गले की फांस बना प्रमोशन में आरक्षण
18-Feb-2020 12:00 AM 586

पदोन्नति में आरक्षण केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों के लिए गले की फांस बन गया है। दरअसल, गत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और इसे लागू करना या ना करना राज्यों पर निर्भर करता है। कोर्ट के इसी फैसले पर बवाल शुरू हो गया है और केंद्र सरकार पर इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने का दबाव बनाया जा रहा है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने गत दिनों उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार के एससी और एसटी के आंकड़े जमा करने के निर्देश दिए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कोई भी राज्य सरकार प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है।

गौरतलब है कि अप्रैल, 2016 में मप्र हाईकोर्ट ने प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगाने आदेश दिया था। इसके विरोध में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट में मामले की डबल बेंच सुनवाई कर रही थी। इसमें एम नागराज बनाम भारत संघ प्रकरण को आधार बनाकर सुनवाई की जा रही थी। इस बीच एम नागराज प्रकरण को चुनौती दी गई। जिससे डबल बेंच ने इस मामले को पांच सदस्यीय खंडपीठ में भेज दिया। जिस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने पिछले साल 26 सितंबर के निर्णय में कहा कि पदोन्नति में आरक्षण दिया जाना संवैधानिक बाध्यता नहीं है। राज्य चाहे तो आरक्षण दे सकता है। पीठ के इस फैसले के बाद एक बार फिर से मामला सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच में चला गया। हालांकि प्रमोशन में आरक्षण का विवाद नया नहीं है और समय-समय पर कोर्ट और राज्य सरकार इस बारे में अहम कदम उठा चुके हैं।

उल्लेखनीय है कि मप्र में भाजपा शासन के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ऐलान किया था कि कोई भी माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता। लेकिन उनके शासनकाल में एक भी अधिकारी-कर्मचारी को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ नहीं मिल सका। अब मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि उनकी सरकार पदोन्नति में आरक्षण की पक्षधर है। मुख्यमंत्री ने उत्तराखंड सरकार के सुप्रीम कोर्ट में रखे गए पक्ष के आधार पर पूरी भाजपा को कटघरे में खड़ा किया है। मुख्यमंत्री ने आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा आरक्षण खत्म करना चाहती है। पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के कारण मध्य प्रदेश में तीन साल से पदोन्नतियां नहीं हो पा रही हैं। पिछली सरकार ने इसके चलते आयु सीमा 60 से बढ़ाकर 62 कर दी थी। मामला अब तक नहीं सुलझा। अब कांग्रेस सरकार भी आयु सीमा एक साल बढ़ाने पर विचार कर रही है। उधर, डेढ़ साल की राहत के बाद प्रदेश के अधिकारियों-कर्मचारियों का अप्रैल 2020 से सेवानिवृत्ति का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो जाएगा। वर्ष 2020 खत्म होते-होते 12 हजार से ज्यादा कर्मचारी सेवानिवृत्त होंगे। जिससे मंत्रालय सहित विभाग प्रमुख कार्यालयों में कामकाज प्रभावित होने की आशंका जताई जाने लगी है। सेवानिवृत्त होने वालों में शीर्षस्थ कर्मचारियों की संख्या ज्यादा बताई जा रही है। जिनकी जिम्मेदारी अधीनस्थ कर्मचारियों को नहीं सौंपी जा सकती है। 12 हजार से अधिक कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति पर 3600 करोड़ से ज्यादा का भार आएगा। राज्य सरकार ने इस साल बनने वाली स्थिति से निपटने की तैयारी अब तक शुरू नहीं की है। न तो प्रदेश में पदोन्नति शुरू हो पाई है और न ही नई भर्तियां हो सकी हैं। ऐसे में कामकाज प्रभावित होना स्वभाविक है। प्रदेश में 4.62 लाख कर्मचारी और पिछले साल नियमित किए गए 1.78 लाख अध्यापक शामिल हैं।

कर्मचारियों को क्रमोन्नति देकर बनाया जाएगा प्रभारी

प्रदेश में करीब पौने चार साल से कर्मचारियों की पदोन्नति पर प्रतिबंध लगा होने से वे परेशान हैं। कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अब कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, इसलिए राज्य सरकार पदोन्नति के विकल्प तलाश रही है। इनमें से एक विकल्प कर्मचारियों को क्रमोन्नति देकर वरिष्ठ पदों की जिम्मेदारी देना भी हो सकता है। मंत्रालय में गत दिनों हुई उच्च स्तरीय बैठक में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सामान्य प्रशासन मंत्री डॉ. गोविंद सिंह को इस सुझाव का परीक्षण कर रिपोर्ट सौंपने को कहा है। बैठक में कर्मचारियों को सशर्त पदोन्नति देने की बात भी उठी। प्रदेश में 31 मार्च से कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति शुरू हो जाएगी, जिसे देखते हुए मुख्यमंत्री ने बैठक बुलाई थी। सीएम ने सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई के लिए पहल और मामले की मजबूती से पैरवी करने को कहा है। बैठक में मंत्री डॉ. सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से सशर्त पदोन्नति करने की इजाजत नहीं मिलने और पदोन्नति में आरक्षण मामले का फैसला नहीं आने तक कर्मचारियों को क्रमोन्नति देकर बड़े पदों की जिम्मेदारी सौंपने का सुझाव दिया।

पदोन्नति में आरक्षण मिला नहीं, खर्च हो गए 6 करोड़

मध्यप्रदेश के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने की योजना सरकार पर भारी पड़ती नजर आ रही है। हालत यह है कि हजारों कर्मचारी बिना पदोन्नति पाए रिटायर हो गए और सरकार को चार साल में 6 करोड़ रुपए से ज्यादा की चपत लग गई। इस सप्ताह फिर सुप्रीम कोर्ट में मामले को लेकर सुनवाई के आसार हैं। इस पेशी में प्रदेश सरकार द्वारा कर्मचारियों को सशर्त पदोन्नति देने की अर्जी दाखिल करने की तैयारी की है। दरअसल अप्रैल 2016 में मप्र हाईकोर्ट ने प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगाने का आदेश दिया था। इसके विरोध में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट में मामले की डबल बेंच सुनवाई कर रही थी। इसमें एम नागराज बनाम भारत संघ प्रकरण को आधार बनाकर सुनवाई की जा रही थी। इसी बीच एम नागराज प्रकरण को चुनौती दी गई।

- कुमार राजेन्द्र

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