20-Nov-2020 12:00 AM
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मप्र में गरीब व कुपोषितों के घरों में बांटने के लिए शासन स्तर से भेजे गए चने की बोरियां खोली गईं तो उसमें से चने के साथ कीड़े निकल रहे हैं। कीड़े लगने से चना पूरी तरह खराब हो चुका है। बावजूद इसके चने की रैक उतारी गई और बांटने के लिए बिना जांच के ही अफसरों ने इसे उचित मूल्य दुकानों पर सप्लाई कर दिया। श्योपुर में मामले का खुलासा होने के बाद अब अन्य जिलों से सैम्पल मंगाए जा रहे हैं।
गरीबों व कुपोषितों को पोषित करने के लिए मूंग दाल के बाद अब चना बांटा जा रहा है। हाल ही में शासन स्तर से 106 मीट्रिक टन चना बांटने के लिए नागरिक आपूर्ति निगम को सप्लाई किया गया। जिसे निगम ने खाद्य आपूर्ति विभाग को दे दिया और खाद्य आपूर्ति विभाग ने बिना जांचे ही यह चना गरीबों में बांटने के लिए उचित मूल्य दुकानों पर भेज दिया। इस चने की खराब क्वालिटी की पोल तब खुल गई, जब पांडोला गांव के उचित मूल्य दुकान पर चना बांटने के लिए बोरी खोली गई। इसमें चने के साथ कीड़े भी निकले जिसने चने खाकर उन्हें खोखला कर दिया था। भेजे गए चने को लेकर लोगों ने कहा कि यह जानवरों के खाने लायक भी नहीं है और इसे हमें भेजा गया। अब इस पर अफसरों का तर्क है कि वह मामले की जांच कराएंगे और खराब चने को वापस भेज देंगे। इस चने को अब बांटा नहीं जाएगा। नागरिक आपूर्ति निगम को मिला 106 मीट्रिक टन चना नेफेड द्वारा भेजा गया था जिसे 6 माह से अधिक समय से स्टॉक कर रखा गया था। अब जब चने में कीड़े लगने लगे तो आनन-फानन में नाफेड ने इसे बांटने के लिए नागरिक आपूर्ति निगम के सुपुर्द कर दिया और नागरिक आपूर्ति निगम ने गुणवत्ता जांचे बिना ही इसे खाद्य आपूर्ति विभाग को गरीबों में बांटने के लिए भेज दिया। बावजूद इसके नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों का कहना है कि पुराने चने व चावल में तो कीड़े लग ही जाते हैं चाहे वह सरकारी हो या फिर निजी।
खराब चने को लेकर लोगों ने सोशल मीडिया पर शासन व प्रशासन को जमकर कोसा। लोगों ने कहा कि जब बांटने का समय था तब तो स्टॉक में रखा और अब खराब होते ही जिसे जानवर भी न खाएं, उस चने को गरीबों में बांटने के लिए भेजा गया जबकि नियम है कि कोई भी खाद्य सामग्री बिना जांचे उचित मूल्य दुकानों पर नहीं आती। बावजूद इसके कीड़े लगा बदबूदार व खोखला चना भेजा गया। नागरिक आपूर्ति निगम श्योपुर के डीएम डीएस कटारे कहते हैं कि हमें नाफेड से उक्त चना बांटने के लिए प्राप्त हुआ है। कहीं कोई एक-दो बोरी में ही दिक्कत होगी। इसे हम वापस करवा देंगे। बाकी उचित मूल्य दुकानों का चना भी चेक कर लेंगे। इसमें हमें 106 मीट्रिक टन चना प्राप्त हुआ है, जिसकी जांच कराएंगे।
सरकार गरीबों की भूख का विशेष ध्यान रखती है। वैसे यह सरकार की मजबूरी भी है। आखिर उन्हीं के वोट से तो सरकार का जन्म होता है। गरीब सरकार को जन्म देने के बाद इसे अभिजात्य झूलाघर में छोड़ने के लिए विवश होते हैं। सरकार वहीं से संस्कार धारण कर शान से सिंहासन पर सवार हो जाती है। सरकार उसके जन्म दाताओं की चिंता कर उन्हें अनाज तो भेज देती है। लेकिन उस अनाज पर भ्रष्टाचार की इल्लियां और लापरवाही की फफूंद लगने से बचा नहीं पाती है। गरीब अनाज के साथ इन्हें भी निगलने के लिए अभिशप्त होता है। गरीब का भूखा पेट सब पचा लेता है। आखिर सरकार एक वोट के बदले गरीबों को छप्पन भोग तो नहीं भेज सकती है।
जनता को देश की पवित्र माटी से प्रेम करना सीखना चाहिए। गुणवत्ताहीन अनाज के साथ यदि यह मिट्टी भी पेट में जाती है तो स्वयं को धन्य समझना चाहिए। यही सच्चा राष्ट्रवाद है। वैसे भी पेट में जाने के बाद अनाज सड़ना ही है। यदि पहले से ही सड़ा हुआ अनाज खा लिया तो कौन-सा आसमान टूट पड़ा। नेता-अफसरों को देखो। ये लोग सड़क, पुल, नहर, कोयला, चारा और न जाने क्या-क्या खा लेते हैं और डकार तक नहीं लेते। और यह जनता है कि देश हित में सड़ा अनाज तक नहीं खा सकती। अब सरकार मुफ्त में बासमती चावल तो बांट नहीं सकती। जो मिल रहा है उसे पकाओ-खाओ और प्रभु के गुण गाओ। सरकार यह तो नहीं कह रही है कि काम के न काज के, दुश्मन अनाज के। इसलिए निर्भीक होकर सरकारी प्रसाद ग्रहण करो। जब कोरोना तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ पाया तो इस सड़े हुए अनाज की क्या बिसात है।
बंटेगा 9 पोषक तत्वों से तैयार चावल
सामान्य चावल को अब विटामिन और मिनरल्स से युक्त करके लोगों तक पहुंचाने की तैयारी है। इसे 'फोर्टिफाइड राइस केरनेल्स’ कहा जाएगा। मिलिंग प्लांट में तैयार इस पोषण युक्त चावल के एक दाने को 100 दानों में मिलाकर उन जिलों में वितरित किया जाना है, जहां अनुसूचित जाति-जनजाति के ऐसे लोग रहते हैं, जिन्हें पोषण की जरूरत है। भारत सरकार ने देश के पंद्रह राज्यों के एक-एक जिले में इसे लागू किया है, मप्र का सिंगरौली जिला इस स्कीम में शामिल है। बाद में इसे राज्यों के आकांक्षी जिलों को भी शामिल किया जाएगा। केंद्र सरकार इस स्कीम में 174 करोड़ रुपए खर्च करेगी। राज्यों को 25 फीसदी पैसा मिलाना होगा। पांच राज्यों छत्तीसगढ़, गुजरात, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने इसे लागू कर दिया, लेकिन मप्र में फाइल मंत्री के प्रशासकीय अनुमोदन और वित्त में अटकी है। फोर्टिफाइड राइस आंगनबाड़ी, मिड-डे-मील और पीडीएस के जरिए दिया जाएगा। मप्र में इससे पहले मई-जून 2018 से फोर्टिफाइड नमक दिया जा रहा है। एक किलो चावल पर 73 पैसे खर्च होंगे- एक किलोग्राम चावल के फोर्टिफिकेशन पर 73 पैसे खर्च होंगे। इसमें से 75 फीसदी केंद्र सरकार को और शेष राशि राज्यों को देनी है। तीन साल के इस पायलट प्रोजेक्ट के सफल होने पर इसे बाद में पिछड़े (आकांक्षी) जिलों में लागू कर दिया जाएगा।
- राकेश ग्रोवर