04-Feb-2020 12:00 AM
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बुंदेलखंड पैकेज में हुए आर्थिक घोटाले की ईओडब्ल्यू ने विधिवत जांच शुरू कर दी है। भोपाल स्थित ईओडब्ल्यू मुख्यालय ने हाल ही में ग्रामीण यांत्रिकी सेवा (आरईएस) और वन विभाग के अधिकारी, ठेकेदार समेत अन्य एजेंसियों के खिलाफ मिले तथ्यों के सत्यापन की जांच रजिस्टर्ड की है। वहां से ईओडब्ल्यू, सागर को तथ्य जुटाने के निर्देश दिए गए हैं ताकि दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सके। इधर एक चर्चा ये है कि यह जांच कांग्रेस के आला नेताओं के निर्देश पर शुरू हुई है। दरअसल लोकसभा-2019 के दौरान चुनावी सभाओं में तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी और मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस घोटाले की जांच की घोषणा की थी। इसी दौरान इस घोटाले को लेकर कई नए खुलासे किए गए। बुंदेलखंड पैकेज में हुए घोटाले और धांधली के खिलाफ लगातार आवाज उठाने वाले आरटीआई कार्यकर्ता पवन घुवारा का कहना है कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने मप्र-उप्र के बुंदेलखंड को सूखे से निपटने के लिए 7600 करोड़ रुपए मंजूर किए थे। इसमें से मप्र के बुंदेलखंड (दतिया समेत सागर संभाग) को 3860 करोड़ रुपए मिले। लेकिन इसमें से एक अनुमान के अनुसार 2100 करोड़ रुपए तत्कालीन जनप्रतिनिधियों व अफसर-इंजीनियर हजम कर गए। पैकेज से बुंदेलखंड में एक भी ऐसा काम नहीं हुआ, जिससे यहां के लोगों के जीवनस्तर में कोई बदलाव आया हो। सागर ईओडब्ल्यू के एसपी नीरज सोनी का कहना है कि पिछले साल मीडिया रिपोट्र्स के तत्कालीन खुलासों के बाद ईओडब्ल्यू ने इसमें स्वत: संज्ञान लिया। प्रारंभिक जांच में ही हमें काफी गंभीर किस्म की अनियमितताएं मिली। उसके आधार पर ही मुख्यालय ने तथ्यों के सत्यापन की प्रक्रिया को रजिस्टर्ड किया है। उम्मीद है हम जल्द ही जांच पूरी कर संबंधित दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लेंगे। जांच रजिस्टर्ड होने को लेकर बुंदेलखंड से विधायक एवं राजस्व व परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने बताया कि इस पैकेज को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मंजूर कराने वाले प्रतिनिधिमंडल में, मैं भी बतौर विधायक शामिल था। प्रधानमंत्री सिंह ने राहुल गांधी के विशेष अनुरोध पर एक बड़ी राशि मप्र के बुंदेलखंड के लिए दी थी। लेकिन तत्कालीन भाजपा सरकार की मिली भगत के चलते यह पूरा पैकेज घोटाले का शिकार हो गया। अगर सही ढंग से जांच की जाए तो यह गड़बड़ी तत्कालीन भाजपा सरकार के सिंहस्थ घोटाले से कहीं अधिक बड़ा साबित होगा। ईओडब्ल्यू के प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार इस तरह के मामलों में साधारणत: 3 महीने का समय तथ्य जुटाने के लिए दिया जाता है। जांच अधिकारियों को अगर संबंधित विभागों से सहयोग मिला तो यह जांच और पहले कंपलीट हो सकती है। जांच के जल्द पूरे होने का एक बड़ा आधार हाईकोर्ट के निर्देश पर गठित मुख्य तकनीकी परीक्षक सतर्कता भोपाल के संयुक्त दल द्वारा की विस्तृत जांच रिपोर्ट भी है। इसमें पैकेज की राशि का कैसे बंदरबांट किया गया, इसका तथ्यात्मक व मैदानी लेखा-जोखा है। इस संयुक्त जांच दल में आरईएस, पीएचई, एग्रीकल्चर, मतत्स्य, पशुपालन, पीडब्ल्यूडी, वन विभाग के आला-अधिकारी शामिल थे। बुंदेलखंड पैकेज के तहत जिन छह जिलों में काम होना था उनमें सागर, छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़, पन्ना और दतिया शामिल हैं। सागर में 840 करोड़, छतरपुर में 918 करोड़, दमोह में 619 करोड़, टीकमगढ़ में 503 करोड़, पन्ना में 414 करोड़ और दतिया में 331 करोड़ का काम होना था लेकिन कुल फंड की 80 फीसदी राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। 100 से ज्यादा लोगों से की जाएगी पूछताछ 3760 करोड़ रुपए के बुंदेलखंड पैकेज की जांच के लिए ईओडब्ल्यू ने जांच अधिकारी तय कर दिया है। जोनल एसपी नीरज सोनी के अनुसार शाखा में पदस्थ इंस्पेक्टर एमके उपाध्याय इस मामले में एफआईआर करने के लिए जरूरी दस्तावेज, जांच रिपोट्र्स से लेकर संबंधित अधिकारी, ठेकेदार आदि का बयान लेंगे। एसपी सोनी के अनुसार एक अनुमान के मुताबिक इस दौरान जांच अधिकारी 100 से अधिक लोगों के बयान लेंगे। पूछताछ का मुख्य बिंदु यही रहेगा कि उन्होंने सरकार द्वारा प्रदान की गई राशि का व्यय कैसे और किन नियमों का पालन करते हुए किया। एसपी सोनी के अनुसार आरटीआई एक्टिविस्ट, अखबारों से मिली जानकारी के आधार पर शाखा द्वारा अधिकांश जरूरी दस्तावेज पहले ही जुटा लिए गए हैं। लेकिन एक पुख्ता केस तैयार करने के लिए हमें सपोर्टिंग दस्तावेज से लेकर जांच रिपोट्र्स की मूल प्रति की जरूरत होगी। जांच अधिकारी पत्राचार कर संबंधित विभाग प्रमुखों से मंगवाएंगे। उन्हें यह काम पूरा करने के लिए मैन्युअल के अनुसार 3 महीने का वक्त दिया गया है। बता दें कि इसी सप्ताह ईओडब्लयू मुख्यालय भोपाल ने पैकेज के तहत काम करने वाले आरईएस और वन विभाग के खिलाफ पुख्ता जांच को मंजूरी दी है। - सिद्धार्थ पांडे