर्व का बड़ा हिस्सा डूब में आ रहा है। गांवों का विस्थापन भी होगा। इसके बाद भी उप्र की ओर से रबी सीजन के लिए 900 एमसीएम पानी दिए जाने की मांग रख दी गई, जिससे प्रदेश बिल्कुल भी सहमत नहीं है। केंद्र सरकार के सामने भी यह मामला उठ चुका है। कई दौर की बैठकों के बाद 23 अप्रैल 2018 को मप्र, उप्र और केंद्र सरकार के अधिकारियों के बीच जब बैठक हुई तो उसमें इस बात पर सहमति बनी कि 700 एमसीएम पानी मिलेगा। बाद में केंद्र सरकार ने उप्र को 788 एमसीएम पानी देना तय कर दिया था। लेकिन जुलाई 2019 में उप्र की सरकार ने 930 एमसीएम पानी मांग लिया जिसे मप्र ने इनकार कर दिया था। 

परियोजना लागत का 90 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार देगी और 5-5 प्रतिशत दोनों राज्य लगाएंगे। एमओयू का मसौदा भी तैयार हो गया था, लेकिन फिर मप्र में विधानसभा चुनाव आ गए और मामला ठंडे बस्ते में चला गया। कांग्रेस सरकार आने पर परियोजना को लेकर अपेक्षित गति नहीं आई। एक-दो औपचारिक तौर पर बैठकें हुईं, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। मप्र में पानी बंटवारे को लेकर जो प्रस्ताव तैयार किया गया है उसके तहत उप्र को रबी सीजन में 700 एमसीएम और खरीफ सीजन में 1000 एमसीएम पानी देने का प्रस्ताव है। पानी बंटवारे के विवाद को लेकर ही केन-बेतवा लिंक परियोजना बीते 15 साल से अधर में अटकी हुई है। साल 2005 में दोनों राज्यों के बीच पानी का बंटवारा हो गया था। लेकिन बाद में उप्र ने पानी की मांग बढ़ाकर विवाद बढ़ा दिया था। इसी वजह से मप्र और उप्र के बुंदेलखंड क्षेत्र में पीने और सिंचाई के पानी की समस्या भी हल नहीं हो पा रही है। इस परियोजना के तहत केन नदी पर डोंढन में बांध बनाया जाएगा। 77 मीटर ऊंचे और 19 हजार 633 किलोमीटर वर्ग की जलग्रहण क्षमता वाले इस मुख्य बांध में 2 हजार 853 एमसीएम पानी भंडारण की क्षमता होगी। इससे छतरपुर और पन्ना जिले की 3 लाख 23 हजार जमीन सिंचित होगी। बांध के कारण पन्ना टाइगर रिजर्व की 5 हजार 258 हैक्टेयर जमीन सहित कुल 9 हजार हैक्टेयर जमीन डूब जाएगी। इसमें बसे सुकुवाहा, भावर खुवा, घुगरी, वसोदा, कुपी, शाहपुरा, डोंढन, पिलकोहा, खरयानी और मेनारी गांव का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। योजना के तहत तीन अन्य बांध बेतवा नदी पर बनेंगे। रायसेन व विदिशा जिले में मकोडिया बांध से 56 हजार 850 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होगी। वहीं, बरारी बैराज से ढाई हजार और केसरी बैराज से दो हजार 880 हैक्टेयर क्षेत्र सिंचित होगा। परियोजना से मप्र के छतरपुर, पन्ना और टीकमगढ़ जिले की 3 लाख 96 हजार और उप्र के महोबा, बांदा और झांसी जिले में दो लाख 65 हजार हैक्टेयर (कुल छह लाख 60 हजार हैक्टेयर) क्षेत्र में सिंचाई होगी।

दोनों सूबों में जल की समस्या

बताया जाता है कि साल 2005 में मप्र और उप्र के बीच जल बंटवारा हो गया था लेकिन बाद में उप्र सरकार की मांग बढ़ गई जिसके चलते विवाद हो गया। इस विवाद के चलते ही मप्र और उप्र के बुंदेलखंड क्षेत्र में पीने के पानी और सिंचाई के पानी की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने विवाद को सुलझाने के लिए सितंबर में दोनों राज्यों के मंत्रियों और अधिकारियों की बैठक बुलाई थी। केंद्रीय मंत्री शेखावत ने उस बैठक जल बंटवारे पर विवाद की वजह से परियोजना में देरी को लेकर नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने विवाद के समाधान के लिए दोनों ही राज्यों से अक्टूबर तक प्लान मांगा था। बीते 29 अक्टूबर को बैठक प्रस्तावित थी जो उपचुनावों के चलते स्थगित कर दी गई। अब यह बैठक दीपावली बाद होने जा रही है। इस बैठक में दोनों राज्य अपनी कार्ययोजना रखेंगे। सूत्रों का कहना है कि मप्र जल संसाधन विभाग ने पानी की जरूरत की योजना में साफ उल्लेख किया है कि रबी के सीजन में उप्र को 700 एमसीएम और खरीफ में 1000 एमसीएम पानी ही दिया जा सकेगा। इससे ज्यादा पानी देने पर मप्र में 4.47 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की मुश्किलें आएंगी। विभाग का कहना है कि परियोजना में जंगल, जमीन और वन्यप्राणियों के लिए रहवास क्षेत्र का नुकसान मप्र उठाएगा ऐसे में पानी पर ज्यादा हक उसका है।

- जितेन्द्र तिवारी

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