कोरोना महामारी के बाद मप्र सहित देशभर में डेंगू का कहर जारी है। मप्र में 14 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। यह इस बात का संकेत है कि हर साल हजारों करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग, मलेरिया विभाग और निकाय मच्छरों को नहीं मार पाए।
कोरोना महामारी की दोनों लहरों में लोगों को जिन परेशानियों का सामना करना पड़ा उसने यह साबित कर दिया कि अगर कोई बीमारी महामारी का रूप ले ले, तो देश की स्वास्थ्य व्यवस्था जवाब दे जाती है। इन दिनों तेजी से फैलते डेंगू ने भी यही साबित कर दिया है। कुछ राज्यों में तो हाल यह है कि मरीजों को समय पर सही इलाज मिलना तो दूर, जांच तक समय पर नहीं हो पा रही है। संक्रमण मुक्त पलंग (बेड) तक हर जगह मौजूद नहीं हैं, जिससे संक्रमण और बढ़ रहा है। डेंगू के इतने मरीज बढ़ रहे हैं कि सरकारी अस्पतालों में ही नहीं, बल्कि निजी अस्पतालों में बेड के लिए उन्हें भटकना पड़ रहा है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के जर्जर इसकी मूल वजह स्वास्थ्य सेवाओं का लगातार होता निजीकरण और कार्पोरेट अस्पतालों का विस्तार होना है।
गंभीर बात यह है कि सरकारी अस्पतालों में भी अब डॉक्टरों की नियुक्तियां अनौपचारिक (एडहॉक) या अनुबंध (कॉन्ट्रेक्ट) पर एक या दो साल के लिए होने लगी हैं। इसके चलते डॉक्टर्स या तो मन से सेवाएं नहीं देते या फिर नियमित होने के लिए संघर्ष करते रहते हैं। इतना ही नहीं, अस्पतालों में डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टाफ और नर्स की कमी के चलते मरीज इलाज के लिए भटकते रहते हैं और कई बार इलाज न मिलने या समय पर इलाज न मिलने पर दम तोड़ देते हैं। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में कमियों को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कई बार आगाह कर चुका है। लेकिन सरकार ने सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करने की जगह उनके निजीकरण का विस्तार ही किया है।
मौजूदा समय में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उप्र, मप्र समेत कई अन्य प्रदेशों में डेंगू ने पिछले महीने से पैर पसार रखे हैं। जब भी कोई बीमारी महामारी का रूप लेती है, तो व्यवस्था के अभाव की वजह से मरीजों को झोलाछाप डॉक्टरों तक से इलाज कराने को मजबूर होना पड़ता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि कोई भी संक्रमित बीमारी हो, अगर उसका समय रहते पक्का इलाज न हो तो वह भयंकर रूप ले लेती है। मौजूदा समय में डेंगू तेजी से फैल रहा है। देश के गरीब लोग सरकारी अस्पतालों पर ही निर्भर हैं। कहीं-कहीं सरकारी अस्पतालों की दशा बहुत खराब है। सरकारी अस्पतालों की लैबों में जांच रिपोर्ट ही दो से तीन दिन में मिलती है, जबकि डेंगू में रक्त की तुरंत जांच और प्लेटलेट्स की गिनती बहुत जरूरी होती है। लेकिन समय पर जांच रिपोर्ट न मिलने के चलते मरीजों को खतरा बढ़ जाता है और डेंगू के सही आंकड़े भी नहीं आ पाते। डॉक्टर बंसल कहते हैं कि भारत में स्वास्थ्य बजट भी बहुत कम है।
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) के अध्यक्ष डॉक्टर अश्विनी डालमिया कहते हैं कि डेंगू हर साल कहर बनकर आता है। डेंगू फैलाने वाला एडीज इजिप्टी मच्छर साफ पानी और घरों में पनपता है। यही वजह है कि इन मच्छरों की संख्या बढ़ने पर डेंगू भी तेजी से फैलता है। ऐसे में घरों की सफाई, साफ पानी को भी ढंककर रखने, पानी जमा न होने देने और मच्छरों को मारने वाली दवा से ही इसका इलाज जरूरी है। साथ ही इन दिनों में होने वाले बुखार को लोग सामान्य न समझें और इलाज के साथ-साथ सबसे पहले डेंगू की जांच कराएं, ताकि अगर मरीज को डेंगू है, तो समय रहते उसका इलाज हो सके।
डेंगू विरोधी अभियान में गत 8 साल से काम करने वाले डॉक्टर दिव्यांग देव गोस्वामी का कहना है कि कई राज्यों में डेंगू के तेजी से विस्तार के लिए सरकार की उदासीनता और स्वास्थ्य एजेंसियां जिम्मेदार हैं। जब हर साल अक्टूबर और नवंबर में डेंगू फैलता है, तो सरकार डेंगू से निपटने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं करती है? दवाओं का छिड़काव पहले होता था, लेकिन अब नहीं होता। साल में दो-चार बार धुआं छोड़ने वाले आते हैं, जिससे मच्छर तो नहीं मरते, प्रदूषण जरूर फैल जाता है। देश में स्वास्थ्य विभाग एक बड़ा बाजार बनकर उभर रहा है, जिसके चलते पैसा कमाने के लालच में कॉर्पोरेट घराने इस क्षेत्र में पांव पसारते जा रहे हैं और आम आदमी की पहुंच से इलाज दूर होता जा रहा है। बीमारियों को एक सुनियोजित तरीके से बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके पीछे दवा कंपनियों और जांच केंद्रों का कारोबारी स्वार्थ भी है। डॉक्टर गोस्वामी का कहना है कि कई राज्यों में मरीजों के लिए बेड तक उपलब्ध नहीं हैं। कई अस्पतालों में मानवता को झझकोर देनी वाली घटनाएं घट रही हैं।
स्वास्थ्य व्यवस्था की दशा ज्यादा खराब
मप्र के सरकारी अस्पतालों की जानकारी जुटाई, जहां देखने में आया कि स्वास्थ्य व्यवस्था में उप्र की दशा सबसे ज्यादा खराब है। वहां डेंगू से मरने वालों की संख्या भी इसकी गवाह है। एक मरीज ने बताया कि अब तो डेंगू कुछ कम हो रहा है, लेकिन जब डेंगू के मामले चरम पर थे, तब एक-एक बेड पर कई-कई मरीज डाले जा रहे थे। इतने पर भी अनेक मरीज अस्पतालों में इलाज के लिए भटक रहे थे। कई-कई दिन बेड की चादरें नहीं बदली जा रही थीं। डॉक्टर भी क्या करें, जब संसाधन ही नहीं होंगे तो इलाज कैसे होगा? एक चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई कि कुछ सरकारी डॉक्टर मरीजों को निजी अस्पतालों में भेज रहे थे। अब यह सांठगांठ की वजह से होता है या अव्यवस्था की वजह से, नहीं कह सकते।
- बृजेश साहू