देश के किसान इन दिनों न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए आंदोलन कर रहे हैं। वहीं सरकार मौखिक रूप से कई बार कह चुकी है कि एमएसपी है, एमएसपी रहेगी। लेकिन क्या यह सत्य है? शायद नहीं। क्योंकि हर छमाही रबी और खरीफ की फसल बेचने के लिए किसानों को जिस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, उससे यह साफ है कि इस बार भी धान की खरीदी में जमकर कालाबाजारी हो रही है। मप्र में 29 नवंबर से समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी शुरू हुई है। लेकिन प्रदेश के छोटे किसानों ने अपनी उपज समर्थन मूल्य से भी कम दाम पर पहले ही बेच दी है और जो बचे हैं वे व्यापारियों को बेच रहे हैं। दरअसल धान कटाई के बाद किसानों को गेहूं की बोनी, खाद, कीटनाशक व अन्य कार्यों के लिए रुपयों की जरूरत है। इसलिए किसान बिचौलियों व व्यापारियों को मनमाने दाम पर अपनी उपज बेचकर अपना काम कर रहे हैं।
शासन द्वारा 29 नवंबर से समर्थन मूल्य पर धान खरीदी शुरू की गई हैं जिसमें धान का समर्थन मूल्य 1940 प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। लेकिन इससे पहले ही छोटे किसानों ने 1400 से 1700 प्रति क्विंटल की दर से बेच दिया है। सवाल यह है कि किसान किससे शिकायत करें? सरकार एमएसपी पर गारंटी देना नहीं चाहती और खरीद केंद्रों को भी देरी से खोला जाता है। इसके बाद वहां भी किसानों के अनाज में अनेक कमियां निकालकर करदा काटकर अनाज को तौला जाता है। अगर किसान खरीदी केंद्रों की शिकायत करें, तो उन पर खरीद करने वाले लोग अनाज को गीला और खराब बताकर खरीदने से मना कर देते हैं। मप्र, उप्र, हरियाणा, पंजाब और बिहार के कई किसानों ने बताया कि किसानों के साथ अन्याय ही अन्याय हो रहा है।
मप्र के किसान विनोद कुमार साहू का कहते हैं कि यह पूंजीपतियों की सोची-समझी चाल है, जिसके तहत धान ही नहीं, किसी भी फसल की खरीददारी समय पर नहीं की जाती है। पहले डीजल-पेट्रोल के दाम कम थे, तो किराया-भाड़ा भी कम लगता था, लेकिन अब तो वह भी बढ़ गया है। पहले किसान आसानी से दूसरे जिले या राज्य में फसल बेच देते थे, अब यह संभव नहीं है। कुल मिलाकर किसानों को परेशान किया जा रहा है। महंगाई के अलावा बीमारियों का दौर चल रहा है। ऐसे में हर किसान को पैसे की सख्त जरूरत है और इसका फायदा आढ़तिये, पंूजीपति, खरीद केंद्रों के कर्मचारी, मंडियों में बैठे दलाल उठा रहे हैं और सरकार एमएसपी का ढोल ऐसे पीटती है, जैसे हकीकत में उसने किसानों पर कोई एहसान कर दिया हो। बड़ी बात तो यह है कि एमएसपी पर किसानों के खाद्यान शायद ही कहीं खरीदे जाते हों। बताते चलें एक दौर में खाद्यान्न खेतों से सीधे खरीद केंद्रों पर तुलते थे, बाजार में भी उनके दाम ठीक-ठाक मिल जाते थे। तब किसानों को प्रशासन से मिन्नतें भी नहीं करनी पड़ती थीं और न ही समझौते का सहारा लेना पड़ता था। अब यह हालत है कि खरीद केंद्रों पर कर्मचारियों का दबदबा चलता है। वहां पुलिस मौजूद होती है। टोकन सिस्टम है। बारी आने पर अनाज लिया जाता है और बारी कई दिन तक नहीं आती। जब बारी आती है, तो कई कमियां। ऐसे में किसानों का हर तरह से नुकसान-ही-नुकसान होता है।
किसान नेता और वकील चौधरी वीरेंद्र सिंह ने बताया कि अब तक के इतिहास में किसानों के साथ बाजारों में इतना भेदभाव नहीं हुआ है, जितना कि अब हो रहा है। उनका कहना है कि बाजारों और गेहूं की बड़ी-बड़ी मंडियों में सत्ता से जुड़े पूंजीपतियों का कारोबार है। सरकार द्वारा निर्धारित भाव को वे मानते नहीं हैं। अपने-अपने हिसाब से खरीद-फरोख्त करते हैं। गरीब किसान मजबूरी में औने-पौने दाम में उन्हें अनाज बेच देते हैं। सरकार ने जो खरीद केंद्र बनाए हैं, वहां पर प्रशासन भी मंडियों की भाषा बोलता है। ऐसे में आखिरकार न चाहते हुए भी किसान हर हालत में लुटता जा रहा है। उन्होंने कहा कि देश में पहले जमाखोरी का कारोबार कम हुआ करता था। लेकिन अब सरकार में पूंजीपतियों की तूती बोल रही है और वे सारे कायदे-कानून ताक पर रखकर जमाखोरी करके खाद्यान की कालाबाजारी कर रहे हैं। यह एक सच्चाई है कि अब देश के पूंजीपतियों की नजर कृषि उत्पादों पर टिकी है और वे इस पर अपना आधिपत्य चाहते हैं। किसानों का तो कहना है कि तीन कृषि कानून भी सरकार इसी सोच के चलते लाई है और यही वजह है कि उन्हें वापस करना नहीं चाहती।
इस बार प्रदेश में धान की बंपर पैदावार होने की संभावना है। क्योंकि किसानों ने 35 लाख हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में धान की बोवनी की। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने समर्थन मूल्य पर रिकार्ड 45 लाख टन से ज्यादा धान खरीदने की तैयारियां की हैं। पिछले साल राज्य में सर्वाधिक 37 लाख टन धान समर्थन मूल्य पर खरीदी गई थी। वहीं, कोशिश यह भी है कि केंद्र सरकार को सेंट्रल पूल में 10 लाख टन से ज्यादा चावल दिया जाए। इस साल अभी तक चार लाख टन चावल भारतीय खाद्य निगम को दिया जा चुका है। दिसंबर तक दो लाख टन चावल और दिए जाने की संभावना है। कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, प्रदेश में किसान सोयाबीन से मुंह मोड़ने लगे हैं और धान की ओर उनका रूझान बढ़ने लगा है। प्रदेश में धान के समर्थन मूल्य पर खरीद बढ़ने के साथ धीरे-धीरे धान का क्षेत्र भी बढ़ता जा रहा है। 2019 में 30.76 लाख हैक्टेयर में धान बोया गया था। जबकि 2020 में 34.04 लाख हैक्टेयर में बोवनी की गई। वर्ष 2021 में 35 लाख हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में धान की खेती की गई है।
साल दर साल बढ़ रहा उत्पादन
प्रदेश में धान का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। पिछले साल 106 लाख टन से ज्यादा धान हुआ था। इस बार अनुमान है कि 125 लाख टन से ज्यादा धान का उत्पादन होगा। पिछले साल पांच लाख 80 हजार किसानों ने समर्थन मूल्य पर धान बेचा था। इस बार 9 लाख से ज्यादा किसानों ने पंजीयन कराया है। इसे देखते हुए खाद्य, नागरिक आपूर्ति विभाग ने समर्थन मूल्य पर 45 लाख टन धान बिकने के लिए उपार्जन केंद्रों पर आने का अनुमान लगाया है। केंद्र सरकार ने समर्थन मूल्य भी 72 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाकर एक हजार 940 रुपए कर दिया है। खाद्य, नागरिक आपूर्ति के प्रमुख सचिव फैज अहमद किदवई ने बताया कि इस बार पिछले साल से अधिक किसानों ने पंजीयन कराया है। हमने धान खरीदने, रखने और मिलिंग की पूरी तैयारी कर ली है।
- श्याम सिंह सिकरवार