फ्री होल्ड भूखंडों पर पहरा
04-Feb-2020 12:00 AM 1148

प्राधिकरण इन दिनों जहां अपनी नई संपत्तियों खासकर भूखंडों को फ्री होल्ड की शर्त के साथ बेच रहा है, वहीं पुरानी लीज की संपत्तियों को भी फ्री होल्ड करने की प्रक्रिया शुरू की गई है। इसके अलावा नगर तथा ग्राम निवेश की एनओसी के आधार पर पुराने भूखंडों को उपयोग परिवर्तन की मंजूरी दे दी जाएगी, लेकिन अब खुद नगर तथा ग्राम निवेश ने इन प्रावधानों का विरोध किया है, क्योंकि यह मास्टर प्लान के प्रावधानों के भी विपरीत है। नगर तथा ग्राम निवेश द्वारा जो अभिन्यास मंजूर किया जाता है उसमें भूखंड एक विशेष प्रयोजन के लिए आरक्षित हो जाता है और फिर उसका अन्य प्रयोजन के लिए उपयोग विधि अनुकूल नहीं है। यानी फ्री होल्ड भूखंडों का भी उपयोग वर्तमान और भविष्य में बदला नहीं जा सकेगा। इस पर शासन ने भी स्पष्ट कर दिया है कि मास्टर प्लान में अगर भू-उपयोग बदला गया है, तब ही नगर तथा ग्राम निवेेश एनओसी जारी कर सकेगा। अपर संचालक डीएन त्रिपाठी ने इस आशय का पत्र भी भोपाल से इंदौर कार्यालय भिजवा दिया है। प्राधिकरण और हाउसिंग बोर्ड की तमाम लीज की संपत्तियों का दुरुपयोग होता रहा है, जिनमें इंदौर विकास प्राधिकरण के कई मामले तो चर्चित रहे हैं, जो अदालतों से लेकर लोकायुक्त जांच के दायरे में भी है। चाय-किराना व्यापारी से लेकर होटल सायाजी सहित कई चर्चित मामले भी हैं, जिनमें प्राधिकरण ने लीज शर्तों के उल्लंघन पर नोटिस थमाए और लीज निरस्ती की प्रक्रिया भी शुरू की। प्राधिकरण की तमाम योजनाओं में आवासीय या अन्य प्रयोजन के भूखंडों पर व्यावसायिक या अन्य गतिविधियां चल रही हैं, जिसके चलते अभी पिछले दिनों प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने नया नियम लागू किया, जिसमें मास्टर प्लान में अगर उपयोग व्यावसायिक या अन्य स्वीकार है तो 2 से 4 प्रतिशत वर्तमान गाइडलाइन के मुताबिक राशि जमा कर प्राधिकरण लीज बहाली से लेकर फ्री होल्ड की प्रक्रिया कर सकेगा, लेकिन इसके पूर्व आवंटिती को इस आशय की एनओसी नगर तथा ग्राम निवेश से लाना पड़ेगी। इस शासन आदेश के चलते नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय में ढेर सारे आवेदन एनओसी के लिए आ गए, जबकि होना यह था कि मास्टर प्लान में जिन जमीनों का भू-उपयोग बदल गया है या व्यावसायिक मार्ग घोषित किए गए हैं, उन पर ही एनओसी जारी की जा सकती है, मगर हर आवंटिती यह एनओसी लेने को तैयार हो गया। इसके बाद नगर तथा ग्राम निवेश के संयुक्त संचालक एसके मुद्गल ने संचालक नगर तथा ग्राम निवेश को पत्र लिखा है, जिसमें लिखा कि उक्त भूखंडों पर प्राधिकरण द्वारा मूल अभिन्यास में उपदर्शित भूखंडों के उपयोग परिवर्तन के संबंध में अनापत्ति चाही जाती है, जबकि अभिन्यास स्वीकृति के समय उपविभाजन किए जाने के बाद भूखंड एक विशेष प्रयोजन के लिए आरक्षित हो जाता है और फिर इन आरक्षित भूखंडों पर पुन: अन्य प्रयोजन हेतु स्वीकार्यता दी जाना विधि अनुकूल नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राधिकरण द्वारा प्रेषित प्रकरणों में एक विशेष प्रयोजन के लिए आरक्षित भूखंडों के उपयोग में परिवर्तन होने की दशा में जिला कार्यालय नगर तथा ग्राम निवेश से स्वीकार्यता के संबंध में अनापत्ति चाही जा रही है और उक्त स्वीकार्यता का विवरण मास्टर प्लान की सारणी क्रमांक 6.22 में दिया गया है, जो कि रिक्त भूमि के ऊपर लागू होता है न कि उपविभाजित किए गए भूखंडों के ऊपर। इतना ही नहीं गजट नोटिफिकेशन दिनांक 01.02.2014 द्वारा मास्टर प्लान 2021 में जो उपांतरण किए गए थे, उसकी कंडिका 26 में सारणी 3.7 के नोट में निम्नलिखित पंक्ति जोड़ी गई है... 'इन मार्गों पर पूर्व में स्वीकृत अभिन्यास में स्वीकृत उपयोग परिसर को परिवर्तित कर स्वीकृत उपयोग अंतर्गत अनुमत उपयोग परिसर की अनुमति दी जा सकेगी।Ó किन्तु यह टीप केवल कुछ विशेष मार्गों पर ही लागू होती है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली में सीलिंग की कार्रवाई करते वक्त यह आदेश दिया था कि जिस आवासीय कॉलोनी का अभिन्यास मंजूर किया जाता है, भविष्य में उक्त भूखंड का उपयोग भी वही रहता है, जिसे बदला नहीं जा सकता। नगर तथा ग्राम निवेश के इस पत्र के बाद शासन ने भी स्पष्ट कर दिया है कि मास्टर प्लान में अगर प्राधिकरण की किसी योजना में मौजूद संपत्तियों का उन्नयन होता यानी भू-उपयोग परिवर्तन किया जाता है, तब ही नगर तथा ग्राम निवेश द्वारा एनओसी यानी अनापत्ति पत्र जारी किया जा सकता है। प्राधिकरण खुद लड़ रहा है सुप्रीम कोर्ट में एक तरफ प्राधिकरण लीज शर्तों के उल्लंघन के आवंटितों को नए नियमों का लाभ देना चाहता है, दूसरी तरफ वह खुद सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ मुकदमा लड़ रहा है। योजना क्र. 59 के भूखंड क्र. 5 का आवासीय उपयोग है, जिस पर पेट्रोल पम्प के लिए एनओसी जारी की गई थी। जब विधानसभा में मामला उठा तो प्राधिकरण ने गलत तरीके से जारी एनओसी को न सिर्फ रद्द किया, बल्कि लीज शर्त के उल्लंघन का नोटिस भी थमा दिया। उक्त भूखंड कांग्रेस नेता अशोक धवन का है, जिसे फ्री होल्ड भी कर दिया था, जिसके आधार पर हाईकोर्ट ने प्राधिकरण को निर्देश दिए कि जब फ्री होल्ड कर दिया है तो फिर लीज निरस्ती की प्रक्रिया क्यों की गई? हाईकोर्ट आदेश के बाद प्राधिकरण सुप्रीम कोर्ट गया और वहां से स्टे भी ले आया, जो अभी भी कायम है। यानी एक तरफ प्राधिकरण सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहा है, दूसरी तरफ अन्य भूखंडों को फ्री होल्ड करना चाहता है। - विकास दुबे

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